Importance of Dharma Hindi Patriotic Story
धर्म का महत्व बयां करती एक देशभक्ति हिंदी कहानी
प्रस्तुत कहानी Importance of Dharma Hindi Patriotic Story धर्म का महत्व बयां करती एक देशभक्ति हिंदी कहानी सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह जी से संबंधित है.
बात तब की है जब गुरु गोविन्द सिंह मुगलों से लोहा ले रहे थे. उन दिनों वे चमकौर के किले में रहकर मुगलों के खिलाफ रणनीति बना रहे थे. कहते हैं जो सच्चे देशभक्त होते हैं उनके लिए सबसे पहले देश आता है और उसके पश्चात घर, परिवार या अन्य कोई चीज. मुखवाल से जाते समय उनकी माता और दो छोटे बेटे फतह सिंह और जोराबर सिंह उनसे बिछुड़ गए थे. गुरु जी के पास इतना अधिक काम था कि वे अपने परिवार जनों को खोजने का भी वक्त नहीं निकाल पा रहे थे.
वे अपने अन्य पुत्रों अजीत सिंह और जुझार सिंह के साथ चमकौर में ही रहकर आगे की योजना बना रहे थे और इसको कैसी सफल बनाया जाय इसी में व्यस्त थे. तभी उनके पास दो संदेशवाहक आये जो आनंदगढ़ और मुखवाल क्षेत्र से चलकर आये थे.
गुरु जी ने संदेशवाहकों को उचित सम्मान देते हुए उनकी आवभगत की और उनका हाल चाल पूछा.
उनसे हँसते हुए पूछा – कहो भाइयो! क्या समाचार लाये हो?
संदेशवाहकों ने कहा – गुरु जी! जो सिख मुखवाल से आपका साथ छोड़कर चले गए थे उनको उनके गांववालों ने और परिवार वालों ने खूब धिक्कारा, यहाँ तक कि उन सबको विश्वासघाती तक कहा. उन सबको जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो वे सब आपसे माफी मांगने के लिए इधर ही आ रहे हैं.
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गुरु गोविन्द सिंह ने चेहरे पर मुस्कान लिए हुए कहा – “यह तो बहुत ही शुभ सन्देश है. यदि सुबह का भूला शाम को घर वापस आ जाए तो उसे भुला नहीं कहा जाता है. और आगे का सन्देश सुनाओ..”
संदेशवाहकों ने आगे कहा – “महाराज! यह सूचना पाकर कि आप चमकौर में विराजमान हैं, मुगलों की एक बहुत बड़ी सेना चमकौर पर आक्रमण करने आ रही है.”
यह सुनकर गुरु गोविन्द सिंह ने कहा – “यह तो बहुत अच्छी बात है. धर्म युद्ध तो तबतक चलते रहना चाहिए जबतक कि अधर्म का समूल नाश न हो जाए. आगे बताओ कि माताओं और कुमारों का क्या समाचार लाये हो? क्या वे प्राण जाने के भय से धर्म से विचलित हो गए और शत्रुओं की शरण तो नहीं ले ली.”
इतना सुनते ही संदेशवाहक बोल उठे – “ महाराज! आप ऐसा न कहें. कुमारों ने तो धर्म रक्षा हेतु अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया और यह बोल संदेशवाहक रोने लगे.
इस पर गुरु जी बोले – “अरे तुम इतना शुभ समाचार सुनाते हुए रो रहे हो? ऐसे समाचार सुनाते समय उत्साह और गर्व से तुम्हारा मस्तक उंचा होना चाहिए. जल्दी से पूरी बात विस्तार से बताओ कि उन सिंह संतानों ने किस प्रकार और कहाँ अपना बलिदान दे दिया.”
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संदेशवाहकों ने कहा – ‘गुरूजी ! मुखवाल से बिछुड़ कर माता और दोनों कुमार गंगू रसोइए के साथ उसके घर चले गये, किन्तु गंगू ने माता जी के घनों के लालच में विश्वासघात करके कुमारों को गिरफ्तार कराकर सरहिंद के नवाब के हवाले कर दिया. सरहिंद के नवाब ने उनसे कहा-बच्चों ! अगर तुम हमारा धर्म कबूल कर लो, तो तुम्हारी जान बख्स दी जाएगी, शाह्जादियों से तुम्हारी शादी करा दी जाएगी और एक बहुत बड़ी जागीर इनाम में दे दी जाएगी.’ किन्तु वे दोनों कुमार न तो मौत से डरे और न लालच में आए.
उन्होंने नवाब से साफ-साफ कह दिया कि धर्म की महत्ता एक प्राण तो क्या करोड़ों प्राणों से भी अधिक है. धर्म क्या बिकने वाली चीज है, जो आप लोभ देकर खरीदना चाहते हैं. आप बेशक हमारे प्राण ले लीजिए, लेकिन हम अपना धर्म नहीं छोड़ सकते. इस पर नवाब ने उन बच्चों को मार डालने का हुक्म दे दिया, लेकिन वे तैयार न हुए. तब नवाब ने उन बच्चों को किले की दीवार में जिन्दा चुनवा दिया, लेकिन वे दोनों कुमार अंत तक हँसते और धर्म की जय बोलते रहे. माता ने समाचार सुना तो छत से कूदकर प्राण दे दिए.
गुरू गोविन्द सिंह खुशी से उछल पड़े और बोले –‘फतह सिंह और जोरावर सिंह सच्चे वीर थे. हम सबको उनसे शिक्षा लेनी चाहिए. इसी प्रकार निर्भय बलिदान देकर ही धर्म की रक्षा की जाती है. धन्य हो वीरो! तुमने धर्म की साख बढ़ा दी.’
यह कहानी हमारे मन में देशप्रेम की भावना का संचार कर मन को आंदोलित कर देती हैं. बलिदान के उच्चतम आदर्श प्रस्तुत करती यह कहानी बहुत ही प्रेरक है. आप अपने विचार कमेंट द्वारा जरुर दें. धन्यवाद!
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pranita deshpande says
Koti Koti pranam for this article.
Pankaj Kumar says
इस ब्लॉग पर पधारने के लिए आपका भी बहुत बहुत आभार.