भारतीय वांग्मय में वेदों को ईश्वर की वाणी कहा गया है. तपस्या की महत्ता बताई गयी है. प्रार्थना के साथ तपस्या या प्रायश्चित्त इच्छाशक्ति को मजबूत करती है. सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों तरह की समस्याओं के समाधान के लिए इच्छाशक्ति एक शक्तिशाली हथियार है. यह युद्ध का भी एक आयुध है चाहे वह शब्दों का हो, रूचियों का हो, आतंकवादियों को मारना हो या विश्वयुद्ध हो. प्राप्त करने की इच्छा का लक्ष्य एक अदृश्य, परन्तु अपराजेय वज्र की तरह का आयुध है. Willpower से कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है.
महर्षि दधीचि का अस्थिदान
प्राचीन भारतीय लोक साहित्य के मुताबिक़ देवताओं के राजा इंद्र ने महर्षि दधीचि से उनकी हड्डियों का दान एक अजेय वज्र को बनाने के लिए माँगा था. इसका उद्देश्य इंद्र प्रधान शत्रु असुरों के राजा वृत्तासुर को हराना था. ऐसा कहा जाता है कि दधीचि की इच्छाशक्ति ने वज्र और इसके उपयोग को अपराजेय बना दिया था. विजयी होने की इस भावना ने अच्छे सैनिकों के मनोबल को बहुत ऊँचा उठा दिया था.
युद्ध के सन्दर्भ में वेदों ने व्यक्ति के मनोबल को बहुत ही महत्व दिया है.जैसा सेनापति होता है, वैसे ही उससे सैनिक होंगे. वास्तव में सेनानायक और उसके जवानों का ऊँचा मनोबल युद्ध में विजय का एक महत्वपूर्ण कारक होता है. इंद्र के वज्र की प्रतीकात्मक कहानी, जिसमें ऋषि की हड्डियों से इसकी रचना हुई थी, यह दर्शाती है कि बुराई पर अच्छाई के युद्ध के लिए सैनिकों और संतों का बराबर योगदान था. असुरों के राजा को मारना आमजन के लिए एक अलंकारिक काव्य मात्र है. यह कथा स्त्री व पुरूषों के लिए बुराई के विरूद्ध नेकी के लिए साहस प्रदान करती है.
आतंकवाद से विश्व त्रस्त है आज
आखिरकार न्यूयार्क और वाशिंगटन डी.सी. में 11 सितंबर, 2001 को उस काले मंगलवार के दिन बुराई की नेकी पर विजय क्यों हुई थी? इस दिन नेकी की ताकतें सजग नहीं थीं, उन्हें वही कीमत चुकानी पड़ी, जो कारगिल युद्ध की शुरूआत में भारतीयों ने चुकाई थीं. दूसरी तरफ बुरी ताकतें सालों और महीनों से योजनाएं बना रही थीं. 9/11 हो या 26/11 भुगतना तो मानवता को पड़ती है. इन तथ्यों से यह संकेत मिलता है कि अपनी सुरक्षा के प्रति कभी लापरवाह मत रहो, नहीं तो नेकी को तकलीफें सहनी पड़ेंगी.
Good Versus Bad Good Wins Virtue Spreads
कोई भी व्यक्ति यह पूछ सकता है कि युद्ध के दौरान नेकी हमेशा बुराई से क्यों परेशान हो जाती है? क्या यह एक वालीवुड फिल्म की कहानी की तरह से नहीं है, जिसमें हीरो फिल्म के अंत में विलेन को खत्म कर देता है? शायद वालीवुड के दर्शक यही चाहते हैं. सिनेमा से हटकर वास्तविक जीवन में शुरूआती हार का प्रमुख कारण सजगता की कमी और आलस्य ही है. इतिहास स्वयं को दोहराता है. हमें इससे सीख लेनी ही चाहिए.
देश की सुरक्षा सर्वोपरि
स्वामी दयानन्द सरस्वती, जो कि 19वीं सदी के संत हैं और इन्होने अपनी पुस्तक ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में पवित्र वेदों पर टिप्पणी करते हुए लिखा है- देश की सुरक्षा का ध्यान रोजाना रखना चाहिए. शत्रु की धोखेबाजी की योजना और उसके दांवपेंच को काटते रहना चाहिए.
दुश्मन का पीछा चीते की तरह करो. शेर की तरह उस पर आक्रमण करो. युद्ध के वैदिक दर्शन के अनुसार शत्रु से असावधान नहीं रहना चाहिए. शत्रु पर पूर्व प्रहार ही नेकी की ताकतों की रक्षा का सर्वोत्तम रूप है.
योगेश्वर कृष्ण, जो रणनीति के कुशल माने जाते हैं, इन्होने भी दूसरों की तरफ संख्या होने के बावजूद भी भलाई का ही पक्ष लिया था. उनका जीवन हम जैसे छुद्र प्राणियों के लिए एक शिक्षा है. प्रथम दिन के नेतृत्व के स्थान पर बने रहते हुए अपने शत्रु को अपनी इच्छित युद्ध भूमि तक ले आओ. युद्धभूमि में भगवान कृष्ण का उपदेश ही तुम्हारा हवन होना चाहिए. उन्होंने कहा था, “न दैन्यं न पलायनं ” यानी न तो झुको और न ही भागो. इस प्रकार भलाई-बुराई पर विजय प्राप्त करेगी. रावण और कंस जैसे राक्षसों वाली बुराइयों की ताकत भी जीवन के दैनिक युद्ध में जीत नहीं सकती, यदि नेकी की ताकतों को आत्म निर्भरता के लिए तैयार कर दिया जाए. सैनिकों और नागरिकों दोनों में ही भी की भावना स्वाभाविक है.
बच्चों को निर्भय बनायें
हालांकि उचित प्रशिक्षण से इस पर विजय पाई जा सकती है. एक व्यक्ति, जो अँधेरे कमरे में जाने से डरता है, उसे शुरू में एक मित्र के साथ भेजने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए और फिर अकेले एक लड़का या लडकी, जो किसी काल्पनिक आत्मा से बुरी तरह से दरी हुई है, उसे उचित वैदिक साहित्य पढने के लिए देने चाहिए, ताकि उसका प्रभावित मस्तिष्क मुक्त हो सके, साथ-ही-साथ बच्चों या युवाओं को यकीन दिलाना चाहिए कि बुरी आत्माएँ जैसे-भूत, जिन्न आदि का अस्तित्व नहीं होता है वे केवल काल्पनिक कथाएँ हैं. जब भय दूर हो जाता है, तब बहादुरी स्वत: ही आ जाती है. इस सन्दर्भ में निम्नांकित वेद मन्त्र को गाकर पढने पर विशेष बल दिया गया है-
अभयं मित्रादभयमित्राद्भ्यं ज्ञातादभयं परोक्षात |
अभयं नक्तमभयं दिवा न: सर्वा आशामममित्र भवन्तु ||
ईश्वर की इस प्रार्थना में मनुष्य सर्वदा निर्भयता की स्थिति में रहना चाहता है. मुझे मित्र या शत्रु का भय न हो, मुझे ज्ञात और अज्ञात का भी भय न हो, रात और दिन का भी भय न हो. पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण सभी दिशाएँ मेरे प्रति मित्रवत भाव रखें.
अच्छाई से बुराई को हटायें सद्गुणों को फैलाएं
वैदिक विचारों को मनोबल बढ़ाने दो और एक बार जब तुम मानसिक एवं शारीरिक रूप से उच्च स्तर को प्राप्त कर लोगे, तब तुम नेकी की शक्ति के साथ आतंकवादरूपी कई सिरोंवाले बुराई के राक्षस का नाश करोगे. तुम्हारा आदर्श प्रार्थना और कर्म होना चाहिए. हमेशा स्वयं को परामर्श देते रहिए – विजयी भव, इस प्रकार तुम हमेशा विजय प्राप्त करोगे.
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Shashank Sharma says
बहुत बढ़िया..