प्रस्तुत पोस्ट “Swami Vivekananda Stories in Hindi” में हम स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी कुछ छोटी -छोटी मगर प्रेरणादायक बातों और विचारों को इन लघु कहानियों के माध्यम से जानने का प्रयास करते हैं.
मां की महिमा
एक बार एक जिज्ञासु ने स्वामी विवेकानन्द से पूछा, ‘संसार में माँ की महानता क्यों गाई जाती है?’स्वामीजी ने इस पर मुस्कुराते हुए उस व्यक्ति से पूछा,’पाँच सेर का एक पत्थर ले आओ,’जब वह व्यक्ति पत्थर ले आया, तो स्वामीजी ने कहा, ‘इसे कपड़े से लपेट कर पेट पर बाँध लो और चौबीस घंटे बाद मेरे पास आओ,’
उस आदमी ने ऐसा ही किया, लेकिन कुछ घंटों में उसके लिए काम करना मुश्किल हो गया. उसे दिन में ही तारे नजर आने लगे. तब वह थका-मांदा स्वामीजी के पास आया और बोला, ‘अब मैं इस बोझ को और नहीं उठा सकता. आपने एक सवाल पूछने की इतनी बड़ी सजा मुझे क्यों दी ?’
स्वामीजी ने कहा, ‘इस पत्थर का बोझ तुमसे कुछ घंटे भी नहीं सहा गया और माँ पूरे नौ मास तक शिशु का बोझ उठाती है. इस बोझ के साथ वह सारा काम करती है और कभी विचलित नहीं होती. माँ से ज्यादा सहनशील कौन है ? इसलिए माँ की महिमा सबसे ज्यादा है.’
स्वामी विवेकानन्द की शालीनता
स्वामी विवेकानन्द रेल के जिस डिब्बे में सफर कर रहे थे, उसी डिब्बे में कुछ अंग्रेज यात्री भी थे. उन अंग्रेजों को साधुओं से बहुत चिढ थी. वे साधुओं की भरपेट निंदा कर रहे थे. उनका विचार था कि वह साधु अंग्रेजी नहीं जानता होगा.
एक बड़े स्टेशन पर स्वामी जी के दर्शनार्थ हजारों स्वागतार्थी उपस्थित थे, जिनमें विद्वान् एवं अधिकारी भी थे. वे अंग्रेजी में ही भाषण दे रहे थे. स्वामी जी को अंग्रेजी बोलते देखकर अंग्रेज स्तब्ध रह गये और अवसर मिलने पर नम्रतापूर्वक पूछने लगे कि ‘आपने हम लोगों की बातें सुनीं और बुरा माना होगा.’
स्वामी जी ने अपनी सहज शालीनता से कहा, ‘मेरा मस्तिष्क अपने ही कार्यों में इतना अधिक उलझा हुआ था कि आप लोगों की बातें सुनते हुए भी उन पर ध्यान देने और उनका बुरा मानने का अवसर ही नहीं मिला.’
आत्मा के द्वारा ही परमात्मा का पता चलता है.
स्वामी विवेकानन्द के प्रवचनों से प्रभावित होकर किसी ने कहा, ‘लगता है, आपकी पहुँच ईश्वर तक है. आप मुझे उस तक पहुँचा दीजिए. उनसे मिलने का स्थान बता दीजिए.’
स्वामी जी ने कहा, ‘आप अपना पता मुझे लिखा जाइए.’ जब ईश्वर को फुरसत होगी, तब उसे आपके घर ही भेज दूंगा.’
वह व्यक्ति अपने मकान का पता लिखाने लगा.
स्वामीजी ने कहा, ‘यह तो ईंट-चूने से बने घरौंदे का पता है. आप स्वयं अपना पता बताइए कि आप कौन हैं. किस प्रयोजन के लिए नियत थे और क्या कर रहे हैं.’
व्यक्ति ने इनके प्रश्न में छिपी दार्शनिकता का संकेत समझा और इस नतीजे पर पहुँचा कि पहले आत्मसत्ता के स्वरूप और उद्देश्य का पता लगाना चाहिए. तभी ईश्वर से मिलने की बात बनेगी.
इसी आत्मा की खोज करो. जब मनुष्य संसार के सब विषयों और विचारों से मन को हटा कर आत्मा के स्वरूप में मग्न हो जाता है तब उसकी प्राप्ति होती है.
ऊँचाई पर मत जाओ
स्वामी विवेकानन्द ने अपने गुरू स्वामी रामकृष्ण परमहंस से पूछा, ‘बहुत से पंडित अनेक शास्त्रों का पाठ करते हैं, वेद-पाठ में ही सम्पूर्ण जीवन बिता देते हैं. इस सबके बावजूद उन्हें ज्ञान-लाभ क्यों नहीं होता?’
स्वामीजी ने हँसते हुए उत्तर दिया, ‘चील-गिद्ध आदि पक्षी उड़ते तो ऊँचाई पर हैं, लेकिन उनकी दृष्टि पृथ्वी पर पड़े सड़े मांस के टुकड़ों पर ही रहती है. ठीक उसी प्रकार वेदशास्त्रों एवं ग्रन्थों का पाठ करने से क्या लाभ होगा? उनका मन तो हमेशा सांसारिक वस्तुओं की ओर लगा रहता है.’
स्वामी जी से प्रणय निवेदन
विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द के ओजस्वी भाषण, बलिष्ठ शरीर, सौन्दर्य एवं प्रतिभा से समस्त अमेरिकी मोहित थे. एक दिन एक परम सुन्दरी नवयुवती ने स्वामीजी का अभिवादन कर कहा, ‘महाशय …, मैं आपसे विवाह करना चाहती हूँ.’
‘किसलिए देवी?’आश्चर्यचकित स्वामीजी ने पूछा.
‘आप जैसा तेजस्वी और ज्ञानी पुत्र प्राप्ति हेतु.’
‘देवी ! इसकी क्या गारंटी है कि विवाह के बाद पुत्र ही होगा,’ फिर स्वामी जी ने हँसकर कहा, ‘देवी मैं तुम्हारी इच्छा पूरी कर सकता हूँ,’
हर्षित होकर युवती ने पूछा,’ वह कैसे?’
‘देवी, आज से आप मेरी माता और मैं आपका पुत्र.’
सच्ची शांति
स्वामी विवेकानन्द के पास एक साधु आया. उनका अभिवादन करके बोला, ‘स्वामीजी, मैं आपके पास एक विशेष काम से आया हूँ. मैंने सब कुछ त्याग दिया है, पर मुझे शान्ति नहीं मिलती. मन भटकता है. एक गुरू के पास गया. उन्होंने मन्त्र दिया. कहा, ’इसका जाप करो. तुम्हें अपने भीतर चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई देगी, फिर अनहद-नाद सुनाई देगा. उसके बाद शान्ति ही शान्ति. मैंने मन्त्र का जाप किया, ‘लगन से किया’, पर शान्ति नहीं मिली मैं हैरान हूँ,’
स्वामी विवेकानन्द ने उस साधु की ओर देखा. उसकी आँखें गीली थी. विवेकानंद ने कहा, ‘क्या आप सचमुच शान्ति चाहते हैं?’
‘जी हाँ, उसी के लिए तो आपके पास आया हूँ,’ निरीह स्वर में साधु ने कहा.
‘अच्छा’, विवेकानन्द बोले, ’मैं तुम्हें शान्ति का मार्ग सुझाता हूँ. एक काम करो ,’
‘क्या ?’ बड़ी उत्सुकता से साधू ने पूछा.
स्वामी जी ने सहज भाव से कहा, ‘घर से निकलो. पड़ोस में जो भी भूखा मिले, उसे अन्न दो, प्यासा मिले, उसे पानी दो, नंगा मिले, उसे कपड़ा दो, बीमार मिले, उसे दवा दो, दीन -दुखी मिले, उसे दिलासा दो. इसी से आपको सुख मिलेगा. इसी से आपको शान्ति मिलेगी.’
साधु नया संकल्प लेकर चला गया. उसने समझ लिया कि मानव-जाति की निस्वार्थ सेवा से ही इन्सान को शान्ति मिल सकता है.
मनुष्य जाति की सेवा
बी.ए. पास करने के बाद स्वामी विवेकानन्द ने एल.एल.बी. किया. इसी समय उनके पिता की मृत्यु हो गई. पूरे परिवार का भार उनके ऊपर था, लेकिन वह सन्यास लेने का विचार के रहे थे जब उन्होंने यह बात स्वामी रामकृष्ण परमहंस को बताई तो उन्होंने कहा, ‘यह स्वार्थ भरा विचार छोड़ दो अपनी मुक्ति की चिंता मत करो. इस संसार में लाखों लोग दुखी हैं. उनका दुख कम करो. भटके हुए समाज को सही रास्ता दिखाओ. लोक-कल्याण से बढकर कोई दूसरा कार्य नहीं है.’
अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की बातों का स्वामी विवेकानन्द कर घर प्रभाव पड़ा. वह जीवनपर्यन्त लोगों की सेवा में लगे रहे एक बार उन्होंने कहा था, दुख में फँसे मनुष्यों को मुक्त करना और मनुष्य जाति की सेवा करना ही सन्यासी का सच्चा धर्म हैं.’
स्वामी जी को गाली
स्वामी विवेकानन्द किसी गाँव में प्रवचन देने जा रहे थे. रास्ते में एक दुष्ट व्यक्ति गलियाँ देते हुए उनके पीछे चलने लगा. जब गाँव की सीमा आ गई तो स्वामी जी रुके और उस व्यक्ति से बोले-
‘देखो भले मानस ! जितनी गालियाँ देनी हों यहाँ दे लो. यदि सभास्थल पर गाली दोगे, तो हो सकता है वहाँ कुछ लोग तुम्हें दंड दें और मैं तुम्हें बचा नहीं सका, तो मेरी वजह से तुम जैसे विद्वान् की पिटाई हो जाएगी और उसका पाप मुझे लगेगा.’
वह व्यक्ति शर्म से झुक गया और माफी माँगकर भाग गया.
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Puran Mal Meena says
स्वामी विवेकानंद जी के बारे में आपने काफी अच्छी जानकारी दी है धन्यवाद
Sameer Patil says
Nice Article.
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