Dr Sarvepalli Radhakrishnan Quotes in Hindi डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनमोल विचार
भारतरत्न डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के छोटे से गाँव में 5 सितम्बर, 1888 में हुआ था. बचपन से ही उन्हें पुस्तकें प्रिय थीं. 1909 में उन्होंने दर्शनशास्त्र लेकर परीक्षा पास की. ये हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे. उनका कहना है कि धर्म तो केवल अनुभव की वस्तु है, बाहर से लादने की नहीं. आंध्र विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट् की उपाधि दी थी. 1936 में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ‘प्राच्य धर्म और आचार’ के नए विभाग में उन्हें अध्यक्ष नियुक्त किया गया. वे भारत के उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति रहे. प्रतिवर्ष 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस उनकी याद में मनाया जाता है.
Dr Sarvepalli Radhakrishnan Quotes in Hindi डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनमोल विचार
1. किताबें वह साधन हैं जिनके द्वारा हम भिन्न- भिन्न संस्कृतियों के बीच सेतु का निर्माण कर सकते हैं.
2. हम जिस चरित्र का निर्माण करते हैं, वह हमारे साथ भविष्य में भी रहेगा तब तक कि हम ईश्वर का साक्षात्कार कर उसमें लीन नहीं हो जाते.
3. इस जीवन में जो कुछ होता है, वह सब कुछ हमारी आँखें नहीं देख पातीं. जीवन केवल भौतिक कारणों तथा प्रभावों की श्रृंखला मात्र नहीं है.
4. हिलती हुई उँगलियाँ लिखती हैं और लिखने के बाद हिलती रहती हैं.
5. हम दुनिया के सामने पराजय की तुलना में अपनी सफलता और अपनी हानि के बजाय लाभ का ज्यादा दिखावा करने के लिए उत्सुक रहते हैं.
6. ये दुःख और संघर्ष , जो हमारी चेतना में इतना अधिक स्थान प्राप्त कर रहे हैं, पृथकतावादी प्रवृतियों के समाप्त होने तथा समूचे विश्व में राष्ट्रीय समाजों की एकता के आन्दोलन के प्रतीक हैं.
7. सच्चे गुरू हमें नई-नई स्थितियों में सोचने में सहायता देते हैं.
8. सच्चा गुरू भगवद्गीता के कृष्ण की तरह होता है, जो अर्जुन को स्वयं देखने तथा अपनी इच्छानुसार कार्य करने का परामर्श देता है- “यथा इच्छसि तथा कुरू.
9. दर्शनशास्त्र की आवश्यकता तब पैदा होती है, जब परम्परा में आस्था डिगने लगती है.
10. हिन्दू धर्म के विचार की पद्धतियाँ और महान अंतर्दृष्टियां तथा आधारभूत प्रवृतियाँ हमारे लिए आज भी सार्थक हैं.
11. मैं यह सुझाव नहीं देता कि मैं कुछ अन्य विचारकों से सीखना अस्वीकार करता हूँ.
12. भारतीय ज्ञान ने दक्षिण-पूर्व एशिया के क्षेत्रों, जिन्हें अभी हाल तक बृहत्तर भारत कहा जाता था के सांस्कृतिक विकास में भी प्रभावी योगदान दिया है.
13. भारत का ऐतिहासिक प्रभाव शांति की कला के जरिए फैला युद्ध के हथियारों से नहीं नैतिक नेतृत्व से फैला, राजनैतिक प्रभुत्व से नहीं.
14. ऐतिहासिक लेखन, सर्जनात्मक कार्य है. यह ऐतिहासिक अनुसन्धान से भिन्न होता है.
15. विश्व के विभिन्न भाग अब अलग-अलग तथा एक-दूसरे से स्वतंत्र होकर बहुत अधिक समय तक विकसित नहीं हो सकते.
16. उपवास करना और जोर-जोर से चिल्ला कर प्राथर्ना अथवा कीर्तन करने ही का नाम पूजा नहीं हैं. हृदय का निवेदन ही सच्ची पूजा है.
17. मन की शांति का मूल्य जीवन में बहुत है- संपत्ति एवं स्वास्थ्य से भी अधिक.
18. धार्मिक विश्वास उसी सीमा तक ठीक होते हैं, जहाँ तक उनमें और जीवन की घटनाओं में समय होता है.
19. कष्ट सह कर ही हमें ज्ञान होता है.
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20. हमें पक्षियों के सदृश हवा में उड़ना सिखाया जाता है, मछलियों के सदृश पानी में तैरना सिखाया है, परन्तु हम जीवन पर किस तरह रहें यह हम नहीं जानते.
21. जीवन का सबसे बड़ा उपहार एक श्रेष्ठ जीवन का सपना है.
22. ज्ञान हमें शक्ति देता है और प्रेम हमें पूर्णता प्रदान करता है.
23. मृत्यु न अंत है और न ही बाधा, यह तो अधिक से अधिक नए क़दमों का आरंभ है.
24. शांति आर्थिक या राजनीतिक परिवर्तन से नहीं आती, यह तो मनुष्य के स्वभाव में परिवर्तन से आती है.
25. शिक्षा का उद्धेश्य एक मुक्त और रचनाधर्मी व्यक्तित्व का निर्माण होना चाहिए जो ऐतिहासिक परिस्तिथियों और प्राकृतिक विपदाओं से संघर्ष कर सके.
26. पुस्तक पढने से हमें एकांत में चिंतन करने की आदत और वास्तविक खुशी मिलती है.
27. एक कवि के धर्म में किसी एक खास सिद्धांत के लिए कोई स्थान नहीं होता.
28. हर्षपूर्ण और आनंद युक्त जीवन सिर्फ ज्ञान और विज्ञानं के आधार पर ही संभव है.
29. जीवन को एक बुराई के रूप में देखना और जगत को मिथ्या समझना केवल कृतघ्नता है.
30. वैभव, ताकत और कार्यकुशलता जीवन के साधन हैं, जीवन नहीं.
31. संगीत और कला की उपासना करो और भावना के धर्म को उन्नत करो.
32. पूजा ईश्वर की नहीं होती बल्कि उनके नाम पर प्रवचन करनेवालों की होती है. पवित्रता का उल्लंघन करना पाप नहीं, बल्कि इनकी आज्ञा नहीं मानना पाप बन जाता है.
33. धर्म भय पर विजय है, यह असफलता और मृत्यु की दवा है.
34. अगर मानव दानव बन जाता है तो यह उसकी हार है. यदि मनुष्य नेक इंसान बन जाता है तो यह उसकी जीत है. यदि मानव महामानव बन जाता है तो यह चमत्कार है.
35. कोई भी व्यक्ति जो स्वयं को सांसारिक गतिविधियों से दूर रखता है, इसके कष्टों के प्रति असंवेदनशील है, एक बुद्धिमान व्यक्ति कतई नहीं हो सकता.
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