नवरात्र महोत्सव आसुरी शक्ति पर देवी-शक्ति की विजय का प्रतीक है. मानव मन को आध्यात्मिक प्रेरणा देने की शक्ति का पर्व-समूह है. दिन-प्रतिदिन आत्मा की पहचान की सीढी दर सीढी यात्रा है. प्रस्तुत पोस्ट Navratri Festival Navdurga Pujan Hindi Essay में हम नवरात्रि महापर्व के बारे में विस्तार से जानेंगें.
नवरात्र शक्ति की अधिष्ठात्री दुर्गा देवी के नव-स्वरूपों की पूजा के नवरात्रियों का सबूत है. ‘सप्तशती के अनुसार दुर्गा के नौ रूप हैं- (1) शैल पुत्री (2) ब्रह्मचारिणी (3)चंद्रघंटा (4) कुष्मांडा (5) स्कन्द माता (6) कात्यायिनी (7) कालरात्रि (8) महागौरी तथा (9) सिद्धिदात्री. इन्हीं नव स्वरूपों की पूजा अर्चना के लिए नवरात्रियों की कल्पना की गई है. शक्ति की पूजा के लिए शुक्ल-पक्ष की रात्रि का समय नियत करना स्वाभाविक ही है. इसलिए रात्रि के नाम पर ही नौ दिन-होने वाली पूजा के कारण ‘नवरात्र ‘नाम पड़ा है.
क्या कहता है स्कन्दपुराण?
स्कन्दपुराण के ‘काली खण्ड’ में नौशक्तियों का उल्लेख मिलता है. शतनेत्रा, सहस्रास्या, अयुतभुजा, गणास्या,त्वारिता, शव वाहिनी, विश्वा और सौभाग्य गौरी. भारत का दक्षिणी भू-भाग नवरात्र के पावन अवसर पर वन दुर्गा, शूलिनी, जातवेदा, शांति, शबरी, ज्वाला, दुर्गा , लवणा, आसुरी और दीप दुर्गा नाम से नौ दुर्गाओं को नमन करता है.
चैत्र के नवरात्रों को ‘वासन्तिक’ और आश्विन के नवरात्रों को ‘शारदीय’ विशेषण से विभूषित किया जाता है. दोनों नवरात्रों में प्रकृति का वातावरण प्राय: एक समान होता है. न अधिक ठंडक, न अधिक गर्मी. शीतल, मंद, सुगंध पवन बहने लगती है. प्रकृति वृक्षों, तथा, वल्लरियों, पुष्पों एवं मंजरियों की आभा से दीप्त हो जाती है. रात्रि की मनोहरता तो दोनों ही नवरात्रों में अत्यधिक बढ़ जाती है.
वासन्तिक नवरात्र का भी अपना महत्व है. प्रथम, चैत्र के नवरात्र के प्रथम दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत का प्रथम दिन है. नव-वर्ष की बधाई का दिन है और अंतिम दिन अर्थात् नवमी श्रीराम का जन्म दिन है. दूसरे, वह मधुमास का नवरात्र है, जिसमें मधु के स्रोत फूट पड़ते हैं. एक ओर मानव मन की उमंग और दूसरी ओर नवरात्र की पूजा का संयम.
क्यों करनी चाहिए श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ?
वासंतिक और शारदीय नवरात्रों में ‘दुर्गा सप्तशती’ के वीर-रस पूर्ण सुललित, मनोरम, कर्ण कुहरों में आनन्द की धरा बहाने वाले श्लोकों का पाठ करने-सुनने का विशेष महत्व है. ‘दुर्गा सप्तशती’ का पाठ पढने या श्रवण करने से दुःख-बाधाओं से छुटकारा मिलने के साथ ही माँ दुर्गा की कृपा दृष्टि भी बनी रहती है. ध्यातव्य है कि श्री मार्कंडेय पुराण का ‘देवी माहात्म्यं खंड’ ‘दुर्गा सप्तशती’ के नाम से जाना जाता है. इसमें देवी के चरित्र का विशद वर्णन है. समूचे संस्कृत-साहित्य में इससे बढकर लोकप्रिय दूसरा स्रोत ग्रन्थ नहीं. संभवतः हिन्दी में रामचरितमानस इसकी लोकप्रियता का प्रतिद्वन्दी ठहरता है. श्रद्धा, भक्ति और पूज्य भाषों के प्रसार में यह ग्रन्थ अद्वितीय है.
बंगाल में दुर्गा पूजा
सम्पूर्ण भारत में और विशेषता: बंगाल में शारदीय नवरात्रों का विशेष महत्व है, ‘भक्ति-भाव से दुर्गा की पूजा-अर्चना करना, पांडाल स्थापित करना, यहाँ के जन-जन के उल्लास का प्रतीक है. दुर्गा-पूजा का उत्सव आश्विन शुक्ल सप्तमी से दशमी तक मनाया जाता है, लेकिन एक मास पूर्व से ही इसकी तैयारियाँ शुरू हो जाती है. दशमी के दिन दुर्गा की मूर्तियों की भव्य एवं विशाल शोभायात्रा निकाल कर जल-विसर्जन करना बंगाल की आत्मा को दुर्गामय मन देता है. इन दिनों वहाँ विवाहित पुत्रियों को माता-पिता द्वारा अपने घर बुलाने की भी प्रथा है.
दक्षिण में यह पर्व शैवों के लिए शिव पर उमा के प्रेम की विजय का प्रतीक है तो वैष्णवों के लिए लक्ष्मी-विष्णु के वरण की सफलता का प्रतीक है. सामंतों में युद्धरत दुर्गा की पूजा और बली चढ़ने का प्रतीक है. अष्टमी या नवमी के दिन कुँआरी कन्याओं का पूजन किया जाता है और दक्षिणा दी जाती है.
नवरात्र पूजा-पाठ का पर्व है. अत: भक्ति-भाव से माँ दुर्गा के रूपों की पूजा अर्चना-वन्दना तथा दुर्गा-सप्तशती का पठन या श्रवण अपेक्षित है. नवरात्र में की गई पूजा मानव मन को पवित्र और भगवती दुर्गा के चरणों में लीन कर जीवन में सुख, शांति और ऐश्वर्य की समृद्धि करती है.
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्धसाधिके ।
शरण्ये त्रय्मबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।
नवरात्र (नौ दिनों की विशिष्ट उपासना) के रूप में निष्टापूर्वक शक्ति साधना और उसके पश्चात विजय-यात्रा अर्थात् विजयदशमी का आयोजन कर्मचेतना की उत्कृष्टता का अन्यतम उदाहरण है. वस्तुतः बिना साधना के सच्ची विजय मिल भी नही सकती.
दुर्गा के नव रूपों का संक्षिप्त परिचय :
(1) शैल पुत्री
शारदीय नवरात्र का आरंभ आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होता है. नव दुर्गा पूजन में प्रतिपदा के दिन शैल पुत्री के पूजन का विधान है. इस प्रकार की पूजा-अर्चना का श्रीगणेश शैल पुत्री से होता है.
राजा हिमवान् (हिमाचल) एवं मैना की पुत्री को शैलपुत्री कहते हैं. शैलपुत्री के दो रूप हैं – (1)सती और (2) पार्वती. सती के रूप में शैल पुत्री ने अपने पति के सम्मान को ठेस लगने पर अपना जीवन योगाग्नि में भस्म कर दिया. क्योंकि दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में भगवान शंकर को निमन्त्रण नहीं दिया था. दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में शक्ति की अधिष्ठात्री बनी. इसीलिए देवी भगवती के नौ स्वरूपों में शैलपुत्री को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ और सर्वप्रथम उनकी पूजा की गयी.
(2) ब्रह्मचारिणी
नवरात्र की दूसरी दुर्गा शक्ति का नाम है ब्रह्मचारिणी, जिसका पूरा अस्तित्व ही उदास कौमार्य शक्ति का पर्याय है. ब्रह्मचारिणी अर्थात’जो ब्रह्मा के विचरण करे.’
‘ब्रह्मादि चरितुं शौलं यस्मा या ब्रह्मचारिणी’अर्थात् सच्चिदानन्दमय ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति जिसका स्वभाव है, वह देवी ब्रह्मचारिणी है.
देवी की यह ज्योतिर्मयी भव्य मूर्ति है. आनन्द से परिपूर्ण है. अध्यात्म ने आज के दिन को ब्रह्म प्रसाद माना है और तांत्रिकों के लिए सात्विक साधना का सुअवसर.
(3) चन्द्रघंटा
‘चन्द्र:घंटाय यस्या: आह्लादकारी चन्द्रमा जिनकी घंटा में स्थित हो, उन देवी का नाम चन्द्रघंटा. दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं, चन्द्रघंटा देवी के मस्तक पर घंटा के आकार का अर्धचन्द्र विराजमान है.
माँ दुर्गा का यह शांत एवं शीतलता प्रदान करने वाला स्वरूप है. ‘या देवी सर्वभूतेषु शांति रूपेण संस्थिता.’इनके प्रचंड भयंकर घंटे की ध्वनि से सभी दुष्ट, दिव्य, विनाशकारी शक्तियों का विनाश होता है. वह शांत भाव से भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करती हैं.
(4) कूष्मांडा
भगवती दुर्गा की चौथी शक्ति का नाम है कूष्मांडा. सूर्य मंडल के मध्य में स्थित होने के कारण इसका तेज दशों दिशाओं में व्याप्त है. इनके पूजन से भक्तों के तेज एवं ओज में वृद्धि होती है. इनकी आठ भुजाएँ हैं. सिंह पर आसीन हैं. कूष्मांडा (कुम्हड़ा, काशीफल) की बलि विशेष प्रिय होने के कारण इनका नाम कूष्मांडा प्रसिद्ध हुआ.
माँ भगवती कूष्मांडा का पूजन करने से भक्त मनवांछित फल प्राप्त करते हैं. जो सहस्त्रों सूर्यों के समान दीप्त है, सूर्यमंडल के समान है, जो अपने तेज से सभी दिशाओं को प्रकाशित करती हैं, जिसकी आठ भुजाएँ हैं, जो अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सज्जित है, जिसे कूष्माण्ड की बली प्रिय है, उसे ही कूष्मांडा जानो. वह भक्तों के तेज और ओज को बढ़ानेवाली है.
(5) स्कन्द माता
आदि शक्ति दुर्गा का पंचम स्वरूप है स्कन्द माता. स्कन्द शिव-पार्वती के पुत्र हैं. देव सेना के सेनापति हैं स्कन्द कार्तिकेय का पर्याय है. वीर स्कन्द की जननी होने के कारण पंचम शक्ति को ‘स्कन्द माता’ कहा गया. इनकी तीन आँखें और चार भुजाएँ हैं. ये शुभवर्णा हैं तथा पद्म के आसन पर विराजमान हैं. पुत्रवत्सला आदि शक्ति महामाया भगवती मातृस्नेह से अभिभूत होकर अपने भक्तों एवं उपासकों की गोद भर्ती हैं.
(6) कात्यायनी
नवरात्र के छठे दिन आदि शक्ति दुर्गा के छठे स्वरूप देवी कात्यायनी के पूजन-अर्चन का विधान है.
महर्षि कात्यायन ने आदिशक्ति भगवती त्रिपुर सुन्दरी की उपासना करके उनसे यह वरदान प्राप्त किया कि वे धराधाम पर रहने वाले दुःख संतप्त प्राणियों की रक्षार्थ उनके घर में अवतरित होगीं. भगवती महर्षि कात्यायन के आश्रम पर प्रकट हुई. महर्षि ने उन्हें अपनी कन्या माना. इसलिए वे देवी कात्यायनी नाम से प्रसिद्ध हुई.
(7) काल रात्रि
विश्व के समाप्ति सूचक महाकाल, सबका नाश करने वाले काल की भी रात्रि की रात अर्थात विनाशिका होने के कारण दुर्गा की सप्तम शक्ति, कालरात्रि के नाम से जानी गई.
मधु और कैटभ नामक दुष्ट दैव्यों के आक्रांत सृष्टि को मुक्त करने के लिए महाशक्ति ने ‘काल रात्रि’ के रूप में रौद्र रूप धारण किया और दोनों का संहार किया.
(8) महागौरी
महागौरी आठवीं दुर्गाशक्ति हैं, तपस्या द्वारा परम गौर वर्ण प्राप्त करने के कारण ये ‘महागौरी’नाम से विख्यात हुई.
देवी के तीन नेत्र हैं. वृषभ (बैल) इनकी सवारी है .श्वेत वस्त्र तथा अलंकार धारण करती हैं. चार भुजाएँ हैं ऊपर बाएँ हाथ में त्रिशूल है. ऊपर के दाएं हाथ में समरू, वाद्य तथा नीचे वाले दाहिने हाथ वर मुद्रा में है.
(9) सिद्धिदात्री
दुर्गादेवी की नवीं शक्ति का नाम है सिद्धि दात्री. यह अष्ट सिद्धियों को देने वाली है. योग-साधना से प्राप्त होने वाली आठ सिद्धियों के नाम इस प्रकार हैं –(1) अणिमा (2) महिमा (3) गरिमा (4) लघिमा (5) प्राप्ति (6) प्राकाम्य (7) ईशित्व और (8) वशित्व . से सब सिद्धियाँ इस महाशक्ति की कृपा दृष्टि से अनायास की सुलभ हो जाती है.
यह देवी सिंह वाहिनी, चतुर्भुजा एवं प्रसन्नवदना हैं. दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा-उपासना देव, ऋषि, मुनि, योगी, साधक और भक्त, सभी करते हैं.
नवरात्रि के अवसर पर विधि- विधान पूर्वक पाठ और पूजा अर्चना करने से मनुष्य के समस्त पाप धुल जाते हैं. यह नौ दिनों का पूजन सबका कल्याण करनेवाला और सुख संपत्ति दायक होता है. समस्त निगेटिविटी का नाश हो जाता है. मनुष्य के आंतरिक शक्ति का विकास होता है. यह पूजन अत्यंत लाभदायक माना जाता है. बहुत भक्ति नौ दिनों तक श्री रामचरितमानस का पाठ करते हैं. देवी दुर्गा के नौ रूप आप सभी भक्तो का कल्याण करें. आप इस ब्लॉग पर आये इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद! जय माँ दुर्गा! जय माता दी!
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Snehil Goyal says
Nice Article.
नवरात्रि पर निबंध (Essay on Navratri)
happy navratri 2020 says
very nice post maa durga story
Abhihek Sharma says
Taking birth as Hindu is like become a holy soul..
Lets feel proud on our culture
Jai Shree Ram
Riya Singh says
Very Good Post Thank You