प्रस्तुत पोस्ट Why did Ram Abandon Sita? Hindi Article में हम यह reality check करने की कोशिश करेंगे कि इसका असली आशय क्या है?
क्या श्रीराम ने मां सीता का सच में त्याग किया था? क्या है सच्चाई?
यदि आप दुनिया के किसी भी हिस्से के किसी भी कालखंड का इतिहास उठाकर देख लीजिए, हर जगह आपको यह मिलेगा कि जब भी कोई आक्रमणकारी व्यक्ति या राष्ट्र किसी दूसरे देश पर आक्रमण करता है तो सर्वप्रथम उनके ग्रंथ नष्ट कर देता है। कहा गया है कि यदि किसी इंसान गुलाम बनाना है तो उसकी संस्कृति पर प्रहार करो। जबतक उसकी संस्कृति स्वतंत्र है, तब तक उसे गुलाम नहीं बनाया जा सकता।
इतिहास गवाह है?
विश्व इतिहास में ऐसे बहुत सारे उदाहरण मिलते हैं जहां आक्रमणकारियों ने ग्रन्थों को नष्ट किया है। ग्रन्थों या पुस्तकों को नष्ट कर देनाम या फिर जला देना अपराध है, लेकिन उससे भी बड़ा अपराध है किताबों में कुछ अशोभनीय व असत्य को जोड़कर उनके महत्व को, उनकी पवित्रता और वास्तविकता को खंडित कर देना। और इस तरह के लोग ज्यादा खतरनाक होते हैं जो ग्रन्थों के साथ छेड़छाड़ करते हैं।
पवित्र हिंदू ग्रंथ श्री वाल्मीकि रामायण के साथ भी ऐसा ही छेड़छाड़ हुआ। वर्षों से लोगों को ऐसा कहते सुना जाता रहा है कि प्रभु श्रीराम ने अपनी गर्भवती पत्नी माता सीता को किसी के कहने पर जंगल भेज दिया था। माता सीता के परित्याग की पूरी कहानी श्री वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड में वर्णित है।
महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण ही रामायण का असली और मूर्त रूप है, क्योंकि वे स्वयं श्रीराम के समकालीन थे और कई घटनाओं के खुद साक्षी भी थे। सच तो यह है कि ऋषि वाल्मीकि ने कभी उत्तरकांड लिखा ही नहीं था।
क्या रहता है पैटर्न?
आपने अंग्रेजी का उपन्यास अवश्य ही पढ़ा होगा । आपने कभी उनके अंत पर विचार किया है। वे ज़्यादातर happy ending वाले होते हैं। जैसे कि ‘और वे सुखपूर्वक साथ साथ रहने लगे।’ इसके बाद लेखक या रचनाकार के पास कुछ कहने को शेष नहीं रह जाता । श्री वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड का 28वां सर्ग कहता है- प्रभु श्रीराम राजा बन गए, विभीषण लंका चले गए, सुग्रीव किष्किंधा लौट गए, भरत जी सेनापति नियुक्त हो गए ।
श्लोक संख्या 95 से लेकर 106 तक में इसके बाद सब सुखपूर्वक रहने लगे’ का वर्णन है। 106वें श्लोक के बाद कथा सुनने के फल का वर्णन किया गया है । इसका अभिप्राय है कि औपचारिक रूप से श्री वाल्मीकि रामायण की कथा समाप्त हुई, और लिखने के लिए अब शेष कुछ नहीं रहा। युद्ध कांड के अंतिम सर्ग का 119वां श्लोक में लिखा गया है , ‘रामायण मिदं कृत्स्मम श्रणवतः ‘पठतः सदा.. प्रीयते सततम रामः स हि विष्णु: सनातनः’ यानी यही संपूर्ण रामायण है।
121वें श्लोक में महर्षि वाल्मीकि ने लिखा है, ‘एवमेतत पुरात्रत माख्यानम भद्रमस्तु व… प्रव्या हरत विस्त्रब्धम बलम विश्णो: प्रवर्धताम’ यानी अब यह इतिहास पूर्ण हुआ। यहाँ महर्षि वाल्मीकि ने श्री राम की कथा को पूर्ण घोषित कर दिया । जब रचनाकार ने एक जगह आकार अपनी कथा को संपूर्ण घोषित कर दिया तो दुबारा से अचानक उत्तर रामायण कहां से आई और उसमें जुड़ गई , यह एक विचारणीय और अनुसंधानीय प्रश्न है ! स्पष्ट है कि उत्तर कांड को कालांतर मे श्री वाल्मिकीय रामायण मे जोड़ दिया गया और एक पूरी तरह से काल्पनिक और किसी अन्य द्वारा किया गया कुत्सित प्रयास है।
श्री राम ने माता सीता सहित हजारों वर्ष राज किया
युद्ध कांड में महर्षि वाल्मीकि राम को ‘भ्रात्रभिः सहितः श्रीमान’ कहकर संबोधित किया है अर्थात माता सीता सदियाव प्रभु श्री राम के साथ रहीं, तभी वे श्रीमान कहलाए। इसी कांड के ।28वें सर्ग में वाल्मीकि जी स्पष्ट रूप से कहते हैं कि प्रभु राम ने देवी सीता जी के साथ हज़ारों वर्षों तक श्री अयोध्या जी पर सुखपूर्वक राज किया। यानी हज़ारों वर्षो तक राम और सीता साथ – साथ रहे, तो सीता जी को वनवास के लिए कब भेजा गया ?
अग्नि परीक्षा का सच
एक अन्य बात जो देवी सीता की अग्नि परीक्षा से संबंधित है। यह सच है कि देवी सीता ने अग्नि परीक्षा दी थी, लेकिन अयोध्या में नहीं, लंका में।
जब प्रभु श्री राम ने रावण वध किया उसके बाद देवी सीता ने अपने निष्कलंक सतीत्व का प्रमाण देने के लिए अग्नि परीक्षा दी थी, न कि श्री राम का संदेह दूर करने के लिए। क्योंकि श्री राम को तो कभी अपनी सीता पर संदेह किया ही नहीं।
युद्ध कांड के 6वें सर्ग में देवी सीता का कथन है , ‘यदि मेरा हृदय एक क्षण के लिए भी श्रीराम से अलग नहीं रहा तो संपूर्ण लोकों के साक्षी अग्नि मेरी रक्षा करें।’ तभी अग्निदेव ने स्वयं प्रकट होकर प्रभु श्रीराम से कहा कि देवी सीता में कोई पाप या दोष नहीं है, आप इन्हें सहर्ष स्वीकार करें। प्रभु राम ने अग्नि के समक्ष प्रतिज्ञा ली, ‘हे अग्निदेव, मैं आपको वचन देता हूं कि जैसे एक यशस्वी व्यक्ति अपनी कीर्ति का त्याग नहीं करता, मैं आजीवन सीता का त्याग नहीं करूंगा।’ अब आप ख़ुद विचार कीजिये , अग्निदेव के सामने आजीवन देवी सीता के साथ रहने का वचन देने वाले राम क्या किसी के कहने पर उन्हें त्याग देंगे? साथ ही इसका भी ध्यान रखें कि रघुकुल रीत सदा चल आई, प्राण जाई पर वचन न जाई। धन्यवाद !
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