Peppy Leader who Saved Lives of Friends Hindi Story/ खरगोश और हाथी हिंदी कहानी
एक घने जंगल में हाथियों का झुण्ड रहता था. उन हाथियों के राजा का नाम चतुर्दत था. जंगल के बीच से एक नदी बहती थी, जिसमें सभी जानवर अपनी प्यास बुझाने आते थे.
एक बार क्षेत्र में सूखा पड़ गया, बारिश की एक भी बूँद न पड़ी. नदी भी सूख गई. स्थिति को देख हाथी बेहद चिंतित हुए. पानी नहीं होगा तो जीवन कैसे चलेगा. पीने को नसीब न था पानी – नहाने और खेलने की बात दूर रही.
काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने तय किया कि वे दूसरे जंगल में चले जाएंगे. उस जंगल में चंद्र्सार नदी बहती थी. यह नदी सदैव पानी से भरी रहती थी, चाहे वर्षा हो या न हो.
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सभी हाथी चल दिए उस नए जंगल की ओर. जंगल में जब उन्होंने पानी से लबालब भरी चंद्र्सार नदी देखी तो मतवाले से हो गए. उन्होंने जी भरकर नदी में नहाया और अपनी सूडों में पानी भरकर एक –दूसरे पर फुहारें फेंकी. जी भरकर नहाने और अठखेलियां करने के बाद वे नदी से बाहर निकले और घने जंगल में प्रवेश कर गए.
नदी के आसपास के क्षेत्र में बहुत से खरगोश अपना बिल बनाकर जमीन के नीचे रहते थे. हाथियों के वहाँ से गुजरने पर अपने बिल तहस-नहस हो गए. बहुत से खरगोश उनके भारी पैरों तले दम तोड़ बैठे. कुछ के हाथ-पैर टूट गए.
हाथी बहुत शक्तिशाली होता है, खरगोश यह जानते थे. प्राण बचाने के लिए क्या किया जाए, किसी को कुछ नहीं सूझ रहा था. इस भीषण आपदा से बचने के लिए खरगोशों की एक सभा हुई. एक विचार यह आया कि उन्हें यह स्थान छोडकर किसी नई जगह बसेरा बनाना चाहिए.
तब लंबकर्ण नामक एक अनुभवी और जोशीले खरगोश ने सभी से धैर्य रखने को कहा. उसने कहा, ”साथियों ! चिंता मत करो. देखो, कैसे मैं इन हाथियों को यहाँ से भगाता हूँ.”
अपनी इसी योजना के तहत अगले दिन लंबकर्ण एक ऊँची चट्टान पर जा बैठा. हाथी इसी रास्ते से नदी पर आया-जाया करते थे. उस दिन हाथी जब चट्टान के पास से निकले तो लंबकर्ण तीखे स्वर में हाथियों के मुखिया को संबोधित कर बोला. “तुमने मेरे बहुत – से साथियों को अपने पैरों तले रौंद डाला, उनके घर ध्वस्त कर दिए, मैं खरगोशों का राजा हूँ. मैं आकाश में चंद्र देवता के साथ रहता हूं. चंद्रदेव तुम्हारी करतूत से बेहद खफा हैं.”
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यह सुनकर हाथियों का मुखिया डर गया, भयमिश्रित स्वर में बोला, ”मुझे चंद्रदेव के पास ले चलो, मैं उनसे क्षमा मांग लूंगा”
फिर खरगोश के कहे अनुसार हाथियों का मुखिया रात ढलने पर नदी किनारे पहुंचा. दोनों नदी के किनारे पर खड़े हो गए. शांत, चांदनी रात थी, मंद-मंद हवा चल रही थी. तभी लंबकर्ण ने हाथियों के मुखिया से कहा कि ध्यानपूर्वक नदी के पानी को निहारे.
हाथी ने जब पानी पर दृष्टि जमाई तो उसे चंद्रमा का प्रतिबिम्ब दिखाई दिया. हवा चलने के कारण हिलते उस पानी में चंद्रमा का प्रतिबिम्ब काँपता-सा दिख रहा था,
पानी में हिलते चंद्रमा के प्रतिबिम्ब की ओर इशारा कर खरगोश बोला, ”तुम खुद ही देख लो, चंद्रदेव कितने गुस्से में हैं. मारे गुस्से के कांप रहे हैं. अच्छा होगा, तुम क्षमा माँग लो, वरना शाप देकर तुम सबका अंत कर देंगे.”
यह सुनकर पहले से डरा हुआ हाथियों का मुखिया और भी डर गया. उसने चंद्रदेव से क्षमा मांगकर यह वादा किया कि वह तुरंत अपने साथियों के साथ यह स्थान छोड़ रहा है.
हाथियों के जाने के बाद खरगोश फिर अमन-चैन से रहने लगे. इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि यदि प्रतिपक्षी ताकतवर हो, वहां बुद्धि से काम लेना चाहिए. If opponents strong enough, then use your intellect.
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Nice story! Reminds me of the old days when we were still child and our books were full of similar stories. And, of course, with a lesson that most of us forget while growing up.