गृह निर्माण आवश्यक वास्तु विचार
House Construction Essential Vaastu Vichar / प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में अपने लिये एक सुन्दर- सा घर बनाना चाहता है. गृह- निर्माण करते समय वास्तु विचार बहुत आवश्यक हो जाता है. वास्तुशास्त्र के अनुसार गृह – निर्माण एक अत्यधिक जटिल प्रक्रिया है. भूखंड क्रय से निर्माण तक के कार्य में कहीं भी की गई असावधानियाँ कुछ भी हानि दे सकती हैं. टिहरी नगर इसका प्रत्यक्ष उदहारण है. उसकी स्थापना – काल एवं निर्माण – संबंधी तथ्यों को परखकर ही ज्योतिषियों ने ठीक चार सौ वर्ष पश्चात् उसके जलमग्न होने की भविष्यवाणी की थी, जो सच साबित हुई.

House Construction Essential Vaastu Vichar
इसलिए इस पोस्ट में वास्तु – निर्माण के कुछ आवश्यक तथ्यों पर विचार किया गया है ताकि आप अपने गृह निर्माण के समय इन विंदुओं पर विचार कर अपने घर को सदैव सुख – सन्तोषदायक बनाये रख सकें.
• उत्तरी दीवार को सदैव ही अन्य दीवारों से नीची, पतली तथा हल्की निर्माण कराएँ.
• उत्तरी दीवार का कोई कोना कम या कटा हुआ नहीं होना चाहिए.
• उत्तरी भाग को नीचा रखना धनदायक होता है.
• उत्तरी – पूर्वी कोना बढ़ा हो तो लक्ष्मी को आकर्षित करता है.
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• उत्तर – पूर्व की ओर यदि कोई नीचा भूखंड मिले तो उसे तुरंत खरीद लेना चाहिए. यह धन की वर्षा करता है.
• ईशान के बढ़े कोने में टैंक, तहखाना, अथवा नल आदि लगाने से धन की वर्षा होती है. यहाँ पूजा घर भी बनाया जा सकता है.
• ऐसे भूखंड सदैव ही शुभ – सुख तथा धनदायक होते हैं. इन्हें किसी भी कीमत पर खरीद लेना चाहिए.
• कभी भी ईशान कटा हुआ भूखंड नहीं खरीदना चाहिए. ऐसे भूखंड गरीबी, कर्जा, बीमारी, मुकदमा तथा अनेक परेशानियाँ देने वाले होते हैं.
• पश्चिम कोण में कुआँ या नल आदि नहीं लगाना चाहिए. यहाँ पर यह घातक प्रभाव उत्पन्न करके परिवार में विवाह आदि में अवरोध तथा हानियाँ पैदा करता है.
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• इसी प्रकार नैरित्य कोण का कुआँ, तहखाना, गहराई, नल आदि पारिवारिक दुर्घटना और ऋणकारक होता है.
• घर में सदैव ही भूमि तथा निर्माण की ऊँचाई दक्षिण में अधिक होनी चाहिए तथा उत्तर को ढलान. दक्षिण से उत्तर को जितना अधिक ढलान होगा उतनी ही धनवर्षा होगी.
• यदि ढाल उपरोक्त के विपरीत अर्थात उत्तर से दक्षिण को है तो ऐसा घर सदैव ही ऋण, बेरोजगारी, दुर्घटना एवं रोग आदि से ग्रस्त रहता है.
• अग्निकोण उर्जा तथा ताप का स्थान होता है आग- पानी का सदैव से बैर है अतः अग्नि कों में जल – नल, कुआँ आदि का स्थान होना भी विपत्ति का कर्क होता है यहाँ पर टैंक भी नहीं होना चाहिए.
• भवन –निर्माण के लिए त्रिभुजाकार भूखंड को त्यागना ही उचित है. यदि बनाना अनिवार्य हो तो उसे शुभ करके बनाएँ.
• जिस भूखंड की दो दिशाओं में ऊँचे भूखंड अथवा ऊँचे निर्माण हो उसका त्यागना ही श्रेष्ठ है. अथवा उनके समान निर्माण कराएँ. अन्यथा सदैव कष्टों में रहेंगे.
• भूखंड की लंबाई उत्तर – दक्षिण की अपेक्षा पूर्व – पश्चिम में अधिक होना शुभ होता है.
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• किसी भी निर्माण में चहारदीवारी के अंदर या किसी भी प्रकार से उत्तर की अपेक्षा दक्षिण में अधिक खुला स्थान नहीं होना चाहिए. यह विनाशकारी होगा.
• पूर्व दिशा की अपेक्षा पश्चिम में रिक्त स्थान अधिक नहीं होना चाहिए. यह भी विनाशकारी सिद्ध होगा.
• सदैव शुभ भूखंड का चयन ही करें.
• वस्तु भूखंड का कोई कोना कटा नहीं होना चाहिए.
• भारी सामान, मशीन आदि को दक्षिण या पश्चिम नैत्रत्य में रखना ही श्रेष्ठ होता है अन्यथा हानि होते देर नहीं लगेगी .
• उत्तर ईशान एवं वायव्य कों में आवश्यक या भवन का सर्वाधिक हल्का – फुलका सामान रखें. इन कोणों को भारी बनाना विपत्तियों को आमन्त्रण देना होगा.
• भवन की पूर्व दिशा में ऊँचे निर्माण या ऊँचे वृक्ष आदि नहीं होने चाहिए.
• भवन की पश्चिम दिशा में ऊँचे निर्माण तथा वृक्ष आदि शुभ होते हैं. यदि नहीं है तो लगवाएं.
• यदि आप भूखंड खरीदने जा रहे हैं तो पूर्व या उत्तर मार्ग वाले भूखंड का चयन ही करें.
• जहाँ तक संभव हो, भवन का मुख्य द्वार एक ही रखें तथा उसे अलंकृत कराएँ पुराने वस्तु – निर्माण में अधिकांशत: व खिड़कियाँ आदि समान तल में लगवाएँ ये ऊँची – नीची न हो. ऊपरी तल में तो इस बात का विशेष ध्यान रखें.
• ऊपर का द्वार नीचे के द्वार से कुछ छोटा रखें तथा द्वार के ऊपर द्वार न बनवाएँ बहुमंजिले भवन में यह नियम लागू नहीं होता.
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• यदि छत पर पानी की टंकियां रखनी हों तो दक्षिण – पश्चिम में रखनी श्रेष्ठ होती हैं. इससे नैत्रत्य व दक्षिण – पश्चिम ऊँचा रहने के साथ – साथ भारी भी रहता है, जोकि वस्तु का एक आवश्यक शुभ नियम है.
• पूजास्थल का निर्माण सदैव ईशान में ही शुभ होता है. यदि यह संभव न हो तो पूर्व ईशान में भी किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त यदि किसी कमरे में रखें तो उसके ईशान में ही रखें.
• रसोईघर का सर्वश्रेष्ठ स्थान आग्नेय कोना है यदि यहाँ असंभव हो तो पूर्वी अथवा दक्षिणी ईशान में भी रखा जा सकता है.
• भवन – निर्माण, भूखंड के मध्य में, वास्तु – सम्मत कराएँ तथा चारों ओर चहारदीवारी कराकर रिक्त स्थान छोड़ें.
• चहारदीवारी हो अथवा भवन, दोनों को दक्षिण – पशिम में ऊँचा बनाएँ जबकि उत्तर – पूर्व में नीचा.
• भूमिगत वाटर टैंक,कोई तहखाना, नल आदि की स्थापना उत्तर – पूर्व में ही करने चाहिए.
• यदि आप कोई मन्दिर आदि निर्माण करवा रहे हैं या किसी को परामर्श दे रहे हैं तो उसके द्वार चारों दिशाओं में रखे जा सकते हैं.
• नवीन निर्माण में शुभ मुहूर्त में ही प्रवेश करें तथा प्रवेश से पूर्व वास्तु – पूजन तथा गृहप्रवेश संबंधी पूजा – पाठ अवश्य कराएँ अन्यथा अनेक कष्टों का सामना संभावित है.
• घर में हिंसक पशु – शेर, चीता आदि, विषैले जन्तु – सर्प आदि, शकुन पक्षी कौआ, उल्लू आदि, युद्ध चित्र, उदासी – भरे चेहरे, वीरान खंडहर, पतझड़ के मौसम आदि के चित्र नहीं लगाने चाहिए.
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• घर के जल की निकासी पूर्व वायव्य, ईशान एवं उत्तर को ही शुभ होती है. अन्य दिशाओं से कष्ट प्राप्त होता है.
• आग्नेय, नैत्रत्य, वायव्य पशिम तथा दक्षिण दिशाओं में नीचा अथवा गड्ढे आदि होने से घर में कलह तथा अशांति का वातावरण रहता है.
• भूखंड के पश्चिमी भाग में तल, ऊँचा तथा पूर्वी का तल नीचा रखें तथा पश्चिम से पूर्व को ढलान रखें.
• भवन का विस्तार चारों ओर को समान रूप से करें.
• सीढी का ऊपरी द्वार पूर्व या दक्षिण को रखें तथा इसका निर्माण पश्चिम या उत्तरी भाग में बाई ओर कराएँ.
• यदि सामर्थ्य है तो भूखंड की लगभग तीन फिट मिटती निकालकर तत्पश्चात नवीन मिट्टी भरकर निर्माण करें.इससे भूखंड शल्य आदि दोषों से मुक्त हो जाता है.
• यदि भवन पर प्रात: नौ बजे से मध्याह्न तीन बजे तक वृक्षों की छाया रहे तो यह अशुभ होता है.
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• शौचालय अथवा मूत्रालय का निर्माण वायव्य में ही शुभ होता है. यदि अन्य दिशाओं में बनाना पड़े तो इस प्रकार बनाएँ कि बैठने वाले का मुख उत्तर या दक्षिण को रहे.
• अथवा निर्माण में काष्ठ भी नवीन ही लें पुराना काष्ठ प्रयोग न करें, अशुभता लाएगा.
• अधिकांश खिड़कियाँ पूर्व दिशा में होनी चाहिए. इससे परिवार वृद्धि को प्राप्त होगा. उत्तर में होने से धनादि लाभ होता है. पश्चिम की खिड़कियाँ साधारण होती हैं, जबकि की हानिकारक होती हैं.
• खिड़कियों के कांच यदि टूट जाएँ तो तुरंत बदल दें अन्यथा समस्या उत्पन्न होगी. इसी प्रकार खिड़कियों के किवाड़ों को भी समझें.
• भवन की नींव की स्थापना कठोर भूमि पर कर लें. ऊपरी भुरभुरी जमीन पर न करें.
• नींव की खुदाई के समय यदि अस्थियाँ आदि अशुभ वस्तुएँ निकल आएँ तो इन्हें छांटकर दूर फ़ेंक देनी चाहिए, मिटती के साथ पुनः नहीं भरवानी चाहिए.
• नींव में यदि पत्थर की शिला निकले तो यह भविष्य के लिए शुभ संकेत होता है.
• नींव की चौडाई भी ठीक ही रखें.
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• भूखंड बंद, दवा या संकीर्ण नहीं होना चाहिए.
• यदि संभव हो तथा भूखंड बड़ा हो तो भवन – निर्माण भूखंड के ¼ भाग पर कराएँ. शेष स्थान खुला रखें तथा उसका उपयोग वास्तु – समस्त विधि से करें.
• भूखंड के पूर्व – उत्तर में यदि वृक्ष हो तो उनसे क्षमायाचना करके उन्हें काट देना चाहिए, परन्तु उन्हें अधूरा न काटें, जड़ से ही निकालें.
• लान का निर्माण पूर्व में कराएँ, जिसमें छोटे, सुगन्धित तथा पुष्प वाले पौधे हों. पूरब, उत्तर की दीवारों पर लताओं को न चढाया जाए. बीच में केक्ट्स व कांटेदार पौधे न लगाएँ.
• नैत्रत्य को सर्वाधिक ऊँचा बनाएँ.
• भवन के आग्नेय में यदि बिजली का खंभा या ट्रांसफार्मर आदि है तो वह शुभ है परंन्तु अन्य दिशाओं में अशुभ.
• मुख्य द्वार के पास अस्वच्छता न हो.
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• जहाँ तक संभव हो घर का निर्माण चौरस करना चाहिए.
• सामने वाली दीवारें ऊबड़ – खाबड़ न होकर चिकनी, प्लास्टर युक्त होनी चाहिए.
• दीवारों में दरार, बैठी दीवारें, दरवाजो – मेहराबों में दरारें आदि नहीं होनी चाहिए. यदि हो तो तुरंत ठीक करा लें अन्यथा हानि को नहीं रोक पाएँगे.
• पूरब –उत्तर की दीवार सम्पूर्ण भवन निर्मित हो जाने के पश्चात ही बनवाएँ.
• दीवारों में यदि सीलन हो तो उसे रोकें अन्यथा घर से बीमारी नहीं निकल पायेगी.
• कोने ठीक बने हों, यदि कमी हो तो तुरंत ठीक करें. दक्षिण – पश्चिम की दीवारों टेढ़ी – मेढी या दरारयुक्त न हों.
• कमरों की ऊँचाई अधिकाधिक रखें.
• गृह – स्वामी एवं भूखंड का नक्षत्र एक नहीं होना चाहिए. यदि है तो यह अत्यधिक अशुभ है. इस भूखंड का परित्याग कर दें अन्यथा यह गृह – स्वामी के लिए मृत्यु दायक हो सकता है.
• गृह – स्वामी, भूखंड की नाडी एक ही होनी श्रेष्ठ मानी जाती है, यह कई दोषों के लिए शमनकारी है.
• जिस भूखंड को देखते ही मन प्रसन्न हो जाए, लेने के पश्चात् परिवार – व्यापार आदि में शुभ लक्ष्ण – वृद्धि प्रतीत होने लगे, वह भूखंड सर्वोत्तम होता है.
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