यह एक बहुत ही प्राचीन कहानी (Ideal King Hindi Story – आदर्श राजा हिन्दी कहानी) है। उस समय देश कई छोटे- छोटे रजवाड़ों में बंटा हुआ था। लोग व्यापार करने या रोजगार की खोज में प्रायः सुदूर यात्रा करते रहते थे। एक दिन कुछ व्यापारी तेघरा से भागलपुर शहर की तरफ जा रहे थे। आज की तरह उन दिनों ट्रेन या पुल नहीं थे। एक जगह से दूसरे जगह तक जाने के लिए पैदल, बैलगाड़ी या नाव आदि का प्रयोग किया जाता था। व्यापारी अपने साथ नौकरों को भी ले जा रहे थे। कई घंटे यात्रा करने के बाद उनको एक नदी दिखाई दी। वे सभी काफी थक चुके थे। सामने बहती नदी को देख कर उन लोगों को थोड़ी सी राहत मिली। हाथ- मुंह धोकर थोड़ा जलपान किया और फिर आगे जाने के लिए एक नौका भी किराये पर ले ली।
सबों ने अपना-अपना सामान उस नाव पर रखकर आगे की यात्रा के लिए जलमार्ग से निकल पड़े।
शाम हो चली थी। ठंडी- ठंडी हवा चल रही थी। यह क्या? अचानक आसमान के एक कोने से काले- काले बादल निकल आए। बादलों के बीच से बिजली चमकने लगी। बारिश होने लगी। अब तो हवा ने भी अपनी गति बढ़ा दी। चारों तरफ अंधकार और उसपर नदी की लहरों पर डगमगाती नाव! सभी सवार परेशान! अचानक एक तेज़ लहर आई और नाव बीच नदी में पलट गई। सारे नाव सवार चीखने- चिल्लाने लगे। वे नदी में डूबने लगे। नदी की धार उनलोगों को बहाये जा रही थी।
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उसी नौका में ताराकांत नाम का एक युवा और उत्साही व्यवसायी भी था। वह भी व्यापार के सिलसिले में भागलपुर जा रहा था। वह तैरना जानता था, इसलिए उसने बीच मझधार से बाहर आने की ठानी। संयोगवश उसकी हाथ में एक लकड़ी का मोटा टुकड़ा टकराया। वह उस टुकड़े के सहारे तैरने लगा। काफी मेहनत के बाद वह नदी के किनारे तक पहुँच गया। वह कहाँ है और किस दिशा में है; उसे कुछ भी पता नहीं था। वह काफी थक गया था। थकान की वजह से धीरे- धीरे उसकी आँखें बंद हो गई और वह अचेत हो गया।
सुबह की धूप जब ताराकांत के चेहरे पर पड़ी तो वह आँख मलते हुये उठ बैठा। उसने अपने आस –पास कई सैनिकों को देखा। सामने एक तेज मुख वाला व्यक्ति भी खड़ा था जो उसकी ओर ध्यान से देख रहा था।
जब ताराकांत को होशा आया तो उस व्यक्ति ने अपने सैनिकों को आदेश देते हुये कहा – इस युवक को ले चलो। सैनिकों ने उसे उठाया और एक बग्घी में बैठकर चल दिये।
ताराकांत ने उस तेज युक्त मुख वाले व्यक्ति से पूछा – आप लोग मुझे कहाँ ले जा रहे हैं? मैं इस समय कहाँ हूँ? वह व्यक्ति शांति से बैठा रहा।
कोई उत्तर न पाकर ताराकांत परेशान था। एक बार को नदी में डूबने से तो बच गया था लेकिन शायद वह अपने आप को एक नई मुसीबत में फँसते हुये पा रहा था। उसने मन ही मन संकल्प लिया कि चाहे परिस्थिति कैसी भी क्यों न हो, वह डटकर सामना करेगा।
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बग्घी ने एक विशाल महल में प्रवेश किया। ताराकांत को बग्घी से उतारकर आदरपूर्वक महल के अंदर ले जाया गया। उस तेज मुख वाले व्यक्ति ने उसे स्नान करने को कहा। स्नान के बाद उत्तम राजसी वस्त्र दिये गए। उसे आदर सहित उसी महल में बने एक विशाल सभा कक्ष में ले जाया गया और सिंहासन पर बिठा दिया गया।
अब एक बुजुर्ग व्यक्ति सिंहासन के सामने आकार सिर झुकाते हुये बोला – महाराज! आपका नाम क्या है?
ताराकांत – उस युवक ने बताया।
उस बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा – महाराज ताराकांत! आप इस समय उत्तर बिहार के दुलार गढ़ नामक राज्य में हैं। इस राज्य की परंपरा के अनुसार आपको इस राज्य का राजा बनाया गया है। मैं इस राज्य का महामंत्री वरुणाक्ष हूँ।
ताराकांत बहुत विस्मित था। उसे यह सब एक सपना जैसा लग रहा था। वह एक व्यापारी से राजा बन चुका था।
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उसे इस तरह आश्चर्य में देख महामंत्री बोला – आप विस्मित न हों महाराज! इस राज्य का राजा एक वर्ष तक ही राज करता है। एक वर्ष पूरा होते ही उसे सामने के दुर्गम और हिंसक जीवों से भरे जंगल में छोड़ दिया जाता है। फिर नए राजा की तलाश की जाती है। राजमहल का दरवाजा खोला जाता है और जो पुरुष सबसे पहले दीख जाता है उसे ही अगला राजा बनाया जाता है।
ताराकांत मन ही मन मुस्कुरा रहा था। राजा बनते ही उसने सबसे पहले उस दुर्गम जंगल की यात्रा की। जंगल की सफाई करवाई और सभी हिंसक जानवरों को पकड़कर पिंजड़े में बंद करवा दिया। जंगल में पक्की सड़क का निर्माण करवाया। जंगल के बीच में बने एक प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इस प्रकार उस दुर्गम जंगल को सर्व सुगम बना दिया और वहाँ एक नया नगर बस गया। उस नगर में विद्यालय, वैद्यालय, राजकीय आवास, सैन्य व्यवस्था आदि उपलब्ध था।
महाराज ताराकांत ने राज्य के सभी भागों का ध्यान रखा और लोगों ने उनके कार्यकाल में व्यापार और रोजगार में खूब तरक्की की।
देखते ही देखते एक वर्ष बीत गया। ताराकांत ने सभा बुलाई और कहा – महामंत्री जी! मेरा एक वर्ष बीत गया। आप अब अपना नया राजा ढूंढ लीजिये। मुझे जाने की अनुमति दें।
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महामंत्री ने हाथ जोड़ते हुये कहा – महाराज! मंत्री परिषद और सभा के सभी सदस्यों और प्रजा की ओर से हमारी प्रार्थना है कि आप आजीवन इस राज्य के राजा बने रहें। आप जैसा कर्मठ और दूरदर्शी राजा मिलना कठिन है। आपने केवल एक वर्ष में इस राज्य का कायापलट कर दिया।
इसी बीच प्रजा ने “महाराज ताराकांत की जय” का नारा लगाना शुरू कर दिया। हमें छोडकर मत जाओ महाराज! सभा में चारों तरफ गूंजने लगी।
महाराज ताराकांत ने हाथ जोड़कर कहा – मैं आप सबके अनुरोध को स्वीकार करता हूँ। मैं अपनी पूरी शक्ति से इस राज्य की प्रजा की सेवा करने की कोशिश करूंगा।
तात्पर्य यह है कि परिश्रम, ईमानदारी और दूरदर्शिता से किया गया कार्य एक दिन जरूर रंग लाता है। इस कहानी को पढ़ने के लिए आपका बहुत – बहुत धन्यवाद!
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