विश्व के महानतम भौतिक शास्त्री अल्बर्ट आईन्स्टाइन किसी परिचय के मोहताज नहीं. उनके सिद्धांतों ने आधुनिक विज्ञान को एक नयी दिशा और दशा प्रदान की. प्रस्तुत पोस्ट Albert Einstein Golden Quotes in Hindi में उनके कुछ महानतम विचारों को प्रसंगानुसार दिया जा रहा है. आशा है ये कथन आपको पसंद आयेंगें.
Albert Einstein Golden Quotes in Hindi आईन्स्टाइन के स्वर्णिम विचार
मानव जीवन
मानव-जीवन का अर्थ क्या है, या कहें कि, किसी प्राणी के जीवन का अर्थ क्या है? इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने के लिए हमें धर्म की शरण में जाना पड़ता है. आप पूछते हैं.”तब इस प्रश्न को पूछने का क्या कोई अर्थ भी है?” मेरा उत्तर है :जो व्यक्ति अपने और अपने साथी प्राणियों के जीवन को अर्थहीन समझता है, वह न केवल अभागा है, बल्कि जीवित रहने लायक भी नहीं है.
– दुनिया मेरी दृष्टि में, 1934 ई.
मेरे जैसे व्यक्ति के जीवन का सत्व ठीक इस बात में है कि वह क्या सोचता है और किस तरह सोचता है, न कि इस बात में कि वह क्या करता है या क्या भुगतता है.
– आत्मकथात्मक निबन्ध से
अपने लंबे जीवन में मैंने अपना सारा दिमाग भौतिक विश्व की संरचना को कुछ अधिक गहराई से जानने में ही लगाया है. मैंने मानव के भविष्य को बेहतर बनाने, अन्याय व दमन के विरूद्ध लड़ने और परंपरागत मानव-संबंधों को सुधारने के लिए नियमित प्रयास कभी नहीं किए. मैंने सिर्फ यही एक बात की है: बीच-बीच के लंबे अंतरालों में मैंने जनता से जुड़े मामलों पर अपनी राय तभी व्यक्त की है जब वे मुझे इतने दुष्ट व दुर्भाग्यपूर्ण लगे कि मौन रहने का मतलब होता आत्मतुष्टि का अपराधी होना.
– शिकागो में 1945 ई. में दिए एक भाषण से
मेरा विश्वास है कि सरल और अहंकार-रहित जीवन सबके लिए अच्छा है- शारीरिक और मानसिक, दोनों दृष्टियों से.
– दुनिया मेरी दृष्टि में
मेरा पक्का विश्वास है कि दुनिया की कोई भी धन-संपदा मानवता को आगे नहीं ले जा सकती, फिर वह किसी भी समर्पित व्यक्ति द्वारा क्यों न प्रदानकी गई हो.केवल महान और विशुद्ध व्यक्तियों के उदाहरण ही हमें उदात्त विचारों और कार्यों की ओर प्रेरित कर सकते हैं. धन सिर्फ स्वार्थ और दुरुपयोग को ही प्रश्रय देता है. क्या मूसा, येशु और गांधी के हाथों में कानेंजी की धन-थैलियां होने की कोई कल्पना कर सकता है?
– दुनिया मेरी दृष्टि में
यदि हममें से अधिकांश को फटे-पुराने कपड़ों और घटिया फर्नीचर का इस्तेमाल करने में शर्म आती है, तो हमें व्यर्थ के विचारों और घटिया विचारकों के बारे में कहीं ज्यादा शर्म आनी चाहिए.
राजनेताओं के बारे में, धार्मिक नेताओं के बारे में भी, यह कहना अकसर कठिन हो जाता है कि इन्होने अच्छे काम ज्यादा किए हैं या बुरे काम.
मेरा राजनीतिक आदर्श जनतंत्र है. एक व्यक्ति के तौर पर प्रत्येक का सम्मान होना चाहिए, और किसी की भी व्यक्तिपूजा नहीं होनी चाहिए. यह विधि की विडंबना है कि मेरे साथियों ने मेरी ही अत्यधिक स्तुति व प्रशंसा की है, हालांकि इसका न तो मैं दोषी हूँ. न ही पात्र.
– दुनिया मेरी दृष्टि में
सैनिक तन्त्र से मुझे घृणा है. बैंड के ताल के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले सैनिक को खुश होते देखकर मुझे उससे नफरत हो जाती है. उसे गलती से ही उसका कुंद दिमाग हासिल हुआ है. उसे तो केवल रीढ़ की हड्डी मिलनी चाहिए थी. मानव सभ्यता पर लगे इस कलंक को यथासंभव शीघ्र मिटा देना चाहिए. आदेश पर आधारित वीरता, निरर्थक हिंसा और देशभक्ति के नाम पर होने वाली तमाम हानिकर मूर्खताओं से मैं नफरत करता हूँ.
यदि आप सुखी जीवन बिताना चाहते हैं, तो इसे किसी लक्ष्य के साथ बाँध दीजिए, न कि लोगों और वस्तुओं के साथ.
– अन्सर्ट स्ट्राउस द्वारा उद्धृत
इस धरती पर हमारी स्थिति बड़ी विचित्र है. इसमें से प्रत्येक यहां थोड़े समय के लिए आता है, परन्तु नहीं जानता क्यों; मगर कभी-कभी लगता है कि इसके पीछे कोई लक्ष्य है.
– मेरा मत, 1932 ई.
दूसरों के लिए समर्पित जीवन ही सार्थक जीवन है.
जो व्यक्ति अपने और अपने साथियों के जीवन को निरर्थक मानता है, वह केवल दुखी ही नहीं, जीवित रहने योग्य भी नहीं है.
मेरा जीवन
परंपरा से मैं एक यहूदी हूँ. नागरिकता से एक स्विस हूँ, और बनावट से एक मनुष्य, और सिर्फ मनुष्य हूँ- किसी देश या किसी प्रकार की राष्ट्रीय इकाई के प्रति बिना किसी विशेष आसक्ति के.
– जून, 1918
मेरे पिता की अस्थियाँ मिलान (इटली) में हैं. मैंने अपनी माँ को कुछ ही दिन पहले यहां (बर्लिन में) दफनाया है. मेरे बच्चे स्विट्जरलैंड में है. मैं लगातार इधर-उधर भटकता रहा हूँ. सभी जगह एक पराये व्यक्ति की तरह,…..मेरे जैसा व्यक्ति प्रियजनों के साथ कहीं पर भी सुखी रह सकता है.
– मई 1920
एक परिक्रमा का मनुष्य जब किसी चीज चीज को स्पर्श करता है, जो वह सोने में तब्दील हो जाती है; मगर मेरी हर बात पर अख़बारों में शोर मच जाता है.
– सितंबर 1920
नाजीबाद और दो पत्नियों को झेलने के बाद भी ज़िंदा हूँ, तो कह सकता हूँ कि मैं मजे में हूँ.
– याकोब एहरात को पत्र, 12 मई 1952
मैं तो प्रकृति का एक छोटा-सा कण मात्र हूँ.
मुझमें विशेष योग्यता नहीं है; बस, मैं बहुत ज्यादा जिज्ञासु हूँ.
प्रशंसा के दुष्प्रभाव से बचने का एकमात्र उपाय है- काम करते जाना.
मैं ऐसे मामले में कोई राय नहीं देना चाहता, जिसके बारे में पर्याप्त तथ्य मुझे ज्ञात न हो.
कल्पना
ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है कल्पना. ज्ञान की सीमा है, जबकि कल्पना की पहुंच समूचे विश्व में है. कल्पना प्रगति को प्रेरणा देती है, विकास को जन्म देती है.
– अक्टूबर 1929
अधिकार
अधिकार से मुझे नफरत है, मगर भाग्य ने मुझे ही अधिकारी बना दिया है.
– सितंबर 1930
चिन्तन की दृष्टि से मैं सार्वभौमिक बने रहने का प्रयास करता हूँ परन्तु प्रवृति और अभिरूचि के मामले में मैं यूरोपवासी हूँ. –सितंबर 1933
मैं जानना चाहता हूँ कि विधाता ने इस विश्व का निर्माण किस तरह किया है; मेरी रुचि इस या उस घटना में या इस या उस तत्व के स्पेक्ट्रम में नहीं है. मैं उसके विचारों को जानना चाहता हूँ, बाकी सब ब्यौरा है.
मृत्यु
मैं अपने को समूचे जीव-जगत का एक अभिन्न अंग मानता हूँ, इसलिए सृष्टि के इस अनंत प्रवाह में किसी एक व्यक्ति के साकार अस्तित्व के उद्भव या अंत से तनिक भी विचलित नहीं होता.
– अप्रैल 1920
यदि हम अपने बच्चों और युवा पीढी में जीवित रहते हैं, तो मृत्यु हमारा अंत नहीं है; क्योंकि वे हम हैं; हमारे शरीर तो जीवन- वृक्ष के केवल सूखे पत्ते हैं.
– फरवरी 1926
जो बूढा हो गया है उसके लिए मृत्यु का आगमन मुक्ति है. मैं स्वयं अब बूढा हो गया हूँ, इसलिए इस बात को काफी गहराई से महसूस करता हूँ. मैं मृत्यु को एक तरह का पुराना कर्ज मानने लगा हूँ, जिसे अब अंत में चुका देना है. फिर भी, यह सहज प्रवृत्ति होती है कि हम अंतिम भुगतान को टालने का हर संभव प्रयास करते हैं. ऐसा खेल खेलती है प्रकृत्ति हमारे साथ.
-फरवरी 1955
मृत्यु का भय सबसे अनुचित भय है, क्योंकि मृत व्यक्ति को दुर्घटना का कोई खतरा नहीं होता.
जब मैं जाना चाहूँगा, चला जाऊंगा. कृत्रिम तरीकों से जीवन को लंबा खींचना व्यर्थ है. मैंने अपने हिस्से का काम कर लिया है; जाने का समय आ गया है. मैं शान से जाऊँगा.
-अब्राहम पाइस की आईन्स्टाइन की जीवनी में उद्धृत
मैं चाहता हूँ कि मेरा दाहसंस्कार हो, ताकि लोग मेरी हड्डियों की पूजा न करने लग जाएं.
-अब्राहम पाइस की आईन्स्टाइन की जीवनी में उद्धृत
मेरी मृत्यु के बाद मेरा मकान ऐसा तीर्थस्थल कतई नहीं बनना चाहिए जहाँ संत की हड्डियों के दर्शन के लिए तीर्थयात्री पहुंचे.
शिक्षक
अपयश और हानि सबसे बड़े शिक्षक व सुधारक हैं.
बच्चे माता-पिता के जीवन के अनुभवों की कोई परवाह नहीं करते, और राष्ट्र इतिहास की उपेक्षा करते हैं. बुरे सबक हमेशा ही नए सिरे से सीखने पड़ते हैं.
संगीत
मैं यदि भौतिकवेत्ता नहीं होता, तो संभवतः एक संगीतज्ञ होता. मैं अक्सर संगीत में सोचता हूँ. मेरे दिवास्वप्न संगीतमय होते हैं. मैं अपना जीवन संगीत में देखता हूँ. जीवन में सबसे ज्यादा सुख मुझे संगीत में ही मिलता है.
शांति, युद्ध व एटम बम
जो कोई भी सांस्कृतिक मूल्यों को महत्व देता है, वह शांतिवादी के अलावा और कुछ नहीं हो सकता.
इतिहास के क्षेत्र ने शांतिवादी विचारों को आगे बढ़ाने में कोई योग नहीं दिया है. इसके कई नुमाईन्दों ने सार्वजनिक तौर पर चकित कर देने वाली अतिराष्ट्रवादी और सैनिक घोषणाएं की हैं. विज्ञान के क्षेत्र का मामला एकदम भिन्न है.
मैं सिर्फ एक शांतिवादी ही नहीं, एक लड़ाकू शांतिवादी हूँ. मैं शांति के लिए लड़ने को भी तैयार हूँ.
मैं एक समर्पित शांतिवादी हूँ, पर सम्पूर्ण नहीं; इसका अर्थ यह है कि मैं हर परिस्थिति में बल-प्रयोग का विरोधी हूँ, सिवाय उस स्थिति के जब शत्रु जीव-हत्या को ही अपना लक्ष्य मानता है.
मेरा विश्वास है कि अधिराष्ट के आधार पर विश्व में शांति स्थापित करने की समस्या को गांधी के तरीके को व्यापक स्तर पर अपनाकर ही सुलझाया जा सकता है.
मैं अपने को परमाणु-उर्जा की मुक्ति का पिता नहीं मानता. इसमें मेरी भूमिका अप्रत्यक्ष थी. मैंने बिल्कुल नहीं सोचा था कि यह उर्जा मेरे जीवनकाल में उपलब्ध हो जाएगी. मैं सोचता था कि यह सिद्धांतत: ही संभव है. यह सब संभव हुआ अचानक श्रृंखलाबद्ध अभिक्रिया की खोज होने के कारण, और यह ऐसी चीज नहीं थी जिसकी मैं भविष्यवाणी कर सकता.
मैंने ( एटम बम ) के निर्माण के लिए कोई कार्य नहीं किया, बिल्कुल नहीं, एटम बम में मेरी दिलचस्पी वैसी ही है जैसी कि किसी भी अन्य व्यक्ति की, शायद थोड़ी अधिक.
– 12 अगस्त 1945
जो देश जितने ज्यादा सैनिक हथियार बनाता है, वह उतना ही ज्यादा असुरक्षित हो जाता है: क्योंकि आपके पास हथियार हैं, तो आप हमले का लक्ष्य बन जाते हैं.
-जनवरी 1953
विभिन्न देशों के विद्वान भी ऐसा व्यवहार कर रहे हैं, जैसे कि उनके दिमाग की शल्यक्रिया की गई हो
– प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ होने पर रोमाँ रोलाँ को पत्र,
22 मार्च 1915
विज्ञान ने इस खतरे ( युद्ध )को पैदा किया है, मगर असली समस्या आदमियों के दिमागों व दिलों में है. हम अपने दिलों को बदलकर और बेबाकी से बोलकर ही दूसरे आदमियों के दिल बदल सकते हैं.
यदि मुझे पता होता कि एटम बम बनाने में जर्मनी को सफलता नहीं मिलेगी, तो मैं इस मामले में कुछ भी नहीं करता.
– न्यूजवीक पत्रिका को, 10 मार्च 1947
मैं नहीं जानता कि तीसरा विश्वयुद्ध किस तरह लड़ा जाएगा, लेकिन मैं बता सकता हूँ कि चौथे में वे किस चीज का इस्तेमाल करेंगे-पत्थरों का
– अप्रैल 1949
राष्ट्रवाद एक बचकाना मर्ज है, मानव-जाति के चेहरे पर लगे चेचक के दाग हैं.
मैं कभी कम्युनिस्ट नहीं रहा; मगर होता, तो इसके लिए लज्जा अनुभव नहीं करता.
हरेक ( वैज्ञानिक ) को चाहिए कि वह अपना समय राजनीति व समीकरणों में विभक्त करें. मगर मेरे लिए समीकरण बहुत अधिक महत्व के हैं, क्योंकि राजनीति वर्तमान के लिए होती है, जबकि हमारे समीकरण अनंत काल के लिए होते हैं.
दर्शनशास्त्र की पुस्तकों को पढकर मैंने जाना कि मैं किसी रंग-चित्र के सामने खड़ा एक अंधे आदमी की तरह हूँ. मैं केवल आगमनात्मक विधि को ही ठीक से समझ सकता हूँ….अटकलबाजी पर आधारित दर्शनशास्त्र के ग्रन्थ मेरी क्षमता के बाहर के हैं.
-अप्रैल 1917
धर्म, ईश्वर
धर्म के क्षेत्र और विज्ञान के क्षेत्र के बीच के मौजूदा संघर्ष का मुख्य स्रोत है- व्यक्तिगत ईश्वर
मानव दुर्बलता की उपज है ईश्वर.
– आईन्स्टाइन के एक पत्र से
व्यक्तिगत ईश्वर की लुभावनी धारणा मुझे मान्य नहीं है.
हमारे दिमाग में ऐसा कोई भी विचार जन्म नहीं लेता जो हमारी पंचेंद्रियों से पृथक हो (अर्थात देवी प्रेरण से जनित हो ).
व्यक्ति के अमरत्व में मेरी कोई आस्था नहीं है. और नैतिकता को मैं सम्पूर्णत: एक मानव-मामला मानता हूँ, इसमें अतिमानवीय या दैवी जैसा कुछ नहीं है.
यदि किसी ईश्वर ने इस विश्व की सृष्टि की है, तो उसकी मुख्य चिंता यह निश्चय ही नहीं थी कि इसे हमारे लिए आसानी से समझने लायक बनाया जाए.
पेशेवर दृष्टि से देखें तो वैज्ञानिक और गणितज्ञ स्पष्टत: अन्तराष्ट्रीय सोच रखते हैं और शत्रु देशों के उनके सहधर्मियों के खिलाफ की गई अनुचित कार्यवाहियों का सोच-समझकर सामना करते हैं. इसके विपरीत, इतिहासकार व दार्शनिक अंधराष्ट्रवादिता की आग के शिकार हो जाते हैं.
मैंने हमेशा अकेलेपन को पसंद किया है, और बढती उम्र के साथ यह चाह बढती जा रही है.
– अक्टूबर 1952
जो देखा गया और अनुभव किया गया उसे तर्कशास्त्र की भाषा में प्रस्तुत किया जाए, तो वह विज्ञान है. यदि इसे ऐसे रूपों में संप्रेषित किया जाए कि चेतन मन को उसके संबंध स्पष्ट न हों, मगर अंतर्दृष्टि से पहचान लिये जाएं, तो वह कला है.
फलित-ज्योतिष
पाठक को फलित –ज्योतिष से संबंधित केपलर के कथनों को याद करना चाहिए उनसे पता चलता है कि इस भीतरी शत्रु पर विजय प्राप्त करके इसे भले ही अहानिकर बना दिया हो, पर यह अभी पूरी तरह मरा नहीं है.
सत्ता में मूढ़ विश्वास सत्य का सबसे बड़ी शत्रु है.
मेरा विश्वास है कि हमारी कुछ राजनीतिक व सामाजिक गतिविधियां सम्पूर्ण मानव-समुदाय के लिए घातक हैं ……… यहाँ मैं केवल सन्तति-निग्रह के बारे में कहूंगा……कई देशों में तेजी से बढती आबादी लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन गई है और इस धरती पर शांति स्थापित करने के मार्ग में एक विकट बाधा.
Birthday जन्मदिन
जन्मदिन को मनाने का क्या कोई औचित्य है? जन्मदिन तो एक स्वचल चीज है. बहरहाल, जन्मदिन तो बच्चों के लिए हैं.
मेरा विश्वास है कि हम जो कुछ भी करते हैं. उसका कारण-कार्य संबंध होता है लेकिन यह अच्छा ही है कि हम नहीं जानते कि यह वस्तुतः क्या है.
– रवीन्द्रनाथ ठाकुर से बातचीत, 1930 ई.
इस विश्व का असीम रहस्य है, इसकी बोधगम्यता — इसका बोधगम्य होना वस्तुतः एक चमत्कार है.
अपने अंत:करण की आवाज के विरूद्ध कुछ नहीं कीजिए-चाहे शासन भी इसकी मांग करें.
शांत जीवन की नीरसता मस्तिष्क को सृजन के लिए प्रेरित करती है.
Curiosity जिज्ञासा
जिज्ञासा एक महत्वपूर्ण चीज है. कुतूहल का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है. जब हम अनन्तता, जीवन और भौतिक जगत की अद्भुत संरचना के रहस्यों के बारे में सोचते हैं, तो चकित रह जाते हैं. इस रहस्य के एक अंश के बारे में भी प्रतिदिन सोचा जाए, तो पर्याप्त है.
जिज्ञासा एक नन्हा नाजुक पौधा है, जिसे उद्दीपन के आलावा, आजादी भी अवश्य चाहिए.
अंग्रेजी
मैं अंग्रेजी नहीं लिख सकता, क्योंकि इसकी अक्षरी बड़ी अविश्वसनीय है. जब मैं पढ़ता हूँ, तब मैं इसे सिर्फ सुनता हूँ और स्मरण नहीं रख पाता कि लिखित शब्द किस तरह का था.
उड़न तश्तरियां
उन लोगों ने कुछ देखा है. वह क्या है, मैं नहीं जानता और जानने के लिए उत्सुक भी नहीं हूँ.
खेल
मैं खेल नहीं खेलता —– इसके लिए समय नहीं है. जब मैं काम कर चुका होता होऊँ, तो उसके बाद ऐसी कोई चीज नहीं चाहता जिसमें दिमाग लगाने की जरूरत पड़े.
मानव-समाज से मूल्यवान उपलब्धियां तभी हासिल हो सकती हैं, जब उसमें व्यक्ति की क्षमताओं के मुक्त विकास के लिए पर्याप्त आजादी हो.
सभी श्रेष्ठ वैज्ञानिक उपलब्धियों का आरंभ अंत:प्रज्ञा यानी अभिग्रिहीतों से होता है और फिर उन्हीं से निगमनिक निष्कर्ष निकाले जाते हैं. ऐसे अभिगृहीतों के आविष्कार के लिए अंत:प्रज्ञा अत्यावश्यक शर्त है.
लोगों का प्रेम में फंसना कतई बुरी चीज नहीं है, परन्तु इसके लिए गुरुत्वाकर्षण जिम्मेवार नहीं है.
विवाह
विवाह ऐसी गुलामी है जिसे सभ्यता का जामा पहनाया जाता है. विवाहित व्यक्ति एक-दूसरे को स्वतंत्र मानव नहीं, बल्कि जायदाद की चीजें समझते हैं.
चमत्कार
मैं स्वीकार करता हूँ कि विचार शरीर को प्रभावित करते हैं.
“चमत्कार” विधिसंगतता का अपवाद है; इसलिए जहाँ विधिसंगतता का अस्तित्व नहीं, वहां इसके अपवाद यानी चमत्कार का भी अस्तित्व नहीं हो सकता.
नैतिकता
नैतिकता का सर्वाधिक महत्व है – मगर हमारे लिए, ईश्वर के लिए नहीं. नैतिकता के संबंध में ईश्वरीय कुछ नहीं है; यह विशुद्ध मानवीय मामला है.
“नीतिपरक संस्कृति” के बिना मानवता के लिए कोई मुक्ति नहीं है.
रहस्यानुभूति सबसे अच्छी चीज है. यह सच्ची कला और सच्चे विज्ञान के सृजन के लिए आधारभूत अनुभूति है. जो इसे नहीं जानता और आश्चर्यचकित नहीं होता, वह मृत व्यक्ति के समान है- एक बुझी मोमबत्ती की तरह.
प्रेस
प्रेस, जिस पर अधिकतर निहित स्वार्थों का अधिकार है, जनता की राय बनाने में अत्यधिक योग देता है.
यौन शिक्षा
यौन शिक्षा गोपनीय नहीं होनी चाहिए.
तार्किक चिन्तन और तार्किक दृष्टि को विकसित करके विज्ञान इस दुनिया में अंधविश्वास को काफी कम कर सकता है.
लगता है, शब्द या भाषा, इसके लिखित या उच्चारित रूप में, मेरी चिन्तन-प्रक्रिया में कोई भूमिका अदा नहीं करते.
सहिष्णुता
सबसे महत्वपूर्ण सहिष्णुता है- व्यक्ति के प्रति समाज और राज्य की सहिष्णुता.—- जब राज्य प्रबल घटक बन जाता है और व्यक्ति उसका एक दुर्बल औजार, तब सभी अच्छे मानव-मूल्य तिरोहित हो जाते हैं.
यह बताना कठिन है कि सत्य क्या है, पर कभी-कभी झूठ को पहचानना काफी आसन होता है.
मानव गतिविधियों के सामान्य लक्ष्य-धन-सम्पदा, सतही सफलता, विलासिता-मुझे हमेशा ही तिरस्कारपूर्ण लगे हैं.
केवल कर्म ही जीवन को सार्थकता प्रदान करता है.
– बड़े बेटे हान्स को, 4 जनवरी 1937
हर चीज को यथासंभव सरल बनाना चाहिए, लेकिन बहुत सरल भी नहीं.
सभी तकनीकी प्रयासों का हमेशा प्रमुख प्रयोजन होना चाहिए-मानव की उन्नति और उसका भविष्य; अपनी आकृतियों और अपने समीकरणों के बीच में इस बात को कभी मत भूलिए.
जो व्यक्ति सिर्फ समाचारपत्र पढ़ता है और कभी-कदा समकालीन लेखकों की पुस्तकें पढ़ लेता है, उसे मैं चश्मे से नफरत करने वाला अतिनिकटदृष्टि वाला मानता हूँ. वह अपने समय के पूर्वग्रहों और रिवाजों से घिरा रहता है, क्योंकि उसे दूसरा कुछ सुनने या देखने का मौका नहीं मिलता. जो व्यक्ति दूसरों के विचारों और अनुभवों से प्रेरित न होकर अपने ही मत को महत्वपूर्ण मानता है उसे तुच्छता व नीरसता का ही उदाहरण समझा जाएगा.
ईश्वर चतुर है, परन्तु विद्वेषी नहीं है
– प्रिन्सटन में उत्कीर्ण
करीब दस साल पहले मैंने आईन्स्टाइन से पूछा : “क्या कारण है कि छोटे-बड़े अनेक धर्म-पुरोहित आपेक्षिकता-सिद्धांत में बेहद दिलचस्पी लेते हैं?” आईन्स्टाइन ने कहा :”मेरे अनुमान के अनुसार के अनुसार, भौतिकीविदों की अपेक्षा धर्म-पुरोहित आपेक्षिकता-सिद्धांत में कहीं ज्यादा रुचि लेते हैं.”थोड़ा चकित होकर मैंने उनसे पूछा :इस विचित्र तथ्य को आप कैसे स्पष्ट करेंगे?”कुछ मुस्कराते हुए उन्होंने जबाब दिया: “क्योंकि पुरोहितों की दिलचस्पी प्रकृति के व्यापक नियमों में होती है, और भौतिकीविदों की प्राय: नहीं होती.”
-फिलिप फ्रांक के एक निबन्ध से
एक दिन हमने एक ऐसे भौतिकीविद के बारे में बात की, जिसे अपने शोधकार्य में बहुत कम सफलता प्राप्त हुई थी. उसने अधिकतर ऐसी समस्याओं पर काम किया था जिनको सुलझाने में बहुत बड़ी कठिनाईयां थीं. उसके साथी उसके काम को कोई विशेष महत्व नहीं देते थे. लेकिन उसके बारे में आईन्स्टाइन का कहना था: “इस तरह के व्यक्ति की मैं प्रशंसा करता हूँ. उन वैज्ञानिकों को मैं महत्व नहीं देता जो लकड़ी का एक तख्ता लेकर उसमें उस सबसे पतले हिस्से में बरमे से बहुत सारे छेद करते हैं जहां ऐसा करना सबसे आसन होता है.”
– फिलिप फ्रांक के एक निबन्ध से
पेरिस की एक जानी-मानी महिला ने अपने घर पर आईन्स्टाइन और फ्रांसीसी कवि पाल बेलरी (1871 -1945ई.) की मुलाकात आयोजित की. वेलरी अपने झक्कीपन में अक्सर कह देते थे कि उनकी दिलचस्पी वास्तविक सृजन की अपेक्षा सृजन-प्रक्रिया में ज्यादा है. और उन्होंने आईन्स्टाइन से पूछना शुरू कर दिया :
“आप किस तरह काम करते हैं – क्या इसके बारे में आप हमें कुछ बता सकेंगे?”
आईन्स्टाइन कोई उत्तर नहीं दे प् रहे थे. उन्होंने कहा
“मैं नहीं जानता, मैं सुबह बाहर जाता हूँ और टहलने लगता हूँ.”
“ओह, यह तो बहुत दिलचस्प बात है, “वेलरी ने कहा, “तब तो आप अपने साथ एक नोटबुक रखते होंगे और जब भी आपको कोई विचार सूझता होगा उसे आप नोटबुक में उतार लेते होंगे.”
“नहीं, मैं नोटबुक में नहीं उतारता,” आईन्स्टाइन ने कहा.
“सचमुच, आप नोटबुक में नहीं उतारते?”
“बात यह है कि विचार बहुत ही कम आते हैं.”
महान सृजनशीलता के बारे में, जहाँ तक मैं सोचता हूँ, अधिक से अधिक इतना ही कहा जा सकता है.
“यदि आपेक्षिकता का मेरा सिद्धांत सही साबित होता है, तो जर्मनी में मुझे एक जर्मन व्यक्ति माना जाएगा और फ्रांस में घोषित किया जाएगा कि मैं एक विश्व-नागरिक हूँ. लेकिन यदि मेरा सिद्धांत गलत साबित होता है, तो फ्रांस कहेगा कि मैं जर्मन हूँ और जर्मन में मुझे यहूदी घोषित कर दिया जाएगा
-दिसम्बर 1929 में सारबोन (पेरिस) में दिए गए एक व्याख्यान से .
“मेरे प्यारे बच्चों, ध्यान में रखो कि जिन अद्भुत बातों को तुम अपने स्कूलों में सीखते हो वे संसार के प्रत्येक देश की अनेक पीढ़ियों के अथक प्रयासों और असीम श्रम का परिणाम हैं. ये सब चीजें विरासत के रूप में इसलिए तुम्हें सौंपी जाती हैं कि तुम इन्हें ग्रहण करो, इनका आदर करो, इनमें न्य कुछ जोड़ो, और एक दिन ईमानदारी से इन्हें अपने बच्चों को सौंप दो. यदि तुम इस बात को हमेशा ध्यान में रखोगे तो तुम जीवन का अर्थ समझ जाओगे, और दूसरे देशों व युगों के प्रति सही दृष्टिकोण अपनाकर काम करोगे,”
– विद्यार्थियों के एक समूह को दिए गए आईन्स्टाइन के एक भाषण से .
“ मैं प्रतिदिन सौ बार अपने को स्मरण करता हूँ कि मेरा आंतरिक और बाह्य जीवन दूसरे आदमियों –जीवित व मृत-के श्रम पर आश्रित है और मुझे उसी मात्रा में बदला चुकाने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए, जिस मात्रा में मैंने उनसे प्राप्त किया है और अब प्राप्त कर रहा हूँ. मुझे मितव्ययी जीवन पसंद है और मैं अक्सर तीव्रता से अनुभव करता हूँ कि मैं अपने बांधवों के शर्म का नाहक ही आनन्द उठा रहा हूँ. मैं वर्ग- विच्छेद को अन्न्यायपू र्ण मानता हूँ और मानता हूँ कि यह अंततः बलप्रयोग पर आधारित है.
अपने लंबे जीवन में मैंने एक बात सीखी है : हमारा समूचा विज्ञान, यदि इसे वास्तविकता के पैमाने से परखें, तो अभी आदिम और शैशव अवस्था में है – फिर भी, यही हमारी सबसे मूल्यवान धरोहर है.
मैं इस बात में यकीन नहीं कर सकता कि किसी इलेक्ट्रान पर प्रकाश डाला जाए, तो वह स्वेच्छा से तय कर लेगा कि उसे किस वेग से और किस दिशा में छलांग लगानी है यदि ऐसा है, तो मैं एक भौतिकीविद होने की बजाए किसी जुआखाने में एक नौकर होना पसंद करूंगा.
मैं ऐसे मामले में कोई राय नहीं देना चाहता, जिसके बारे में पर्याप्त तथ्य मुझे ज्ञात न हो.
हम ‘आस्थावान’ भौतिकीविदों के लिए अतीत, वर्तमान और अनागत के बीच का अंतर मजबूती से स्थापित महज एक भ्रम है.
-घनिष्ट मित्र माइकेल बेस्सो की मृत्यु के बाद उनके परिवार को लिखे पत्र से, 21 मार्च 1955
शिक्षण
किसी व्यक्ति के लिए तथ्यों को जानना बहुत महत्वपूर्ण नहीं है. वस्तुतः इसके लिए कालेज जाना जरूरी नहीं है. तथ्यों को वह पुस्तकों से सीख सकता है. उदारवादी कला कालेज में शिक्षा का मूल्य बहुत-से तथ्य सीखने में नहीं, बल्कि दिमाग को इस तरह की बातें सोचने के लिए शिक्षित करना है जिन्हें पाठ्य-पुस्तकों से हासिल नहीं किया जा सकता.
अधिकतर अध्यापक ऐसे सवाल पूछने में समय व्यर्थ गंवाते हैं जिनका मकसद होता है यह जानना कि विद्यार्थी क्या नहीं जानता, जबकि सवाल पूछने का असली मकसद यह होना चाहिए कि विद्यार्थी क्या जानता है या क्या जानने में सक्षम है.
अकादमिक आजादी से मेरा आशय है-सत्य की खोज और उसे पढ़ाने तथा प्रकाशित करने की आजादी. इस आजादी के साथ एक कर्तव्य भी जुडा हुआ है. जिस सत्य की खोज की गई है उसका कोई अंश गोपनीय न रखा जाए. यह स्पष्ट है कि अकादमिक आजादी पर लगाया गया कोई प्रतिबन्ध जनता में ज्ञान के प्रसार को रोकता है और इस प्रकार राष्ट्रीय न्याय व कार्यवाही में बाधक बनता है.
पढ़ाने की और पुस्तकों या प्रेस में अपनी राय व्यक्त करने की आजादी किसी भी जन-समुदाय के सही व स्वाभाविक अभ्युदय की आधारशिला है.
आइंस्टीन ने अपने समकालीन विश्व स्तर के कुछ प्रसिद्द लोगों के विषय में अपने विचार व्यक्त किये हैं जो इस प्रकार हैं:
नील्स बोर
जीवन में बहुत कम लोगों से मिलकर मुझे ऐसा आनन्द प्राप्त हुआ है जैसाकि आपसे मिलकर.
-नील्स बोर को पत्र 2 मई १९२०
मारी क्यूरी
आपकी बुद्धिमत्ता, जीवन-शक्ति और ईमानदारी का मैं बेहद प्रशंसक हूँ. ब्रुसेल्स में आपसे व्यक्तिगत परिचय होना मैं अपना सौभाग्य मानता हूँ.
नवम्बर १९११
माइकल फैराडे
इस विभूति ने रहस्यमय प्रकृति से वैसा ही प्यार किया है, जैसा कि कोई प्रेमी सुदूर की अपनी प्रेयसी से करता है.
गैलीलियो
मुझे इस बात से हमेशा दुःख पहुँचा है कि गैलीलियो ने केपलर के कृतित्व को स्वीकार नहीं किया.
-इंटरव्यू अप्रैल १९५५
केपलर
केपलर उन इने-गिने व्यक्तियों में से थे जो प्रत्येक क्षेत्र में अपने विश्वास पर अडिग रहने के अलावा और कुछ करने में समर्थ नहीं थे. …. वे अपना जीवन-कार्य इसलिए कर पाए, क्योंकि वे अपने जन्म के समय की बौद्धिक परंपरा से स्वयं को काफी हद तक मुक्त करने में सफल रहे. वे इसके बारे में कुछ नहीं बताते, मगर उनके पत्रों में उनका आंतरिक संघर्ष साफ झलकता है.
कांट
कांट के दर्शन में जो सबसे महत्वपूर्ण चीज मुझे लगती है वह यह है कि विज्ञान के सृजन के लिए इसमें प्रागनुभव धारणाओं की बात की गई है.
प्रकृति की व्यवस्था के बारे में आज हमें जो जानकारी है वह यदि कांट को होती तो वे, मुझे पूरा यकीन है, अपने दार्शनिक निष्कर्षों में आमूल परिवर्तन करते. कांट ने अपने दर्शन का ढांचा केपलर व न्यूटन के विश्व-दृष्टिकोण पर खड़ा किया था. चूंकि अब वह नींव हिल गई है, तो उस पर खड़ा किया गया ढांचा भी ढह गया है.
गांधी
मेरा मत है कि हमारे समय के सभी राजनीतिक व्यक्तियों में गांधी के विचार सर्वाधिक प्रबुद्ध हैं. हमें उनकी भावना के अनुसार कार्य करने की कोशिश करनी चाहिए. अपने उद्देश्य की लड़ाई में हिंसा को अपनाकर नहीं, बल्कि जिसे हम हानिकर मानते हैं उसमें असहयोग करके.
हिटलर
हिटलर के रूप में हमारे सामने सीमित बौद्धिक क्षमताओं वाला एक ऐसा आदमी है जो कोई भी उपयोगी कार्य करने में सक्षम नहीं है और उन सभी के प्रति ईर्ष्या और दुश्मनी रखता है जिन्हें परिस्थिति व प्रकृति ने उससे बेहतर बनाया है. उसने सडकों और शराबखानों से आवारा आदमियों को पकड़ा और उन्हें अपने गिर्द इकट्ठा किया. वह इसी तरह राजनेता बना है.
लेनिन
एक व्यक्ति के तौर पर मैं लेनिन का प्रशंसक हूँ. उन्होंने समाजवादी व्यवस्था की स्थापना के लिए अपनी समूची शक्ति लगा दी, अपना व्यक्तिगत जीवन समर्पित कर दिया हाँ, मैं उनके तरीकों को उपयुक्त नहीं समझता. मगर एक बात सुस्पष्ट है उनके जैसे व्यक्ति ही मानव-समाज के सदसद्विवेक के संरक्षक और नवनिर्माता होते हैं.
फिलिप लेनार्ड
एक कुशल प्रयोगकर्ता भौतिकीविद के रूप में मैं लेनार्ड का प्रशंसक हूँ, परन्तु सैद्धांतिक भौतिकी के क्षेत्र में उन्होंने कुछ विशेष हासिल नहीं किया है. और, व्यापक आपेक्षिकता-सिद्धांत के बारे में उनकी आपत्तियां इतनी सतही हैं कि अब तक उनका विस्तृत जबाब देना मैंने जरूरी नहीं समझा है.
लारेंटज
लोग नहीं समझते कि भौतिकी के विकास में लारेटज का प्रभाव कितना व्यापक रहा है. हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि लारेटज की इतनी सारी महान उपलब्धियों के अभाव के क्या स्थिति होती.
अन्सर्ट माख
माख यांत्रिकी के एक अच्छे विद्वान थे, मगर वे एक सतही दार्शनिक थे.
न्यूटन
मेरी नजर में न्यूटन और गैलीलियो सबसे बड़ी सृजनात्मक प्रतिभाएं हैं, जिन्हें मैं एक तरह से एक ईकाई के रूप में देखता हूँ. और, इस ईकाई में न्यूटन ने विज्ञान के क्षेत्र में सबसे भव्य उपलब्धियां हासिल की हैं.
अल्बर्ट माइकेलसन
मैं हमेशा ही माइकेलसन को विज्ञान के क्षेत्र का एक कलाकार मानता रहा हूँ. उनको सबसे ज्यादा आनन्द मिलता था, प्रयोग की सुन्दरता और उसके लिए प्रयुक्त विधि की सुचारुता से.
माक्स प्लांक
जिस निर्णायकता व हार्दिकता से उन्होंने इस सिद्धांत को अपना समर्थन दिया, प्रमुखत: उसके कारण ही इस क्षेत्र के मेरे साथियों का ध्यान इसकी ओर आकर्षित हुआ.
जितने भी व्यक्तियों को मैं जानता हूँ उनमें वे एक सर्वोत्तम व्यक्ति थे. — मगर वे भौतिकी को ठीक- ठीक नहीं समझ पाए थे, क्योंकि 1919 ई. के सूर्यग्रहण के दौरान वे रातभर यह देखने के लिए जागते रहे कि गुरूत्वीय क्षेत्र द्वारा प्रकाश के विस्थापन की पुष्टि होती है या नहीं. यदि वे सचमुच ही व्यापक आपेक्षिकता सिद्धांत को समझे होते, तो वे भी मेरी तरह बिस्तर पर सोने चले जाते.
रोमाँ रोलाँ
वे युद्ध को अवश्यंभावी बनाने वाले वैयक्तिक लोभ और धन के लिए राष्ट्रीय छीनाझपटी पर प्रहार करते हैं, तो ठीक ही करते हैं. वे युद्ध-प्रणाली को तोड़ने के लिए सामाजिक क्रान्ति को एकमेव साधन मानते हैं, तो कोई ज्यादा अनुचित बात नहीं कहते.
रवीन्द्रनाथ ठाकुर
टैगोर के साथ जो मौखिक वार्तालाप हुआ वह, संप्रेषण की कठिनाईयों के कारण, पूर्णत: अनर्थक रहा, और कभी प्रकाशित नहीं होना चाहिए था.
जार्ज बनार्ड शा
शा निस्संदेह संसार के एक महानतम व्यक्ति हैं. मैंने एक बार कहा था कि उनके नाटक मुझे मोट्सार्ट का स्मरण कराते हैं. शा के गद्द में फालतू का एक भी शब्द नहीं है, जैसेकि मोटसार्ट के संगीत में व्यर्थ का एक भी स्वर नहीं है.
सिपनोजा
सिपनोजा यहूदी जाति द्वारा पैदा किए गए एक सबसे गहन- गंभीर और सिपनोजा का सर्वेश्वरवाद मुझे सम्मोहित करता है. मगर उससे अधिक मैं प्रशंसक हूँ आधुनिक चिन्तन को उनके योगदान का. क्योंकि वे पहले दार्शनिक हैं जिन्होंने आत्मा और शरीर को एक माना है, न कि दो पृथक चीजें.
तालस्ताय
मुझे संदेह है कि तालस्ताय के बाद उनकी तरह का जागतिक प्रभाव वाला कोई सच्चा नैतिक नेता हुआ है. … वे कई माने में हमारे समय के सर्वश्रेष्ठ प्रवक्ता रहे हैं. तालस्ताय जैसी अंतर्दृष्टि और नैतिक शक्ति रखने वाला आज कोई नहीं है.
अल्बर्ट श्वेइट्रजेर
वे ऐसे अकेले पश्चिमवासी हैं जिनका इस पीढी पर गांधी के तुल्य नैतिक प्रभाव पड़ा है. गांधी के मामले की तरह उनके व्यापक प्रभाव का भी कारण है- उनके अपने जीवन-कार्य का आदर्श.
पाल लान्गेविन
मुझे लान्गेविन के देहांत की सूचना मिल गई है. वे मेरे सबसे प्रिय परिचितों में थे, एक सच्चे संत, और साथ ही प्रतिभावान भी. यह सही है कि राजनेताओं ने उनकी सज्जनता का अनुचित लाभ उठाया है, क्योंकि वे उनके घटिया इरादों को समझने में अक्षम थे.
अंतिम विश्लेषण में हर व्यक्ति एक मनुष्य है- फिर वह अमेरिकी हो या जर्मन, यहूदी या गैर-यहूदी. यदि इस उपयुक्त दृष्टिकोण को ग्रहण करना संभव हो जाए, तो मुझे बड़ी खुशी होगी.
मानव का सर्वप्रमुख प्रयास होना चाहिए- अपने कर्मों में नैतिकता को स्थान देना. हमारा आंतरिक संतुलन, यहां तक की हमारा अस्तित्व भी, इसी पर आश्रित है. हमारे कर्मों में निहित नैतिकता ही जीवन को सुन्दरता और गरिमा प्रदान करती है. लेकिन नैतिकता की नींव किसी मिथक या किसी सत्ता पर आश्रित नहीं होनी चाहिए.
एकीकृत क्षेत्र सिद्धांत
आपेक्षिकता-सिद्धांत,जिस मूल रूप में मैंने इसे विकसित किया है, अभी भी परमाणु-संरचना और क्वांटम घटनाओं की व्याख्या नहीं कर पाता और, इसमें ऐसे व्यापक गणितीय सूत्र भी नहीं हैं जो विद्दुत- चुम्बकत्व व गुरूत्वाकर्षण के क्षेत्रों की घटनाओं को समेट सकें. इससे स्पष्ट होता है कि आपेक्षिकता-सिद्धांत का मूल सूत्रीकरण अंतिम नहीं है. अर्थात् यह विकास की प्रक्रिया में है. जिस कार्य में मैं अब जोर-शोर से जूता हुआ हूँ वह है, गुरूत्वाकर्षण और विद्दुत-चुम्बकत्व के सिद्धांतों के बीच की द्विविधिता को समाप्त करना और दोनों के लिए एक ही तरह के समान गणितीय सूत्रों का सृजन करना.
आप सोचते हैं कि मैं अपने जीवन के कार्य से पूर्णत: संतुष्ट हूँ. मगर जब मैं इस पर गहराई से विचार करता हूँ, तो स्थिति एकदम भिन्न नजर आती है. ऐसी एक भी धारणा नहीं है जिसके बारे में मुझे पूरा यकीन हो कि वह दृढ़ता से टिकी रहेगी और इस बात का भी पक्का विश्वास नहीं है कि मैं सामान्यत: सही मार्ग पर आगे बढ़ रहा हूँ. मैं सही होना नहीं चाहता. मैं सिर्फ इतना जानना चाहता हूँ कि क्या मैं सही हूँ.
“आईन्स्टाइन के कृतित्व से मानव-जाति का क्षितिज बहुत ज्यादा विस्तृत हुआ है. साथ ही, इसने हमारी विश्व-पहचान को ऐसी एकता व सुसंगति प्रदान की है जिसकी हमने पहले कभी कल्पना नहीं की थी. इस उपलब्धि के लिए विगत पीढ़ियों के वैज्ञानिक के विश्व-समुदाय ने पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी,और इसके पूर्ण परिणाम केवल आगामी पीढ़ियों में ही प्रकट होंगे.
– नील्स बोर, आईन्स्टाइन के देहांत पर ,19 अप्रैल 1955
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