इतिहास गवाह है कि आज तक जितने भी युद्ध हुए हैं, उसका अंजाम खतरनाक और रक्तरंजित ही रहा है. आज एक बार फिर विश्व के दो बड़े देश आमने- सामने होते जा रहे हैं. क्या होगा पता नहीं. इसी के सन्दर्भ में इस पोस्ट War for Peace Hindi Debate आपके सामने प्रस्तुत है. हो सके तो अपना विचार कमेंट के द्वारा अवश्य दें.
पक्ष में (War for Peace Hindi Debate)
युद्ध् का नाम सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. युद्ध वास्तव में कोई अच्छी बात नहीं है. वैसे तो स्वभाव से मनुष्य शांतिप्रिय प्राणी है वह युद्ध से बचना चाहता है, फिर भी उसे कई बार युद्ध् की विभीषिका झेलनी ही पड़ती है. हानि उठाकर भी मनुष्य को कई बार युद्ध् करना ही पड़ता है अगर उसका प्रयोजन राष्ट्रीय सुरक्षा होता है.
कुछ विद्वानों का मानना है कि बुरा और विनाशकारी होते हुए भी कई बार युद्ध लड़ना आवश्यक एवम् लाभप्रद होता है. जब कोई स्वार्थी, व्यक्ति, देश या राष्ट्र किसी और पर अपनी बातें, धरणाएँ या सत्ता थोपना चाहता हो, तब युद्ध् ही एकमात्रा उपाय बचता है जिससे अपना बचाव, अपनी सुरक्षा और आत्म-सम्मान की रक्षा की जा सकती है. बड़े से बड़ा बलिदान देकर और कष्ट सहकर भी मातृभूमि की रक्षा करना मानव का परम धर्म है. इस प्रकार के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए युद्ध को अनुचित नहीं कहा जा सकता.
कई बार देशों-राष्ट्रों के जीवन में ऐसा समय भी आ जाता है जब उसे चारों ओर से आलस्य, उन्माद, लापरवाही और बिखराव का वातावरण घेर लिया करता है तब सहसा युद्ध् का बिगुल बजाकर इन सब दूषणों को दूर कर जातियों-राष्ट्रों को सप्राण बना देता है. युद्ध् नयी ऊर्जा, नयी उत्सुकता, साहस और उत्साह भी जातियों के जीवन में जगा देता है. युद्ध् में एक बार विनाश होकर नये सिरे से हर चीज़ का निर्माण होता है. भारत में कई बार ऐसा हुआ है कि देशवासियों को युद्ध का सामना करना पड़ा है. पर उसके बाद हमने नये-नये साधन जुटाने और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अग्रसर करता है.
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अंग्रेजों की गुलामी को तोड़ने के लिए भारतवासियों ने हिंसा और अहिंसा दोनों तरीकों को अपनाया था. सबसे पहला युद्ध् 1857 में हुआ था जो कि आज़ादी पाने की तरफ पहला कदम था. सन् 1965 में लड़े गए भारत-पाक युद्ध् ने भारत को अनाज के मामले में आत्मनिर्भर होने की दिशा में अग्रसर किया. सन् 1962 के चीनी आक्रमण ने देश को शस्त्र -अस्त्र एवम् शक्ति के स्त्रोत जुटाने की प्रेरणा दी.
आतंकवाद जो कि प्रत्येक देश को दीमक की तरह खाता जा रहा है, उसे समाप्त करने के लिए युद्ध् करना ही पड़ेगा. बिना युद्ध् किए आतंकवाद पर काबू नहीं पाया जा सकता. आज विश्वभर में आतंकवाद की समस्या ने सिर उठाया हुआ है. कई देश ऐसे भी हैं जो आतंकवाद को खत्म करने की बजाय बढ़ावा दे रहे हैं. ऐसी स्थिति में युद्ध् करना एक मजबूरी बन जाता है. उसमें भी यदि आपका पड़ोसी देश ही अपने सैनिकों द्वारा आतंकियों को ट्रेनिंग देकर आप पर हमला करवाए तो ऐसी स्थिति में युद्ध करना और उसको माकूल जबाव देना जरुरी हो जाता है.
अतः हम कह सकते हैं कि शांति के लिए युद्ध् कई बार न चाहने पर भी आवश्यक हो जाता है. यह हमें कई बार सबक भी देता है कई बार जातियों का विनाश भी हो जाता है. प्रथम विश्व युद्ध् और द्वितीय विश्व युद्ध् का उदाहरण भी देख सकते हैं.
विपक्ष में (War for Peace Hindi Debate)
‘अहिंसा परमो धर्मः’ अर्थात् अहिंसा सबसे श्रेष्ठ धर्म है. भारत ही एक ऐसा देश है जिसने संपूर्ण विश्व को अहिंसा का पाठ पढ़ाने का प्रयास किया है. और तो और, भारत में जब स्वतंत्रता-आंदोलन के समय ब्रिटिश सरकार आंदोलनकारियों पर लाठियाँ-गोलियाँ बरसा रही थी, तब भी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के आदेश से लोग हिंसा से दूर रहकर अहिंसक संघर्ष को ही बढ़ावा दे रहे थे.
‘शांति के लिए युद्ध आवश्यक है’ यह पंक्ति जितनी सही लगती है उससे कहीं ज़्यादा यह बात लोगों को विनाश के गर्त में धकेल देती है. काश! ऐसा हो जाए कि युद्ध् का अवसर ही देशों-राष्ट्रों के जीवन में न आए. क्या ऐसा हो पाना संभव है? जितनी कोशिश हो सके बिना युद्ध् के शांति बनाये रखने की उतना ही देशों-राष्ट्रों का फायदा है। वरना तो युगों-युगों की साधना और प्रयत्नों से मानव जिस सभ्यता –संस्कृति एवम् उपयोगी संसाधनों का निर्माण करता है, विकास कर आगे बढ़ता है, युद्ध् का एक ही झटका उस सबको विनष्ट करके रख दिया करता है.
आज कई वषो के बीत जाने के बाद भी लोग ‘हिरोशिमा’ और ‘नागासाकी’ के बम कांड को नहीं भूला सके हैं. आज भी वहाँ जमीन बंजर है. नयी जन्म लेने वाली पीढ़ी पर आज भी उस बीते ज़माने के युद्ध् का असर देखा जा सकता है. युद्ध् मानवता के सभी मूल्यों, सुख-शांति और समृद्धि् की उपलब्ध्यिं को क्षण भर में ही समाप्त कर देता है. उसके कारण जो अविश्वास और तनाव का वातावरण पैदा हो जाता है, फिर वह मनुष्य को कभी चैन नहीं लेने देता.
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किसी भी देश-राष्ट्रों में युद्ध् आरंभ होकर समाप्त तो हो जाता है पर वह कभी न समाप्त होने वाली अनेक समस्याओं को भी जन्म दे देता है. जैसे कि व्यक्ति का सारा ध्यान प्रगति का सामान जुटाने से बंटकर विध्वंस हथियार जुटाने पर केंद्रित होने लगता है. प्रगति और विकास की बातें, सुख शांति की बातें सभी भूली-बिसरी यादें बन जाया करती है. मानव केवल विध्वंस के बारे में ही सदा सोचता रहता है. इसी कारण से देश में महँगाई भी बढ़ जाती है लोग सामान को स्टोर कर लेते हैं और युद्ध् के समय महँगे दामों पर बेचते हैं. इस बीच पिसती है बेचारी गरीब जनता.
आज हम सभी जानते हैं कि विश्व के अनेक देशों की आय का अधिकाँश भाग परमाणु-हथियार बनाने पर खर्च हो रहा है. ड्रोन, तोप, मिसाइलों और हथियारों की खरीद में करोड़ों डॉलर बहा दिए जाते हैं. परिणाम स्वरूप महँगाई का भूत अपने पाँव पसारता चला जा रहा है. कारगिल का युद्ध् इस बात का ज्वलंत उदाहरण है. ऐसी स्थिति में युद्ध् से प्राप्त होने वाले लाभ बहुत ही कम होते हैं जबकि हमें मिलती है सिर्फ हानियाँ ही हानियाँ जिन्हें भोगने के लिए आज हम विवश हैं.
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युद्ध् से लाभ स्वल्प है और वह भी कल्पित ही है जबकि हानियों की भरमार है. युद्ध् हज़ारों-लाखों को अनाथ, बेसहारा, विधवा बना दिया करते हैं. महामारियों, अकाल और भुखमरियों का कारण भी बनते हैं.
अतः हमें यही कोशिश करनी चाहिए कि विश्व में युद्ध् न हों. युद्ध् नाम के भूत को सदा के लिए बोतल में बंद कर सागर की गहराई में डुबा देना चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी इस बारे में कुछ भी न जान सके. ऐसा होना ही मानवता के लिए और भविष्य की सुरक्षा के लिए आवश्यक है. बड़े और समर्थ राष्ट्रों को उदार दृष्टि अपनानी चाहिए ताकि छोटे राष्ट्र भी इस चिंता से उबर कर अपना ध्यान निर्माण कार्यों की ओर लगा सकें. अपनी विस्तारवादी नीति का त्याग कर अन्य देशों का भी सम्मान करना चाहिए. जरुरत है श्री कृष्ण जैसे शांति दूतों की जिन्होंने महाभारत को रोकने का हर संभव प्रयास किया.
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