सोयाबीन अच्छे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण
हम लोगों में से बहुत सारे लोग अपने भोजन में सोयाबीन लेना पसंद करते हैं. यह हमारे proper nutrition के लिए बहुत ही उपयोगी होती है. सोयाबीन के बहुत सारे ब्रांड मार्केट में मिल जाते हैं, लोग अपनी पसंद के मुताबिक़ इन ब्रांड्स का चयन करते हैं. सबसे important बात यह है कि आप इसे अपने भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं. प्रस्तुत पोस्ट Soyabean Health Benefits in Hindi में हम सोयाबीन के गुणों के बारे में विस्तार से जानेगे.
यह हमारे शरीर में उत्पन्न होने वाले कई रोगों को दूर करने में सहायक होती है। इसके लगातार सेवन से अनेक प्रकार की बीमारियों से सुरक्षा मिलती है। यदि नियमित रूप से सोयाबीन का उपयोग किया जाय तो कुपोषण को दूर किया जा सकता है और यौवन बनाये रखा जा सकता है। सोयाबीन में पोषक तत्वों की भरमार है और इससे उच्च कोटि के प्रोटीन के अलावा fiber (रेशा), कैल्शियम, मैग्नीशियम, अमीनो एसिड आदि प्राप्त होता है।
कुपोषण में बहुत सहायक Soyabean Health Benefits in Hindi
सोयाबीन विश्व की सबसे महत्वपूर्ण तिलहनी और legume species की फसल है। अन्य legume species फसलों की तुलना में इसकी उत्पादकता कहीं अधिक होती है। यह एक सबसे अधिक व उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन का स्रोत है। इसमें 40 प्रतिशत प्रोटीन और लगभग 20 प्रतिशत वसा पाई जाती है। इसके प्रोटीन में मानव शरीर के लिए आवश्यक सभी प्रकार के amino acid उपलब्ध हैं। साथ ही प्रचुर मात्रा में minerals और vitamins होने के कारण यह भारतीय भोजन में समावेश करने के लिए उपयुक्त है। देश की जनता में खासकर ग्रामीण भागों में विस्तृत रूप से व्याप्त प्रोटीन कुपोषण यानी protein malnutrition की समस्या से मुक्ति दिलाने में सोयाबीन एक महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ साबित हो सकती है।
Nutrition Facts of Soy Bean per 100 grams
यदि कैलोरी की मात्रा को लें तो 100 ग्राम सोयाबीन से 416 कैलोरी उर्जा प्राप्त होती है. इस 100 ग्राम सोयाबीन में अन्य पदार्थ की मात्रा इस प्रकार है. इसमें पानी 8.5 ग्राम; प्रोटीन 36.5 ग्राम; वसा 19.9 ग्राम; फैटी एसिड 2.9 ग्राम; कार्बोहाइड्रेट 30.2 ग्राम; फाईबर (तंतु) 9.3 ग्राम; कैल्शियम 277 मि. ग्राम; लौह तत्व 15.7 मि. ग्राम; मैग्नीशियम 280 मि. ग्राम; फॉस्फोरस 704 मि. ग्राम; पोटासियम 1797 मि. ग्राम; सोडियम 2.0 मि. ग्राम; जिंक 4.9 मि. ग्राम; कॉपर 1.7 मि. ग्राम; मैग्नीज 2.52 मि. ग्राम; सेलेनियम 17.8 मि. ग्राम; विटामिन सी 6.0 मि. ग्राम; Vitamin B1 0.874 मि. ग्राम; विटामिन बी 2 0.87 मि. ग्राम; Vitamin B3 1.62 मि. ग्राम; विटामिन बी 5 0.79 मि. ग्राम; विटामिन बी 6 0.38 मि. ग्राम; फोलिक एसिड 375 म्यू ग्राम; विटामिन ए 2.0 म्यू ग्राम और विटामिन ई 1.95 मि. ग्राम पाया जाता है.
इस प्रकार सोयाबीन में उपलब्ध उपयोगी तत्व की प्रचुरता इसे भोज्य पदार्थों में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाता है.
सोयाबीन विदेशी मुद्रा का साधन
सोयाबीन ने देश के खाद्य तेल की आवश्यकता की पूर्ति करने में महत्वपूर्ण योगदान के साथ-साथ प्रत्येक वर्ष सोया-खली के निर्यात से 7000 हजार करोड़ से अधिक विदेशी मुद्रा अर्जित कर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की है। विभिन्न अनुसंधान एवं विकास संस्थानों, सहकारी, शासकीय एवं अशासकीय, उद्योग जगत तथा विस्तार कार्यकर्ताओं के अथक प्रयासों व कृषकों के सहयोग से इक्कीसवीं सदी की इस चमत्कारिक फसल में काफी उतार-चढाव के बावजूद देश की फसल प्रणाली में अपना विशेष स्थान अर्जित किया है।
मध्यप्रदेश को सोया राज्य कहा जाता है. यहाँ कृषकों के सामाजिक व आर्थिक उत्थान में मुख्य भूमिका निभाने वाली इस फसल की व्यावसायिक खेती वर्तमान में मुख्य रुप से मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश में की जाती है। इस तरह देश के लघु व सीमांत कृषकों को आर्थिक समृद्धि प्रदान करने के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त प्रोटीन युक्त कुपोषण की समस्या के समाधान हेतु सोयाबीन एक अत्यंत प्रभावशाली, सस्ता एवं उपयोगी उपाय है।
प्रोटीन की प्रचुरता और पौष्टिकता का महत्व
Soyabean प्रोटीन का सबसे सस्ता एवं सर्वाधिक मात्रा वाला उपयोगी स्रोत है। अन्य स्रोतों की तुलना में सोयाबीन में उच्च गुणवत्तायुक्त 40 प्रतिशत प्रोटीन उपलब्ध है। इसके प्रोटीन में मानव शरीर के लिए जरुरी सभी अमीनो अम्लों की उपस्थिति के साथ-साथ लगभग 20 प्रतिशत वसा (तेल) पाई जाती है जिसमें हृदय रोगियों के लिए विशेष रूप से उपर्युक्त ओमेगा-3 एवं ओमेगा-6 नामक अमीनो अम्लों का सही अनुपात प्राप्त होता है।
विटामिनों की अधिकता व स्वास्थ्य की सुरक्षा
परिपक्व सोयाबीन में विटामिन बी कॅाम्पलेक्स श्रेणी के विटामिन जैसे थायमीन एवं राइबोफ्लेविन की मात्रा भी अधिक होती है। इसी प्रकार अंकुरित सोयाबीन एवं अविकसित सोयाबीन (हरी फलियों) में विटामिन ‘सी’ एवं विटामिन ‘ए’ (बीटा-कैरोटिन) भी पर्याप्त मात्रा में है। यह विटामिन ‘ई’ (टोकोफीरोल) का भी अच्छा स्रोत है जोकि प्राकृतिक प्रति ऑक्सीजनकारक है।
कैल्शियम एवं लोहा की पर्याप्त मात्रा
सोयाबीन में कैल्शियम और लौह तत्त्व की प्रचुर मात्रा पाए जाने के कारण के कारण यह महिलाओं के लिए विशेष रूप से लाभकारी है। इसके विपरित इन तत्वों के लोकप्रिय स्रोत डेयरी दूध में इन तत्वों की मात्रा नगण्य होती है। अतः एनीमिया (खून में हीमोग्लोबीन की कमी) एवं ऑस्टियोपोरोसिस यानी हड्डी का क्षरण से पीड़ित महिलाओं के लिए सोयाबीन का प्रतिदिन सेवन अत्यंत लाभकारी है।
मधुमेह व हृदय रोगियों के लिए लाभकारी
सोयाबीन में स्टार्च की अनुपलब्धता के कारण अन्य दालों की तरह इसकी दाल नहीं बन पाती है। इसमें लगभग 20-25 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट्स तथा इसके छिलके में दस प्रतिशत उच्च गुणवत्तायुक्त रेशे (घुलनशील एवं अघुलनशील ) भी होते हैं जोकि भोजन का अभिन्न अंग हैं। सोया-आधारित खाद्य प्रदार्थों में कार्बोहाइड्रेट्स को ग्लूकोज में बदलने की क्षमता (ग्लाइसेमिक इण्डेक्स) कम होती हैं। अतः यह मधुमेह के रोगियों के लिए अत्यधिक उपयुक्त है। साथ ही कोलेस्ट्रोल रहित होने एवं इसकी वसा में पॉली अनसेचुरेटेड वसीय अम्लों (PUFA) की अधिकता से शरीर में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने हेतु (सोया आधारित खाद्य पदार्थ) हृदय रोगियों के लिए भी लाभकारी है। इसके अतिरिक्त सोया दूध उन बच्चों और व्यस्कों के लिए भी उपयुक्त है जिनमें लैक्ट्रोज एन्जाइम की कमी से डेयरी दूध में उपस्थित लेक्ट्रोज शुगर के पाचन में दिक्कत होती है।
महिलाओं से संबंधित व्याधियों (कैंसर, मीनोपाज व ऑसटिओपोरोसिस) से बचाव
सोया-आधारित खाद्य पदार्थों में आइसोफ्लेवोन नामक फाइटोरसायन पाया जाता है जोकि कैंसर प्रतिरोधक तत्व है (खासकर महिलाओं में स्तन एवं पुरुषों में प्रोस्टट कैंसर)। सामान्यतया महिलाओं में 45 वर्ष की आयु के पश्चात रजोनिवृत्ति से संबंधित समस्याएं होती हैं। (रात में पसीना आना, चिड़चिड़ापन, मुंह का लाल व गर्म हो जाना, आदि)। प्रतिदिन 50 ग्राम सोयाबीन के किसी भी खाद्य पदार्थों के सेवन से इन समस्याओं से निजात पाई जा सकती है।इसी प्रकार रजोनिवृत्ति के पश्चात इस्ट्रोजन नामक हार्मोन की कमी से हड्डियों में होने वाली कैल्शियम की कमी की पूर्ति की जा सकती है।
Bone Density बढाने में सहायक
सोया-आधारित खाद्य उपयोगों से हड्डियों की सघनता बढ़कर उन्हें मजबूती प्रदान होती है। उपयुक्त स्वास्थ्य संबंधी लाभ प्रतिदिन न्यूनतम पचास ग्राम सोयाबीन का उपयोग करने से संभव है। ध्यान रहे कि सोयाबीन का उपयोग उबालकर या तलकर अथवा प्रसंस्करित करके ही करना चाहिए.
इसके लिए घरेलू पदार्थ (जैसे सोया नमकीन, सोया आटा एवं संबंधित पदार्थ, सोया दूध एवं तत्सम् पदार्थ, सोया ओकारा आधारित विभिन्न पदार्थ) बनाने की विधियां आगे दी गयी हैं. इन्हें आसानी से तैयार किया जा सकता है।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में वैसे तो अनेक फसलें उत्पन्न की जाती हैं लेकिन उनमें सोयाबीन का एक ख़ास स्थान है। सोयाबीन ख़ास तौर पर मध्य प्रदेश एवं अन्य राज्यों में व्यापारिक तौर पर सन 1981 से ही उगाई जा रही है। यद्यपि यह ज्ञात है कि सोयाबीन को रोजाना के भोजन में 50 ग्राम शामिल करने से स्वास्थ्य सुरक्षा प्राप्त होती है फिर भी खाद्य पदार्थ के रूप में इसका उपयोग केवल खाद्य तेल को छोड़कर अन्य किसी रूप में ज्यादा प्रचलित नहीं है।
महात्मा गांधी भी सोयाबीन खाना पसंद करते थे (Soyabean Health Benefits in Hindi)
पिछले 30 वर्षों के अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रमों के माध्यम से सोयाबीन फसल के रूप एवं उत्पादन में काफी बदलाव आए। लेकिन अभी तक यह फसल वह स्थान प्राप्त नहीं कर पाई जिसके लिए हमारे कृषिविद्, नियोजक तथा वैज्ञानिकों ने सपने देखे थे। सोयाबीन के पौष्टिक एवं अन्य गुणों को देखते हुए हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांघी सहित तत्कालीन कृषि वैज्ञानिकों एवं नेताओं ने इसको खाद्य पदार्थों के रूप में उपयोग की भी अनुशंसा की थी। लेकिन वर्तमान में अभी तक सोयाबीन ’’खाद्य तेल’’ को छोड़कर अन्य किसी रूप में उपयोग में नहीं हो पायी है।
सोयाबीन एक चमत्कारिक फसल
Soyabean को एक चमत्कारिक फसल कहे तो यह अतिशयोक्ति बिल्कुल नहीं होगी। इसमें पाई जाने वाली प्रोटीन की प्रचुर मात्रा, विटामिनों की अधिकता, लोहे की पर्याप्त मात्रा एवं पोषक तथा लाभकारी तत्व जैसे-आईसोफ्लेवोन, जोकि कैंसर व उसके जैसी अन्य खतरनाक बीमारियों को दूर रखने में मदद करता है एवं खासकर महिलाओं से संबंधित व्याधियों जैसे-मीनोपॉस (रजोनिवृत्ति के समय होने वाली पीड़ा), स्तन कैंसर एवं अन्य गुणों के कारण इसे ’’क्रियाशील खाद्य’’ के रूप में भी देखा गया है। इसमें कोलेस्ट्रॉल की मात्रा नहीं होने के कारण मधुमेह के रोगियों के लिए एवं पॉलीअनचेच्युरेटेड वसीय अम्लों की अधिकता देखते हुए हृदय रोगियों के लिए भी चिकित्सकों द्वारा अनुशंसित किया जाने लगा है।
सोयाबीन का स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा में बहुत महत्वपूर्ण योगदान है. इसका दैनिक जीवन में प्रयोग स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है और हमें बीमारियों से दूर रखता है. सोयाबीन में मौजूद इन्हीं गुणों के कारण देश में प्रोटीन संबंधी कुपोषण को दूर करने के लिए एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है. सोयाबीन पर हो रहे तमाम रिसर्च और अध्ययन के आधार पर इस प्रकार की स्वदेशी तकनीक विकसित किया जा रहा है कि सोयाबीन से बने पदार्थ आम लोगों तक आसानी पहुंचाया जा सके.
सोयाबीन का प्रचार-प्रसार जरुरी
आज के ज़माने में जरुरत इस बात की है कि सोयाबीन के उपयोग को लेकर लोगों को जागरूक बनांने की आवश्यकता है. सोयाबीन से बहुत तरह के पदार्थ बनाये जाते हैं. इसमें विशेष रूप से घरेलू स्तर पर आसानी से बनने वाले खाद्य पदार्थ जैसे-सोया आटा, सोया दूध, सोया पनीर, सोया नमकीन, सोया पकोड़े, सोया हलवा, सोया उपमा, सोया गुलाब जामुन, सोया परांठा, सोया बिस्किट, सोया दही, सोया लस्सी एवं अंकुरित सोयाबीन बनाने की तकनीकी उपलब्ध है।
राष्ट्रीय सोयाबीन अनुसंधान केंद्र, इंदौर मध्यप्रदेश जो कि विशेष रूप से देश में उगाई जाने वाली सोयाबीन फसल की उत्पादन तकनीकी के लिए सतत् कार्यरत है, ने सोयाबीन के खाद्य उपयोग के प्रचार-प्रसार हेतु अथक प्रयास किया है. इस संस्था द्वारा वर्ष 2003-05 दौरान पोषण सुरक्षा के लिए सोयाबीन के प्रसंस्करण एवं उपभोग नामक परियोजना शुरू की गयी. इस परियोजना के अंतर्गत यह केंद्र ग्रामीण और शहरी महिलाओं एवं पुरुषों को ‘सोयाबीन के खाद्य उपयोग’ विषय पर ट्रेनिंग देकर संबंधित तकनीकी की जानकारी प्रदान करता है। इन ट्रेनिंग में खास कर सोया दूध, सोया पनीर, सोया पकोड़े व सोया नमकीन बनाने की विधियों को सिखाया जाता है.
सोयाबीन का प्रसंस्करण
इसकी प्रसंस्करण तकनीकी निम्न प्रकार से है.
कैसे बनायें सोया दूध?
एक किलो सोयाबीन से लगभग 7-8 लीटर सोया दूध बनाया जा सकता है। अतः आवश्यकता अनुसार सोयाबीन की मात्रा लेकर साफ एवं स्वच्छ कर उपयोग में लाएं।एक किलो सोयाबीन से लगभग 7-8 लीटर सोया दूध बनाया जा सकता है। अतः आवश्यकता अनुसार सोयाबीन की मात्रा लेकर साफ एवं स्वच्छ कर उपयोग में लाएं।
• एक किलोग्राम सोयाबीन = 1 लीटर के अनुपात में पानी की मात्रा लेकर प्रेशर कुकर में उबाले। सोयाबीन को प्रेशर कुकर में डालकर 8 मिनट तक पकने दे। तत्पश्चात सीटी आने के बाद पकी हुई सोयाबीन को गुनगुने पानी में 3-4 घंटे भिगो कर स्वच्छ पानी से धोएं।
• इस तरह से भीगे सोयाबीन के दानों को 1 : 8 के अनुपात में पानी के साथ मिक्सर में पीसकर लगभग 10 मिनट तक उबाले। तथा इस दौरान चम्मच से हिलाते रहे।
• उसके बाद उबले हुए संपूर्ण मिश्रण को मलमल के कपड़े से छान ले। इस प्रकार छने हुए द्रव को सोया दूध कहते हैं एवं कपड़े में बचे हुए अवषेश को ओकारा कहते हैं।
• सोया दूध को पीने के लिए उसमें स्वादानुसार चीनी मिलाएं तथा ठंडा करने के बाद मनपसंद इसेंस जैसी पिसी इलायची डालकर इसका आनंद ले और रसास्वादन करें।
• सोया दूध से दही बनाने हेतु चीनी न मिलाकर एक चौथाई गाय का दूध मिलाए और कल्चर की सहायता से दही बनाए या दही से लस्सी बनाकर पिएं जिससे पोषण व स्वास्थ्य सुरक्षा हो पाएगी।
कैसे बनायें सोया पनीर (तोफू)?
• उपरोक्त विधि व प्रक्रिया के अनुसार एक किलो सोयाबीन से 8 लीटर सोया दूध तैयार करें।
• तैयार दूध को फाड़ने के लिए एक गिलास में 10 ग्राम कैल्शियम सल्फेट एवं 10 ग्राम मैग्नीशियम क्लोराइड का पानी में घोल बनाकर मिलाएं (यदि उपलब्ध न हो तो साइट्रिक एसिड या फिर एक नींबू के रस का घोल का उपयोग किया जा सकता है)।
• उपरोक्त विधि के अनुसार पानी और फटा दूध (ठोस पदार्थ) अलग-अलग हो जाएगा जिसे दबाने के लिए छिद्रयुक्त बर्तन में पतला कपड़ा रखकर उपर से दबाएं ताकि अतिरिक्त पानी पूरी तरह से निकल जाए।
• तैयार ठोस पदार्थ को एक बर्तन के अंदर ठंडे पानी में 20 मिनट रखा रहने दें। उसके उपरान्त आपका सोया पनीर तैयार है।
कैसे बनायें सोया पकोड़ा?
• आधा किलो सोयाबीन ओकारा के साथ आधा किलो बेसन मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण बना लें।
• अपने घर में बेसन के भुजिया बनाने के लिए जो भी सामग्री (कटे हुए प्याज, हरी मिर्च, हरा धनिया, लहसुन एवं अदरक पिसा हुआ, नमक स्वादानुसार इत्यादि) लगती है उसे प्रयोग में लाएं। स्वादानुसार जीरा, सांफ और अजवाइन की मात्रा भी मिला लें।
• इस तरह पूरी सामग्री को पानी के साथ घोलकर गाढ़ा मिश्रण बना लें।
• तैयार मिश्रण को तेल मे तलकर अच्छी तरह से पकने दें। सोया पकोड़े खाने के लिए तैयार हैं।
• पकोड़े को टमाटर सॉस एवं चाट मसाले के साथ में खाने से स्वाद लजीज हो जाएगा।
कैसे बनायें सोया नमकीन?
• सोयाबीन की किस्म जिसका दाना मोटा हो, उन्हें रात भर भिगायें।
• फिर गर्म सोयाबीन तेल मे हल्की आंच पर इन दानों को तल लें।
• तली हुई सोयाबीन के दानों को ठंडा कर नमक-मसाला मिलाकर खाने हेतु सोया नमकीन तैयार है।
• कम तेल का उपयोग करते हुए इसे रोस्ट करने के लिए माइक्रोवेव अॅवन का उपयोग किया जा सकता है।
सोयाबीन को कैसे अंकुरित करें?
• एक कप सोयाबीन को कुनकुने पानी में 3-4 घंटे के लिए भिगो ले।
• एक ऐसा बर्तन ले जिसके तल में छिद्र हो और इस पर एक गीला सफेद सूती कपड़ा बिछा दें।
• भिगोए हुए बीजों की पतली परत इस कपडे़ पर बिछा दें और बर्तन को एक कपड़े से ढक दें।
• दिन में तीन-चार बार पानी छिड़कते रहे। तीन या चार दिन में बीज अंकुरित हो जाएगा।
अंकुरित सोयाबीन के उपयोग दूसरा तरीका
• एक सूती कपड़े को अच्छी तरह से भिगोकर उसमें 3-4 घंटे से भीगे बीजों को बाँध लें और पोटली के रूप में हवा में लटका दें. दो दिनों में बीज अंकुरित हो जाएंगे।
• अंकुरित बीज का छिलका उतारकर उसे हल्का फ्राई कर ले या छोटा-छोटा काटकर सूप में डालकर परोसे।हरी फली (अविकसित सोयाबीन)जब खेत में फली 60-80 प्रतिशत पक जाए यानी बीज का रंग हरा-पीला लेकिन मुलायम संरचना वाला हो तो ऐसी अवस्था में फलियों को तोड़कर (250 ग्राम) नमकयुक्त (एक चम्मच एक लीटर में) पानी में 10 मिनट तक उबाल लें। उबला हुआ पानी निथार लें। उन फलियों का बीज खाने के लिए तैयार है।
इस तरह देखा जाए तो सोयाबीन प्रकृति का अनुपम उपहार है जोकि हमारे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। ये प्राकृतिक गुणों से भरपूर है जो हमारे जीवन को संरक्षित, पोषित व सुरक्षित रखती है। इनमें मिलने वाले प्रमुख तत्व प्रोटीन, विटामिन, लोहा व कैल्शियम हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। वहीं तमाम ऐसे तत्व विद्यमान हैं जो बीमारियों को हमारे नजदीक आने नहीं देते हैं। स्वास्थ्य सुरक्षा से भरपूर होने की वजह से ही आज हमारे समाज में सोयाबीन की मांग धीरे-धीरे बढ़ रही है। फलतः स्वस्थ व युवा बने रहने के लिए सोयाबीन का उपयोग नियमित रूप से करना चाहिए।
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Very informative information .