Shabari Ke Ber Ramayan Story शबरी के बेर रामायण की कहानी
श्रमणा एक भीलनी थी. वह शबरी जाति की थी. बचपन से ही वह भगवान् श्रीराम की अनन्य भक्त थी. उसे जब भी समय मिलता वह भगवान की सेवा-पूजा करती. घर वालों को उसका व्यवहार, पूजा पाठ अच्छा नहीं लगता था.
बड़ी होने पर श्रमणा का विवाह हो गया, पर अफसोस, उसके मन के अनुरूप कुछ भी नहीं मिला. उसका पति भी उसके मन के अनुसार नहीं था. यहाँ के लोग अत्यंत अनाचारी-दुराचारी थे. हर समय लूट-मार तथा हत्या के काम में लिप्त रहते. श्रमणा का उनसे अक्सर झगड़ा होता रहता.
इस गंदे माहौल में श्रमणा जैसी सात्विक स्त्री का रहना बड़ा कष्टकर हो गया था. वह इस वातावरण से निकल भागना चाहती थी. वह किसके पास जाकर आश्रय के लिए शरण मांगे. यह भी एक समस्या थी.
आखिर काफी सोच- विचार के बाद उसने मतंग ऋषि के आश्रय में रहने का निश्चय किया. मौका पाकर वह ऋषि के आश्रम में पहुंची. अछूत होने के कारण वह आश्रम के अंदर प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा सकी और वहीं दरवाजे के पास गठरी-सी बनी बैठ गई.
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काफी देर बाद उस स्थान पर मतंग ऋषि आए. श्रमणा को देखकर चौंक पड़े. श्रमणा से आने का कारण पूछा. उसने बहुत ही नम्र स्वर में अपने आने का कारण बताया. मतंग ऋषि सोच में पड़ गए. काफी देर बाद उन्होंने श्रमणा को अपने आश्रम में रहने की अनुमति प्रदान कर दी.
श्रमणा अपने व्यवहार और कार्य-कुशलता से शीघ्र ही आश्रमवासियों की प्रिय बन गई. इस बीच जब उसके पति को पता चला कि वह मतंग ऋषि के आश्रम में रह रही है तो वह आगबबूला हो गया. श्रमणा को आश्रम से उठा लेने के लिए वह अपने कुछ हथियारबंद साथियों को लेकर चल पड़ा.
मतंग ऋषि को इसके बारे में पता चल गया. श्रमणा दुबारा उस वातावरण में नहीं जाना चाहती थी. उसने कातर दृष्टि ऐ से ऋषि की ओर देखा. मतंग ऋषि सिद्ध पुरुष थे. श्रमणा की इस करुण दशा को देख वे द्रवित हो उठे.
ऋषि ने फौरन उसके चारों ओर अग्नि पैदा कर दी . जैसे ही उसका पति आगे बढ़ा, अपनी पत्नी के चारों तरफ के इस अग्नि सुरक्षा कवच को देखकर डर गया और वहाँ से भाग खड़ा हुआ. इस घटना के बाद उसने फिर कभी श्रमणा की तरफ कदम नहीं बढ़ाया.
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दिन गुजरते रहे.
भगवान श्रीराम सीता की खोज में मतंग ऋषि के आश्रम में जा पहुंचे. मतंग ने उन्हें पहचान लिया. उन्होंने दोनों भाइयों का यथायोग्य आदर -सत्कार किया.
मतंग ऋषि ने श्रमणा को बुलाकर कहा, “श्रमणा !जिस राम की तुम बचपन से सेवा-पूजा करती आ रही थीं, वही राम आज साक्षात् तुम्हारे सामने खड़े हैं. मन भरकर इनकी सेवा कर लो.”
श्रमणा भागकर कंद-मूल लेने गई. कुछ क्षण बाद वह लौटी. कंद- मूलों के साथ वह कुछ जंगली बेर भी लाई थी.
कंद-मूलों को उसने श्रीभगवान के अर्पण कर दिया. पर बेरों को देने का साहस नहीं कर पा रही थी. कहीं बेर खराब और खट्टे न निकलें, इस बार का उसे भय था.
उसने बेरों को चखना आरंभ कर दिया. अच्छे और मीठे बेर वह बिना किसी संकोच के श्रीराम को देने लगी.
श्रीराम उसकी सरलता पर मुग्ध थे. उन्होंने बड़े प्रेम से जूठे बेर खाए.श्रीराम की कृपा से श्रमणा का उद्धार हो गया. वह स्वर्ग गई.
यही श्रमणा रामायण में शबरी के नाम से प्रसिद्ध हुई. इस कहानी के माध्यम से भगवान श्रीराम ने तत्कालीन जाति व्यवस्था पर प्रहार किया है. आज हमारे देश में caste system गहरी पैठ बनाये हुये है. यह समाज को विभाजित करता है. यह आज के युवाओं और सामाजिक क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को इसके खिलाफ काम करना होगा. भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाकर भक्त और भगवान् के संबंध को एक नयी ऊंचाई प्रदान की है.
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Vishal says
Matang rishi ki mratyu ke bad bhagwan shreeram mata seeta ko khojte hua shabri ke pas aaye the
Please Clear this confusion.
sandeep says
शबरी और की यह कहानी काफी पावन और पवित्र करने वाली है| इसे आपने कह कर हमें आपने धन्य किया|