सुधा नारायण मूर्ति की जीवनी in Hindi
प्रसिद्ध समाज सेविका और करिश्माई व्यक्तित्व वाली महिला सुधा मूर्ति का जन्म 19 अगस्त 1950 में उत्तरी कर्नाटक में शिगांव में हुआ था. विवाह से पहले उनका नाम सुधा कुलकर्णी था. उन्होंने बी.वी.बी.कालेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी’, हुबली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि ग्रहण की. वे राज्य में प्रथम आई, जिसके लिए उन्हें कर्नाटक के मुख्यमंत्री से एक रजत पदक प्राप्त हुआ.
सन 1974 में उन्होंने अध्ययन में और भी उन्नति की, जब उन्होंने ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस’ से कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स डिग्री ग्रहण की. उन्होंने अपने वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त किया और ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स ‘से इस उपलब्धि के लिए उन्हें स्वर्ण पदक मिला.
टेक्नोलॉजी और साहित्य का अद्भुत मिश्रण
वे एक सामाजिक कार्यकर्ता, इंजीनियर, एक संवेदनशील शिक्षक तथा एक अत्यंत कुशल लेखिका भी हैं. अन्य कामों के साथ-साथ उन्होंने कर्नाटक में सभी सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर तथा पुस्तकालय सुविधाएँ मुहैया करने का भी कदम उठाया है. वे कंप्यूटर साइंस भी पढ़ाती हैं तथा कथा-साहित्य लेखन भी करती हैं. उन्होंने ‘डालर बहू ‘नाम से कन्नड़ भाषा में एक पुस्तक लिखी थी, कन्नड़ भाषा में जिसका अर्थ होता है ’डालर पुत्र-वधू’ बाद में ऐसे अंग्रेजी में अनूदित किया गया और ऐसे ‘डालर बहू’ शीर्षक दिया गया. सन 2001 में इस पुस्तक पर आधारित एक टी.वी.धारावाहिक भी बना. सन 1974 से सन 1981 तक वे पुणे में रहीं और उसके बाद बंबई चली गई.
स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने जे.आर. डी.टाटा को पोस्टकार्ड लिखा था और उसमें यह शिकायत की थी कि ‘टाटा मोटर्स’ में लिंग पक्षपात किया जाता है, क्योंकि वहां केवल पुरूषों को ही नौकरी दी जाती है. इस शिकायत के कारण ‘टाटा मोटर्स’ के अधिकारीयों ने उन्हें इस विषय पर लंबी चर्चा के लिए बुलाया, सुधा ने ‘टेल्को’ में एक ग्रेजुएट ट्रेनी के रूप में अपना कैरियर आरंभ किया. एक अविवाहित लडकी सुधा कुलकर्णी कंपनी के शाप-फ्लोर अर्थात कारखाने में पहली महिला इंजीनियर बनी. बाद में उन्होंने ‘वालचंद उद्दोग समूह’ में काम किया.
सुधा ने श्रेष्ठतम शिक्षा पाई थी. उन्होंने जब क्राईस्ट कालेज के कैंपस में एम.बी.ए. और एम.सी.ए. विभाग के लिए एक प्रोफेसर की हैसियत से कदम रखा, तो उन्हें अपने छात्र जीवन की याद आ गई, जब वे एक मेधावी छात्र थीं और कंप्यूटर साइंस में सबसे आगे थीं वे उन अग्रणी लोगों में से एक थीं जिन्होंने भारत में ‘बौद्धिक क्रांति’ का सूत्रपात किया.
पारिवारिक जीवन
सुधा ने साफ्टवेयर उद्दोगपति एन.आर.नारायण मूर्ति से विवाह किया. टेल्को में काम करने के कुछ समय बाद दो बच्चों की मां बन चुकी सुधा ’इंफोसिस’ स्थापित करने में अपने पति की मदद करने में व्यस्त हो गई. नारायण मूर्ति ने उस छोटी सी प्रारंभिक राशि से ‘इंफोसिस ‘ की शुरूआत की थी, जो सुधा ने दुःख-विपत्ति के समय के लिए बचाकर रखी थी. वे बचे-खुचे पैसों को रसोई की अलमारी में छिपाकर रखती थी. नारायण मूर्ति बड़े गर्व से बताते हैं कि यह उसी की बची हुई धनराशी थी, जो बेंगलुरू में ‘इंफोसिस’ स्थापित करने में सहायक बनी.
बेंगलुरू में ‘इंफोसिस फाउंडेशन ‘के तृतीय तल पर स्थित कार्यालय में सुधा के विविधरूपी व्यक्तित्व को देखा जा सकता है. वे शिक्षक, इंजीनियर, लेखिका, मानव-प्रेमी और व्यवसायी महिला के रूप में सामने आती हैं. वे याद करते हुए कहती हैं, ”यह वास्तव में व्याकुलता भरा दौर था. मैं रिसेप्शनिस्ट-कम-क्लर्क-कम-प्रोग्रामर थी और मुझे यह भी देखना पड़ता था कि सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा है, लेकिन उस स्वप्न को साकार करने की दिशा में काम करना बहुत अच्छा लगता था जब ‘इंफोसिस‘ अस्तित्व में आ गया, मैं बेंगलुरू के एक कालेज में कंप्यूटर साइंस पढ़ने लगी. पढ़ने और छात्रों के बीच रहने में मुझे हमेशा सबसे ज्यादा खुशी मिलती है.”
कैसे बने एक प्रोफेशनल?
“प्रत्येक भूमिका में सफलता का सार सदैव एक ही रहा है, “सुधा कहती हैं – “आप जो भी काम करें, अच्छी तरह से करें. प्रत्येक कार्य में मेरा उद्देश्य एक ही रहा है – जब आप एक अधीनस्थ हों, तो अपने व्यवसाय के प्रति ईमानदार और निष्ठावान रहें तथा व्यावसायिक बनें, लेकिन जब आप बॉस की हैसियत में हों, अपने अधीनस्थों का ध्यान रखें ठीक उसी तरह, जैसे जब बच्चे घर पर हों, माँ को उनके साथ होना चाहिए, क्योंकि उन्हें माँ की जरूरत होती है,”
“मैंने अपने जीवन में सबसे महत्वपूर्ण बातें ’टेल्को’ में काम करते हुए सीखी हैं, जैसे कि अनुशासन और समय का पाबन्द होना, ”सुधा कहती हैं,”टेल्को में मेरा बास एक जर्मन था, जो समय की पाबंदी के मामले में बहुत सख्त था. मैंने समय का महत्व समझा और डायरियों में काम का विवरण लिखने की आदत डाल ली.”
लेखन और पुरस्कार
19 नवम्बर,2004 को ‘श्री रजा लक्ष्मी फाउंडेशन,’ चेन्नई द्वारा उन्हें ‘राजा–लक्ष्मी पुरस्कार’ प्रदान किया गया. उन्हें यह पुरस्कार सामाजिक कार्य में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया गया. उन्होंने अनेक लघु कहानियाँ भी लिखी हैं, जिनमे से अधिकतर ‘पेंगुइन’ द्वारा प्रकाशित की गई हैं. उनकी कहानियाँ सामान्य लोगों के जीवन और दान, आतिथ्य-सत्कार तथा उपलब्धि के बारे में उनके विचारों पर प्रकाश डालती हैं. उनमें से कुछ कहानियाँ इस प्रकार हैं – ‘स्वीट हास्पिटैलिटी ‘,’वाईज एन्ज अदरवाइज ‘ आदि उनका ध्यान सामाजिक कार्यों और अपने पति नारायण मूर्ति की उपलब्धियों पर भी लगा रहता है.
सन 2006 में उन्हें भारत सरकार के विशिष्ट नागरिक पुरस्कार ‘पदमश्री’ से सम्मानित किया गया, ‘सत्यभाभा यूनिवर्सिटी’ ने उन्हें डाक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की. इसके अलावा अध्यापन के लिए उन्हें अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए हैं. एक अध्यापक के रूप में उनकी सफलता का रहस्य छात्रों के प्रति उनका अनवरत् समर्पण और निस्स्वार्थ व्यवहार रहा है. इसके बदले में उन्हें अपार आदर-सम्मान मिला है. इसके लिए उन्हें कभी चीखना-चिल्लाना नहीं पड़ा. छात्रों के लिए उनका आदेश ही पर्याप्त था.
अंग्रेजी और कन्नड़ में एक प्रबुद्ध लेखक के रूप में उन्होंने नौ उपन्यास, चार तकनीकी पुस्तकें और तीन यात्रा-वृतांत लिखे हैं. इसके अलावा उन्होंने एक कहानी-संग्रह, तीन यात्रा –वृतांत लिखे हैं. इसके अलावा उन्होंने एक कहानी-संग्रह, तीन उपन्यासेत्तर पुस्तकें और दो पुस्तकें बच्चों के लिए भी लिखी हैं उनकी पुस्तकों का सभी प्रमुख भारतीय भाषाओँ में अनुवाद हुआ है और देश भर में इनकी तीन लाख से भी अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं. उन्होंने ’महारानी लक्ष्मी अम्मन्नी महिला कालेज आरंभ किया, जो बेंगलुरू यूनिवर्सिटी के अधीन एक श्रेष्ठतम कंप्यूटर साइंस विभाग के रूप में विकसित हुआ है.
एक मोमबत्ती ही सही मगर जलाओ जरुर
सुधा का जीवन में एक लक्ष्य है कि उन्हें एक नेक इन्सान के रूप में याद किया जाए. वे छोटी-छोटी चीजों में खुशी खोजती हैं और मानती हैं कि सरल होना और दिल का धनी होना महत्वपूर्ण है.
Sudha Murthy का जीवन अध्यवसाय और कर्मठता का प्रमाण रहा है वे दूसरों से मीलों आगे निकल गई हैं उनका जीवन एक आदर्श है सामान्य महिलाओं को उनकी पुस्तकों से यह सबक लेना चाहिए. सुधा मूर्ति ने अर्नेस्ट हेमिंग्वे के इस कथन को साकार कर दिखाया है कि ‘अँधेरे में रहने से बेहतर है कि एक मोमबत्ती जला लें.’
सुधा की जीवन –यात्रा ठीक ऐसी ही रही है यह बात वे लोग अवश्य समझेंगे जो उनसे परिचित हैं. उन्होंने जीवन के हर मोड़ पर ऐसा कुछ किया, जो इतिहास बन गया. वे एक समर्पित पत्नी हैं और एक समर्पित माँ भी एक लेखक और लोकोपकारी संगठन ‘इंफोसिस फाउंडेशन’ की अध्यक्ष होने के अलावा वे एक शिक्षक एवं सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी प्रसिद्ध हैं.
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Rajeev Moothedath says
Very nice article! Thanks for sharing!
RAYEESH ahmad says
beautyfull artical
Hindi Vishwa says
नारायण मुर्तिजी की सफलता के पीछे सुधाजी का बहुत बड़ा योगदान है | सुधाजी एक समाजसेविका भी है |
इससे ये सिखने को मिलता है आदमी कितना भी आगे जाये उसे समाज को भुलाना नहीं चाहिए |
बहुत अच्चा लेख है | धन्यवाद
Borisagar urvi says
Very nice