Bachchon ka Prahasan Hindi Story/बच्चों का प्रहसन हिंदी कहानी
प्रस्तुत पोस्ट Bachchon ka Prahasan Hindi Story में एक कहानी से द्वारा यह दिखाया गया है कि घर में या स्कूल में बच्चे किस प्रकार प्रहसन करते हैं और अपने भावों को अभिव्यक्त करते हैं. बच्चे कभी मां की साड़ी पहनकर मां की तरह दीखना चाहती है तो कभी पापा का शर्ट पहनकर पापा का नक़ल उतारते हैं.
टोलू को इन दिनों कविता लिखने की धुन सवार थी. कभी – कभी तो वह अपनी बात भी कविता में गाकर सुनाता. माँ कहती – अपनी आदत मत बिगाड़ो. कविता में बात करोगो तो मोलू भी तुम्हारी बात नहीं सुनेगा. पर टोलू का एक ही उत्तर होता – माँ तुम ध्यान से सुनो. हर बात में कविता और हर आवाज में संगीत है. देखो न, यह बिल्ली का बच्चा तो हर बात में म्याऊँ – म्याऊँ की कविता गाता रहता है.
इस बात पर मोलू को बड़ी हँसी आती. वह हो – हो कर जोर – जोर से हँसने लगता. माँ मुस्कुरा कर चुप हो जातीं
उस दिन छुट्टी थी. माँ ने नाश्ते में टोलू की पसंद के सन्देश बनाए. टोलू को आवाज दी – टोलू नास्ता तैयार है. आ जाओ.
कोई आवाज नहीं आई. माँ ने मोलू को आवाज दी. उसका भी कुछ पता न चला. माँ ने रसोई का दरवाजा बंद किया. बैठक में झाँका, टोलू न दिखाई दिया. सोने वाले कमरे में भी नहीं. खिलौने वाला कमरा भी खाली था. तभी सीढी के नीचे की तिकोनी जगह में मोलू बैठा दिखाई दिया. माँ उधर गई. वहाँ का दृश्य कुछ यों था.
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दस वर्ष का टोलू धोती – कुर्ता पहने, चेहरे पर नकली मूँछ बनाए था. कंधे पर अंगोछा रखा था. हाथ में बेंत लिए वह मास्टर साहब बना खड़ा था. बगल में कुर्सी थी. मेज पर बालबोध पुस्तक खुली रखी थी. दीवाल पर काठ का बोर्ड टंगा हुआ था. उस पर लिखा था – च छ ज झ –. नीचे उसका छोटा भाई मोलू बिल्ली के बच्चे को गोद में लिए बैठा था
माँ चुप न रह सकीं पूछा – यह क्या हो रहा है? हाथ में बेंत लेकर क्यों खड़े हो?
माँ, मैं कब से इस बिल्ली के बच्चे को पढ़ा रहा हूँ – च छ ज झ ञ और यह है कि करता है केवल म्याऊँ – म्याऊँ, म्याऊँ – म्याऊँ टोलू बोला.
पर यह बेंत क्यों?– माँ ने फिर पूछा. इस पर टोलू ने गाकर कहा – ‘आज तो मैं हूँ संजीव मास्टर का चेला मेरा है बिल्ली का छौना ! इस पर थोड़े ही पडती है बेंत, माँ डंडा तो है यों ही एक डरौना. आने में देरी करता है रोज यह, पढने में जी देता नहीं दिखाई ! बक – बक करता मरता मैं, पर यह तो केवल दायाँ पाँव उठाकर भरे जम्हाई ! रात – दिन बस खेल-खेल, पढने लिखने में है बिल्कुल बैल, मैं कहता, पढ़ च छ ज झ ञ . यह कहता बस म्याऊँ – म्याऊँ, म्याऊँ – म्याऊँ.
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टोलू ने अक्षर ज्ञान पोथी पुस्तक उठा ली और फिर बोला – ‘अक्षर ज्ञान पोथी का पन्ना खोले मैं तो समझाता हूँ कि लाख कि मेरे बच्चे ‘ चोरी करके खाना कुछ न कभी तुम, बनना भोला – जैसे अच्छे, सच्चे ! लेकिन सारा सिखलाना बेकार है, कभी न देता एक सीख पर कान, मछली कहीं पड़ी दिख जाए तो बस, रहता दुनिया में न और कुछ ध्यान.
गौरेया दीखते ही उस पर टूटता, पढना – लिखना छोड़ – छाड़कर छूटता, लाख सिखाऊँ च छ ज झ ञ , यह कहता, म्याऊँ – म्याऊँ, म्याऊँ – म्याऊँ.
आपने भी इस तरह से अपने घर में बच्चों को इस तरह से अपने स्कूल का, अपने दोस्तों का, अपने टीचर का नक़ल उतारते देखा होगा. वाकई बच्चों की ये बातें और उनका अंदाज अतुलनीय होता है. उसमें एक अजीब- सी मासूमियत होती है.
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