सदियों की गुलामी को तोड़ने के लिए भारतीयों ने अपने अभूतपूर्व धैर्य और साहस का परिचय दिया तथा ब्रिटिश साम्राज्यवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए अपनी जान की बाजी भी लगाने से नहीं चूके। इतिहास साक्षी है कि भारत को स्वतंत्र कराने के लिए अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की बाजी लगा दी। जिनमें शहीद भगत सिंह, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, बालगंगाधर तिलक, सुभाषचंद्र बोस आदि ने अपने शौर्य द्वारा अंग्रेज़ी सत्ता की नींव हिला दी। इनका नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। प्रस्तुत पोस्ट Subhas Chandra Bose Biography in Hindi में हम सुभास बाबू की जीवनी के बारे में जानेगें.
Subhas Chandra Bose Biography in Hindi नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जीवनी
सन् 1947 में हमारा देश आजाद हुआ। इनमें से सुभाषचंद्र बोस का यह नारा – ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा’ ने भारतीय जनता के हृदय में आशा की किरण पैदा कर दी थी। इनकी वाणी में गज़ब का जादू और चेहरे से आत्मविश्वास झलकता था। इतना व्यक्तित्व आकर्षित तथा हृदय में अपने देश के लिए मर-मिटने की चाह थी। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 13 जनवरी, सन् 1879 ई॰ को उड़ीसा प्रांत, कटक में हुआ था।
नेताजी के जीवन से जुड़े दस्तावेजों को यहाँ पढ़ें: राष्ट्रीय अभिलेखागार
इनके पिता जानकीनाथ बोस कटक के प्रसिद्ध अधिवक्ता थे। इनकी प्राथमिक शिक्षा कटक के एक यूरोपियन स्कूल में हुई। इन्हांने सन् 1912 ई॰ में मैट्रिक पास की। इनके पिता ने इन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए कलकत्ता के प्रेजीडैंसी कालेज में प्रवेश दिलाया। बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव होने के कारण इन्होंने कलकत्ता में एक अंग्रेज़ अध्यापक को पीट दिया जिसके कारण इन्हें कालेज से निकाल दिया गया। तत्पश्चात् बी॰ ए॰ की उपाधि् स्कॉटिश कालेज के विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम रह कर प्राप्त की। फिर ये आई॰ सी॰ एस॰ के लिए विलायत गये। उत्तीर्ण होकर वहाँ से लौटे। स्वदेश पहुँचते ही सरकारी नौकरी लग गयी।
आई सी एस की नौकरी को लात मारी
सन् 1920 में नेताजी नागपुर में कांग्रेस अधिवेशन में अपनी सरकारी नौकरी को लात मार कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। गांधीजी के असहयोग आंदोलन का बहुत प्रभाव पड़ा। नेताजी कई बार जेल भी गए। इन्होंने अनेक प्रकार के कष्ट भी उठाए। जिस प्रकार सोना आग में तपकर कुंदन हो जाता है उसी प्रकार नेताजी भी अनेक प्रकार के कष्टों को उठाकर स्वर्ण की भाँति कुंदन बन बए। नेताजी ही ने फारवर्ड ब्लाक की स्थापना भी की। जिसका मुख्य लक्ष्य था पूर्ण स्वराज्य की माँग तथा हिंदु-मुस्लिम एकता।
नेताजी बहुत ही गरम स्वभाव के थे। इसी कारण से इन्हें कांग्रेस भी त्यागनी पड़ी। नेताजी के इस नये रूप को देखकर ब्रिटिश सरकार ने इन्हें जेल में बंद कर दिया। वहाँ इन्होंने भूख हड़ताल कर दी। नेताजी भी कम चालाक नहीं थे। इन्हांने अपना वेश बदला और जियाउद्दीन के नाम से विदेश चले गये। सरकारी पहरे के करे-धरे पर पानी फेर गया। नेताजी छुपते-छुपाते 20 जून 1943 को टोकियो पहुँचे। वहाँ पर इन्होंने आजाद हिंद फौज का संगठन किया। जिसमें जात-पात का कुछ भेदभाव नहीं था।
एक महान देशभक्त
नेताजी के अनुसार स्वाधीनता का अर्थ केवल देश की स्वाधीनता ही नहीं था बल्कि वे समाज और व्यक्ति, स्त्री – पुरुष, अमीर – गरीब सभी की आजादी चाहते थे। उनके अनुसार यह न केवल राष्ट्र की बंधन मुक्ति है बल्कि आर्थिक वैषम्य, जातिभेद तथा सांप्रदायिक संकीर्णता एवम् जड़ता से भी मुक्ति की द्योतक है। लोग उनकी विद्वता, सरलता, वीरता और विशाल हृदय के प्रति नतमस्तक रहते थे।
सुभाष बाबू अनेक कठिनाइयाँ उठाते हुए 24 अप्रैल 1945 को रंगून से बैंकाक पहुँचे। ब्रिटिश सरकार उनकी खोज में लगी हुई थी। पर नेताजी ब्रिटिश सरकार की आँखों में धूल झौंकनें में कामयाब हुए। वे 16 अगस्त को सिंगापुर से विमान द्वारा टोकियों के लिए रवाना हुए, किंतु उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और नेताजी का कुछ पता ही नहीं चला। जापान रेडियो ने 23 अगस्त, 1945 को यह समाचार प्रसारित किया। इस सूचना पर भारतवासी आज भी विश्वास नहीं करते। उन्हें विश्वास है कि नेता जी एक न एक दिन वापिस भारत अवश्य आऐंगे।
देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने वाले देश के वीर सपूत नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बारे में कविवर रामावतार शास्त्री ने लिखा है कि
ज्ञान अर्पित, प्राण अर्पित,रक्त का कण- कण समर्पित
सोचता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और दूँ।
नेताजी इस दुनिया में जीवित है या नहीं यह तो आज तक विवाद का विषय बना हुआ है, किंतु यह निर्विवाद सत्य है कि वे भारतीय जनमानस के हृदय में एक देशभक्त योद्ध और क्रांतिकारी वीर के रूप में सदा विराजमान रहेंगे। एक महान देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी को शत –शत नमन!
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pushpendra dwivedi says
my salute to bravery of neta ji subhashchandra bose