रामधारी सिंह दिनकर को राष्ट्रकवि के नाम से जाना जाता है. वे ओज और वीर रस के कवि थे. उनकी कविताओं में राष्ट्र प्रेम को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया जा सकता है. यद्यपि पद्य के अलावे गद्य में भी उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. उनकी रचना संस्कृति के चार अध्याय इनकी विलक्षण इतिहास दृष्टि को दर्शाता है. उनकी रचना उर्वशी उनको एक प्रेम और श्रृंगार का बेजोड़ कवि सिद्ध करता है. उनका उद्बोधन ” सुनूं क्या सिन्धु मैं गर्जन तुम्हारा स्वयं युगधर्म का हुंकार हूँ मैं’ मुर्दे में भी जान फूंक सकता है. प्रस्तुत पोस्ट Ramdhari Singh Dinkar Quotes in Hindi में उनके कुछ विचारों को संकलित किया गया है, आशा है आपको पसंद आयेंगे.
Ramdhari Singh Dinkar Quotes in Hindi रामधारी सिंह दिनकर के अनमोल विचार
1. उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम, देश में जितने भी हिन्दू बसते हैं, उनकी संस्कृति एक है एवं भारत की प्रत्येक क्षेत्रीय विशेषता हमारी सामासिक संस्कृति की ही विशेषता है.
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2. हम तर्क से पराजित होने वाली जाती नहीं हैं. हाँ, कोई चाहे तो नम्रता, त्याग और चरित्र से हमें जीत सकता है.
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3. पंडित और संत में वही भेद होता है, जो हृदय और बुद्धि में है. बुद्धि जिसे लाख कोशिश करने पर भी नहीं समझ पाती, हृदय उसे अचानक देख लेता है.
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4. विद्द्या समुद्र की सतह पर उठती हुई तरंगों का नाम है. किन्तु, अनुभूति समुद्र की अंतरात्मा में बसती है.
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5. हमारा धर्म पंडितों की नहीं, संतों और द्रष्टाओं की रचना है. हिंदुत्व का मूलाधार विद्या और ज्ञान नहीं है, सीधी अनुभूति है.
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6. धर्म अनुभूति की वस्तु है और धर्मात्मा भारतवासी उसी को मानते आये हैं, जिसने धर्म के महा सत्यों को केवल जाना ही नहीं उनका अनुभव और साक्षात्कार भी किया है.
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7. संत सूनी-समझी बातों का आख्यान नहीं करते, वे तो आँखों देखी बातें करते हैं. अपनी अनुभूतियों का निचोड़ दूसरों के हृदय में उतारते हैं.
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8. परिपक्व मनुष्य जाति भेद को नहीं मानता.
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9. अवसर कोई ऐसी चीज नहीं है जो रोटी-दाल की तरह सबके सामने परोसा जा सके. उसे पाने के लिए अपने गुणों का विकास करना होता है. तत्परता, मुस्तैदी और धीरता भी रखनी होती है और साथ ही उम्र तथा अनुभवों का ध्यान रखना पड़ता है.
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10. कामना का दामन छोटा मत करो, जिन्दगी के फल को दोनों हाथों से दबा कर निचोड़ो, रस की निर्झरी तुम्हारे बहाए भी बह सकती है.
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11. जीवन अन्वेषणों के बीच है. उसका जन्म अज्ञात इच्छाओं के भीतर से होता है. अपने हृदय में कामनाओं को जलाए रखो, अन्यथा तुम जिस मिट्टी से निर्मित हुए हो कब्र बन जाएगी.
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12. ईर्ष्या की बड़ी बेटी का नाम निंदा है. जो व्यक्ति ईर्ष्यालु होता है, वही व्यक्ति बुरे किस्म का निंदक भी है.
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13. कोई भी मनुष्य दूसरों की निंदा करने से अपनी उन्नति नहीं कर सकता. उन्नति तो उसकी तभी होगी, जब वह अपने चरित्र को निर्मल बनाए तथा अपने गुणों का विकास करे.
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14. जो मनुष्य अनुभव के दौर से होकर गुजरने से इंकार करता है, मेहनत से भाग कर आराम की जगह पर पहुँचने के लिए बेचैन है, उसकी यह बेचैनी ही इस बात का सबूत है कि वह अपने संगठन का अच्छा नेता नहीं बन सकता.
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15. जिस मनुष्य में भावना का संचार न हो, जिसे अपने राष्ट्र से प्रेम नहीं, उसका ह्रदय ह्रदय नहीं पत्थर है.
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बहुत बढ़िया सुविचार