Chant Maha Mrityunjaya Mantra for Better Health /बेहतर जीवन के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करें
Dear All, Must Chant Maha Mrityunjaya Mantra for Better Health. महामृत्युंजय मंत्र को संजीवनी मंत्र कहा जाता है. इस मंत्र का नियमित और श्रद्धापूर्वक जप और श्रवण से मनुष्य के समस्त पाप, शारीरिक और भौतिक सभी प्रकार के कष्टों का उन्मूलन हो जाता है.

Chant Maha Mrityunjaya Mantra for Better Health
यह एक अमोघ मंत्र है. जब मनुष्य को विपदा चारों तरफ से घेर लेती है, बात जीवन- मरण का आ जाता है, तब लोग भगवान् शिव के इस अमोघ मंत्र का जाप करते हैं और उनका दुःख टल जाता है. हमारे धर्म ग्रंथों में ऐसे कई प्रमाण है जहाँ लोगों ने, देवताओं ने इस मंत्र का जाप किया है और उनको अभीष्ट फल की प्राप्ति हुई है.
नीचे दिए गए श्लोक द्वारा भगवान् महामृत्युंजय के बारे में जानकारी मिलती है.
हस्ताभ्यां कलशद्वयामृतसैराप्लावयन्तं शिरो
द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां वहन्तं परम् |
अंकस्तकरद्व्यामृतघटं कैलासकान्तं शिवं
स्वच्छाम्भोजगतं नवेंदुमुकुटं देवं त्रिनेत्रं भजे ||
भगवान मृत्युन्जय अपने ऊपर के दो हाथों में स्थित दो कलशों से सिर को अमृत जल से सींच रहे हैं. अपने दो हाथों में क्रमशः मृगमुद्रा और रूद्राक्ष की माला धारण किये हैं. दो हाथों में अमृत-कलश लिये हैं. दो अन्य हाथों से अमृत-कलश को ढके हैं. इस प्रकार आठ हाथों से युक्त, कैलाश पर्वत पर स्थित, स्वच्छ कमल पर विराजमान, ललाट पर बालचन्द्र का मुकुट धारण किये, त्रिनेत्र, मृत्युन्जय महादेव का मैं ध्यान करता हूँ.
‘आज आप बहुत दुखी और उदास दीख रहे हैं|’ महामुनि मृगश्रिंग के पौत्र श्रीमार्कणडेय ने अपने पूज्य पिता को चिंतित देखकर अत्यंत विन्रमता से कहा. ‘इसका क्या कारण है? आपको चिंतित देखकर मेरा हृदय व्याकुल हो रहा है.’
‘बेटा !’ महामहिम मृकंडू ने दुखी मन से श्री मार्कन्डेय जी के मुख की ओर देखते हुए अतिशय स्नेह से बताया. ‘तुम्हारी माता मरूद्वती को कोई सन्तान न होने से मैंने उसके साथ तपस्या और नियमों का पालन करते हुए पिनाकधारी शिव को प्रसन्न किया. आशुतोष ने प्रकट होकर मुझे पुत्र प्राप्ति का वर दिया, किन्तु तुम्हारी आयु मात्र सोलह वर्ष की दी. शशांकशेखर अन्तर्धान हो गये. कुछ समय के अनन्तर तुम्हारा जन्म हुआ. भोलेनाथ के वर प्राप्त पुत्र होने से तुममें अद्भुत गुण विद्यमान हैं. तुमसे हम दम्पति अत्यंत सुख का अनुभव करते हैं, अपने को गौरवान्वित समझते हैं, कुछ रूककर कातर स्वर में श्रीमृकणडू मुनि ने पुनः कहा –‘अब तुम्हारा सोलहवाँ वर्ष समाप्त हो चला है.’
‘आप मेरे लिये चिंता न करें.’ श्री मार्कणडेय ने अत्यंत गम्भीरता से पिता को आश्वस्त करने के लिये विन्रमता के साथ कहा –‘भगवान आशुतोष कल्याणस्वरूप एवं अभीष्ट फलदाता हैं. मैं उनके मंगलमय चरणों का आश्रय लेकर और उनकी उपासना करके अमरत्व प्राप्त करने का प्रयत्न करूंगा.’
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श्रीमार्कणडेयजी माता –पिता के चरणों की धूलि मस्तक पर रख भगवान शंकर का स्मरण करते हुए दक्षिण समुद्र के तट पर पहुंचे और वहाँ उन्होंने अपने ही नाम पर (मार्कणडेयेश्वर) शिवलिंग की स्थापना की तथा त्रिकाल-स्नान करके बड़ी ही श्रद्धा -भक्ति से मृत्युन्जय स्तोत्र के द्वारा भगवान मृत्युन्जय की उपासना करने लगे. भगवान शंकर तो आशुतोष ठहरे. उक्त स्तोत्र से एक ही दिन में प्रसन्न हो गये.
श्रीमार्कणडेय पार्वतीश्वरपर समर्पित हो गये. मृत्यु के दिन श्रीमार्कणडेय अपने आराध्य की पूजा करके स्तोत्र -पाठ करना ही चाहते थे कि चौंक गये. उनके कोमल कण्ठ में कठोर पाश पड़ गया. उन्होंने दृष्टि उठाकर देखा तो सम्मुख भयानक काल खड़े थे.
‘महामते काल !’ श्रीमार्कणडेयने निवेदन किया ‘मैं अपने प्राणप्रिय मृत्युन्जयस्तोत्र का पथ कर लूं, इतना अवसर आप मुझे दे दें,’
‘काल किसी की प्रतीक्षा नहीं करता, ब्रह्मान !’काल ने बड़े रोष से कहा ‘तुम्हारे लिये भी समय नहीं है.’
‘आह ! ‘काल ने नेत्र लालकर श्रीमार्कणडेय का प्राण हरन करने के लिये पाश खींचना ही चाहा कि वे दूर जा गिरे. पीड़ा से छटपटाने एवं भय से कांपने लगे. उक्त शिवलिंग से साक्षात् भूतभावन भगवान शंकर ने प्रकट होकर अत्यंत क्रोध काल के वक्ष में कठोर पदाघात किया था.
काल की दुर्दशा एवं अपने आराध्य का अनुपम रूप -लावण्य देखकर श्रीमार्कणडेय की प्रसन्नता की सीमा नहीं रही. वे उनकी अवर्णनीय सौन्दर्यराशि को देखते हुए स्तुति करने लगे.
श्रीमार्कणडेयजी की स्तुति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेवजी ने उन्हें अमरत्व प्रदान कर दिया.
इसलिए आप अपने जीवन में नियम पूर्वक श्री महामृत्युंजय मंत्र का जप करें. यह मंत्र इस प्रकार है:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान् म्रुत्योर्मुक्षिय मामृतात् ॥
Om Tryambakan Yajamahe Sugandhin Pushtivardhanam . Urvarukamiv Bandhanaan Mrutyormukshiy Mamrtat .
यह मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी है. यह एक मोक्ष मंत्र है, जो लंबी उम्र और अमरत्व प्रदान करता है। कुछ पुराणों के अनुसार, जब चन्द्र दक्ष प्रजापति के शाप से ग्रसित थे उस समय कुछ ऋषियों और सती साध्वियों ने महामृत्युंजय मंत्र का जप किया था. दक्ष प्रजापति का शाप इतना प्रभावशाली था कि चन्द्र की मृत्यु धीरे –धीरे होना निश्चित था। लेकिन इस मंत्र के जप के बाद भगवान् शिव ने चन्द्र को अपने सिर पर धारण कर लिया। यह मंत्र सीधे भगवान शिव का आह्वाहन है कि विपदा की घड़ी में आप उबाड़ो । महामृत्युंजय मंत्र कायाकल्प और समुचित स्वास्थ्य के लिए अमोघ मंत्र है।
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