होली रंगों का पर्व है, ख़ुशी और उल्लास का पर्व है. यह पर्व ईश्वर के प्रति अपनी आस्था और विश्वास का पर्व है. होली (Holi) का पर्व मनाने के पीछे कथा बहुत पुरानी है जो कि आज के समय में भी उतनी ही प्रांसगिक है जितना कि पहले हुआ करती थी।
होली (HOLI) से जुड़ी कथा इस प्रकार है.
होली का त्योहार राक्षसराज हिरण्यकश्यप के गुरूर को तोड़ने और उसके पुत्र भक्त प्रह्लाद की आस्था के विजय की कहानी है. हिरण्यकश्यप इतना घमंडी था कि स्वयम को भगवन समझ बैठा परन्तु उसका पुत्र विष्णु का भक्त था. जिसके कारण उसके पिता ने उसे अनेकों कष्ट दिए. होली पर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका भक्त प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई थी, उसे वरदान प्राप्त था कि आग उसे जला नहीं सकती लेकिन अधर्म का साथ देने की वजह से होलिका जल गई और भक्त प्रह्लाद बच गए.
हिरण्यकश्यप को उसके पापों की सजा देने के लिए और उसका अंत करने के लिए भगवान स्वयं नृसिंह अवतार के रूप में पृथ्वी पर उतरे और अपने नखों से उसका पेट चीर कर उसका वध कर दिया। भगवान के हाथों मरने की वजह से राक्षस हिरण्यकश्यप को स्वर्ग की प्राप्ति हुई जबकि भक्त प्रह्लाद की आस्था और विश्वास की जीत ने अधर्म के ऊपर धर्म की एक बार फिर स्थापना हो गई. उस दिन से होली का पर्व मनाया जाता है.
Holi (होली) के अवसर पर लोग रंग उड़ाते हैं और भजन कीर्तन करते हैं. इस अवसर पर गाये जाने वाले चौताला का एक और बानगी पेश है. इसमें भक्ति संगीत को पिरोकर एक ताल से शुरू कर चार ताल तक गाया जाता हे जो काफी सरस और उम्दा किस्म का होली संगीत है. इसमें इतनी गहराई और ठहराव होता है कि इसके लिए गायकों को काफी रियाज करनी पडती है.
चौताला का एक बानगी पेश है:
मंदोदरी रावण से कह रही है…
बैर करो ना
बैर करो ना
रघुवर जी से बैर ..
सौ जोजन मरजाद सिंधु को
सो कोई बाँध सके ना
ताहि बाँधी उतरे रघुनन्दन
संग भालू कपि सेना
समर कोई जीती सके ना
अरे हाँ हाँ …..
होरी से लंका जलाई गयो है
अब कोई भाग सके ना
करी करी दाव वीर सब थाके
पावक प्रबल बुझो ना
जुगति करी एको बने ना
अरे हाँ हाँ …..
होली (Holi) के अवसर पर गांव में गाया जाने वाला फाग, चौताला, जोगीरा हमारी पारंपरिक संगीत का खजाना रहा है:
कुछ बानगी पेश है सुनआयो है आज होली के भनक
रंग डालूंगी आज जिन्ह तोरे हे धनुक … शास्त्रीय संगीत
जात कुमारी राज दुलारी गिरिजा पूजन जात … चौताला
किनका पोखरिया में झिलमिल पनिया
किनका पोखरिया सेमार
किनका पोखरिया रे रोहू रे मछलिया
कौने गिराबे महाजाल जोरिदारबा
कौने गिराबे महाजाल जोरिदारबा …. लोंडा नाच
भर फागुन बुढ़बा देबर लागे … फाग
कौमे हिंदू के नगर हर वर्ष आती होलिका
हरी भजन में क्या असर है यह बताती होलिका … भजन
पहन के निकले गाँधी टोपी
अन्ना जी सरदार
जरुर मिटेगा जरुर मिटेगा
एक दिन भ्रष्टाचार
जोगीरा सा ..रा .रा..रा.. जोगीरा
पंडित छन्नू लाल मिश्रा का यह फाग सुनते ही रोम रोम पुलकित हो उठता है.
भूत पिसाच बटोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी ।।
लखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से रंग–गुलाल हटा के
चिता–भस्म भर झोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी ।।
गोपन–गोपी श्याम न राधा, ना कोई रोक ना कौनऊ बाधा
ना साजन ना गोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी ।।
नाचत गावत डमरूधारी, छोड़ै सर्प–गरल पिचकारी
पीतैं प्रेत–धकोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी ।।
भूतनाथ की मंगल–होरी, देखि सिहाएं बिरिज कै गोरी
धन–धन नाथ अघोरी दिगंबर खेलैं मसाने में होरी ।।
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रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) says
प्रभावशाली ,
होली की बधाई !!!
जारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त
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Pankaj Kumar says
आपका धन्यवाद
Chaitanyaa Sharma says
ज़बरदस्त होली का हुल्लड़ ….. शुभ होली