हार में जीत के अंकुर Haar Mein Jeet ke Ankur Motivational Article
मानव को यदि किसी कार्य में हार मिलती है तो उसकी वह हार या पराजय उसके जीवन की अंतिम हार नहीं है. पुराने होने वाले हर वृक्ष के अंदर, नए पैदा होने वाले वृक्ष का बीज या अंकुर समाया हुआ होता है. असफलता या पराजय किसी भी कार्य का पुराना एवं निष्क्रिय हो पड़ा बीज है. उसी बीज में ही सफलता के नये वृक्ष का अंकुर समाया हुआ होता है. जरूरत है तो उस बीज को नई खाद, मिट्टी तथा जल मिलने की अर्थात कार्य के लिए नई-नई अनुकूल परिस्थितियाँ प्राप्त होने की.
कभी-कभी अच्छे बीज को भी उत्पन्न होने के लिए समय का इंतजार करना पड़ता है. व्यक्ति को सफलता यों ही नहीं मिल जाती. कई बार हमको सफलता आने का इंतजार भी करना पड़ता है और वह इंतजार या परीक्षा बड़ी बेसब्र करने वाली होती है.
हार एक स्वाभाविक घटना है
एक बार अपने कार्य की सफलता का प्रयत्न करने के बाद अगर आदमी उस कार्य में असफल हो जाता है तो उसके लिए पुनः प्रयत्न करके सफलता पाना कोई कठिन या असम्भव बात नहीं रह जाती. कारण यह है कि वह एक बार तो सफलता की प्रक्रिया के दौर में गुजर ही चुका होता है अतः कार्य करने का उसको अनुभव हो जाता है. वह फिर से उन गलतियों को नहीं दोहराता, जिन गलतियों को वह पहले दोहरा चुका होता है.
फलस्वरूप अगली बार व्यक्ति बड़ी सावधानी से अपने कर्तव्य मार्ग में कदम बढ़ाता है या अपने कदम फूँक-फूँक कर रखता है. हार या पराजय में ही सफलता या विजय का अक्स अथवा रूप छिपा होता है जो व्यक्ति सफलता के इस अक्स को पहचान लेता है, वह फिर से दूने उमंग से तथा उत्साहपूर्वक उस कार्य को करने में लग जाता है.
जिन्दगी में हार या पराजय का मिलना मनुष्य के लिए कोई बड़ी बात नहीं होती. यदि सफलता की जीवन में कई सम्भावनाएँ हैं, तो असफलता की भी अनेक सम्भावनाएँ हैं इसलिए अपनी हार या असफलता से निराश होना मनुष्य के लिए ठीक नहीं है. जीवन में हार का मिलना विशेष बात नहीं है. विशेष बात तो इसमें है कि एक बार हार या पराजय मिलने के बाद फिर से विजय को पाने का प्रयत्न किया जाए.
असफलता से सीखें
प्रतिदिन दूर क्षितिज पर सूर्य उदित होता है और अस्त भी होता है. जिस प्रकार सूर्य का उगना बड़ी बात नहीं है, उसी प्रकार सूर्य का अस्त होना या पश्चिम दिशा में छिप जाना भी कोई बड़ी बात नहीं होती. अस्त होते सूर्य के अंदर उदित होने वाले सूर्य के अंकुर समाये हुए होते हैं. सूर्य हमेशा के लिए कभी नहीं छिपता. वह हमेशा उदित होने के लिए ही अस्ताचल हो जाता है.
इसी प्रकार असफलता हमको मिलती है सफलता के योग्य बनाने के लिए या सफल बनने की प्रेरणा देने के लिए. कोई भी असफलता, अंतिम असफलता नहीं होती. असफलता मनुष्य को मिलती है पुनः सफलता हमको दिलाने के लिए. असफलता के स्वरूप में सफलता के रूप या अक्ल के अंकुर पहले से ही समाये होते हैं.
दिन चक्र में हम देखते हैं कि सूर्य सुबह के समय पूर्व दिशा से उगता है. इसके बाद शनै:-शनै: वह आकाश में ऊपर चढ़ता हुआ अपनी तेज किरणों को फैलता है. इस तरह दोपहर होती है और फिर सूर्य की दिशा पश्चिम की ओर होती है. शाम के समय वह पश्चिम में जाकर छिप जाता है. फलस्वरूप आकाश में अँधेरा होता है और रात होती है. रात के बाद सूर्य अपने समय पर क्षितिज से पुनः उदित होता है और आकाश में उजाला करता हुआ सवेरा करता है.
प्रयत्न करते रहें
सफलता और असफलता का चक्र भी इसी प्रकार का है. सफलता के लिए जब व्यक्ति अपना कदम आगे बढ़ाता है तो वह सूर्योदय की तरह नए कार्य की शुरूआत करता है. दिन चढने की तरह वह अपने कार्य में उन्नति पाता हुआ कार्य को कई चरणों में पूरा करता है. जब उसका कार्य अंतिम चरण में पूरा हो जाता है तो उसको उस कार्य में सफलता प्राप्त होती है जब कभी कोई व्यक्ति कार्य को करने में कोई भूल या लापरवाही कर देता है तो उसे कार्य में असफलता भी मिल जाती है.
लेकिन एक बार असफलता पाकर व्यक्ति को चुपचाप नहीं बैठ जाना चाहिए और कार्य की सफलता के लिए पुनः प्रयत्न करना शुरू कर देना चाहिए. कारण कि असफलता के भीतर सफलता के तत्व या अंकुर पहले से ही समय हुए होते हैं. आदमी अगर जरा सी हिम्मत अपने भीतर रखे तो वह सफलता के रास्ते पर कई पग आगे बढ़ सकता है.
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Nutan Srivastava says
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