Always Speak Truth Motivational Article सदैव सत्य बोलें
हम सब बचपन से ही यह सुनते आये हैं कि हमें सत्य बोलना चाहिए. सबने गांधीजी की कहानी और राजा हरिश्चन्द्र की कहानी भी जरुर सुनी होगी. इस post में मैं सत्य बोलने यानि सत्यवादिता (Always Speak Truth Motivational Article ) से संबंधित कुछ विन्दुओं पर आप सबका ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा.
सच ही कहा गया है कि सत्यवादिता तप है. इसका पुण्य प्राप्त करने के लिए मानव को केवल यही प्रयत्न करना पड़ता है कि जिस वस्तु को जिस रूप में पढ़े, देखे या सुने उसे उसी वास्तविक रूप में प्रकट कर दे. इस छोटे से प्रयत्न का ही नाम सत्यवादिता है. इसके विपरीत सब कार्य असत्य भाषण के अंतर्गत आ जाते हैं. इनसे आत्म- सम्मान को ठेस पहुंचती है.
सत्यवादी का आचरण सदैव शुद्ध रहता है. उसके अन्तःकरण के पाप इस गुण से सदैव के लिए पुण्य का रूप धारण कर लेते हैं, उसका मन – रूपी चन्द्र निष्कलंक हो जाता है. उसका कालिमायुक्त हृदय गंगाजल के समान उज्ज्वल और पवित्र हो जाता है.
सच बोलने वाला यानि सत्यवादी वीर और निडर होता है. वह कठिन से कठिन मुसीबत में भी विचलित नहीं होता. राजा हरिश्चंद्र ने अपना राज्य त्यागा, अनेक कष्टों को झेला, पत्नी को बेचा, डोम के दास बने; परन्तु सत्य नहीं छोड़ा. अंत में उन्हीं की विजय हुई और उनका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा गया.
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सत्यवादी की चिन्तन – शक्ति दृढ होती है. उसके चरित्र का निर्माण हो जाता है. विश्व में उसका विश्वास होता है. उसके प्रियजन प्राण न्योछावर करने के लिए हर समय तत्पर रहते हैं, वह देव तुल्य पूजा जाता है. उसके त्याग और तपस्यापूर्ण जीवन से भगवान भी प्रसन्न रहते हैं.
दूसरी तरफ झूठे यानि असत्यवादी का विश्व में सम्मान नहीं होता है. उसकी आत्मा का हनन हो जाता है. उसकी उन्नति का मार्ग सदा के लिए बंद हो जाता है. उसकी शक्ति दिन प्रति दिन क्षीण होती जाती है. वह आत्म – सम्मान से हाथ धो बैठता है. लोग उसकी छाया तक से घृणा करने लगते हैं.
हमें सत्यवादिता का अभ्यास का अभ्यास जीवन की प्रारम्भिक घड़ियों से ही करना चाहिए. इसी के द्वारा सच्चा सुख, आत्मिक – शांति, श्रद्धा – भजन, आत्म –सम्मान और सामाजिक उन्नति पा सकते हैं. सत्य की सदा जय और असत्य की पराजय होती है.
सत्य बोलना एक आदत होती है, जो धीरे -धीरे विकसित होती है. सभी को सत्य बोलने का प्रयास करते रहना चाहिए. लोग प्रायः छोटी -छोटी बातों में प्रायः झूठ बोलते हैं. कहा भी गया है कि एक सच को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते है. इसलिए सत्य का अनुगामी बनें. सत्य का मार्ग थोड़ा कठिन अवश्य होता है लेकिन दुरूह नहीं. सत्यमेव जयते!
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