हमारे देश में अनेक त्यागी महापुरुष हुए हैं. देश व धर्म के लिए बड़ा से बड़ा त्याग करने में वे तनिक भी नहीं हिचके. भलाई के कार्यों में जो त्याग करता है, उसका नाम अमर हो जाता है.
महाराणा प्रताप मातृभूमि के उद्धार के लिए अरावली के वनों में निवास कर रहे थे. उनके साथ उनका परिवार तथा सेना भी थे. वन में रहते-रहते उनका सारा धन समाप्त हो गया. खाने-पीने के लिए भी कुछ न बचा. धन के बिना अस्त्र-शस्त्र भी नहीं मिल सकते थे. शत्रु से लड़ने के लिए अस्त्र-शस्त्र आवश्यक है. सेना जुटाना भी कठिन हो रहा था. महाराणा प्रताप बहुत चिंतित थे.
सभी लोग बहुत दुखी थे. एक दिन महाराणा प्रताप अपने परिवार के साथ वन के मार्ग से जा रहे थे. तभी उनके मंत्री भामाशाह घोड़ा दौडाते हुए वहाँ पहुँचे. महाराणा प्रताप के पैरों पर गिरकर वे बोले, “हम लोगों को अनाथ छोड़ करके आप कहाँ जा रहे हैं? मेरी एक प्रार्थना है, कृपया उसे स्वीकार करें.”
महाराणा प्रताप ने कहा – “महामंत्री ! कहिए, आप क्या कहना चाहते हैं. मैंने आपकी बात कभी टाली है क्या?”
भामाशाह अपने साथ घोड़े पर लादकर सोने की लाखों अशर्फियों से भरी हुए थैलियों लाये थे. उन्हें महाराणा प्रताप के चरणों में रखकर हाथ जोडकर वे बोले –“यह धन अकेले मेरी या मेरे बाप- दादाओं की पूँजी व कमाई नहीं है, यह तो मातृभूमि की सम्पति है. अतः उसी की रक्षा के काम आनी चाहिए. देश की पूँजी आपको समर्पित है, आप इसे स्वीकार कीजिए. देश की पूँजी आपको समर्पित है. आप इसे स्वीकार कीजिए और मातृभूमि के उद्धार के लिए सेना संगठित कीजिए.”
महाराणा प्रताप ने भामाशाह को गले से लगा लिया. उन्होंने उस धन से सेना संगठित कर मुगलों पर आक्रमण किया और उदयपुर को अपनी राजधानी बनाने में सफल हुए.
Note: आपको त्याग हिंदी कहानी कैसा लगा, अपने विचार comment द्वारा व्यक्त करें.
त्याग हिंदी कहानी के अलावे इसे भी पढ़ें::
- काठ का घोड़ा हिंदी कहानी
- होनहार बालक
- मनोबल हिंदी प्रेरक कहानी
- लोमड़ी और मोर हिंदी कहानी
- Trojan Horse Hindi Story
- तीन प्रेरणादायक हिंदी कहानियां
- जीवन की सादगी हिंदी कहानी
- बुरी आदत छूटती नहीं – हिंदी कहानी
- उबंटू- हिंदी कहानी
- सड़े आलू हिंदी कहानी
- निःस्वार्थ प्रेम हिंदी कहानी
Ashok says
bahut achhi kahani hai
dhanyawad
Ritika says
बहुत ही बढ़िया कहानी
Subham says
महाराणा प्रताप जैसा आदितीय कोई नहीं है, बहुत ही बढ़िया