Great Indian Mother Jijabai जीजाबाई – एक महान भारतीय माँ
छत्रपति शिवाजी महाराज में स्वदेश प्रेम के संस्कारों को जगानेवाली माता का नाम था – माँ जीजाबाई. जीजाबाई छत्रपति शिवाजी महाराज की पूजनीया माता थीं.
कहा गया है कि बच्चों के भावी जीवन का सारा श्रेय माँ के हाथों में होता है. यदि माँ चाहे तो बालक की आतंरिक वृतियों को किसी भी ओर मोड़कर उसके जीवन को एक नयी दिशा दे सकती है. जीजाबाई ने भी अपने इस कर्त्तव्य को पूर्णतया निभाया और देश की शिवाजी महाराज के रूप में एक देशभक्त सपूत दिया.
वह जाधवराव जी की सुपुत्री थीं. उनके पिता के पास मालोजी काम करते थे. एक बार वे अपने छोटे पुत्र शाहजी को लेकर उनके घर फाग खेलने गए. दोनों बालक एक साथ खेलने लगे. जाधवराव जी ने हँसी-हँसी में पुत्री से पूछा – “क्यों जीजी, इससे तुम्हारा व्याह कर दें.’
नन्हीं बालिका ने कहा – ‘ हाँ, मैं इसी से विवाह करूंगी.’
सभी लोग हँस पड़े.
‘वाह भाई, बहुत सुन्दर जोड़ी है- सभी लोग बोलने लगे.
मालोजी ने भी यह बात सुनी. इस हँसी मजाक के बीच में वे बोले- ‘देखो भाई, आप लोग इस बात का साक्षी रहना, जाधवराव की पुत्री आज से मेरी पुत्रवधू हुई.’
हँसी मजाक में बात हुई और समाप्त भी हो गयी. कुछ दिन बाद जाधवराव ने अपने सभी सेवकों को भोजन का निमंत्रण दिया. मालोजी ने कहलवा दिया – ‘ यदि आप अपनी पुत्री का विवाह मेरे पुत्र से करने का वचन देंगे ताभिमें निमंत्रण स्वीकार करूँगा.’ यह सुनकर जाधवराव तिलमिला उठे. एक नौकर के पुत्र से उनकी पुत्री का व्याह हो? जाधवराव की पत्नी ने भी मालोजी को भला बुरा सुनाया.
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मालोजी ने नौकरी छोड़ दी और जाते जाते प्रण किया की- ‘यदि मैं क्षत्रिय का पुत्र हूँ तो जाधवराव और उनकी पत्नी का घमंड तोड़ कर रहूँगा.’
गाँव में जाकर वह कृषि कार्य करने लगे और अपने परिवार का भरण पोषण करने लगे लेकिन उस अपमान की पीड़ा को भूल न पाए. एक रात खेत में रखवाली करते समय उन्हें सोने की अशर्फियों से भरे साथ कलश मिले.
उसके बाद वह शेषोवा नामक बनिए मित्र से मिले और अपने लक्ष्य की प्राप्ति में जुट गए. उन्होंने लगभग एक हजार सैनिकों की एक टुकड़ी बना ली.
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अपनी मेहनत और लगन के बल पर वे कुछ ही समय में अहमदनगर के उच्च पदाधिकारी बन गए. उन्होंने अपनी पत्नी के भाई के सहयोग से थोड़ी सी सेना का प्रबंध किया और जाधवराव पर आक्रमण कर दिया. बात जब नवाब तक पहुंची तो मालोजी से युद्ध का कारण पूछा गया. मालोजी ने कहा – ‘जाधवराव ने पूरी बिरादरी के सामने अपनी पुत्री का विवाह मेरे पुत्र से करने का वचन दिया था लेकिन अब वे अपने वचन से पीछे हट गए हैं. इससे मेरा बहुत ही अपमान हुआ है. यदि वे अपना वचन निभाने को तैयार हैं तो मैं यह युद्ध अभी रोक दूंगा.’
नबाब ने जाधवराव को खूब खरी खोटी सुनाई और जीजाबाई और शाहजी की शादी हो गयी.
शाहजी जब जीविकोपार्जन के योग्य हुए तो उन्होंने मुग़ल बादशाह शाहजहाँ की शरण ली. उन्हें छह हजारी मनसबदार का पद प्राप्त हुआ. इस प्रकार यह मराठा युवक मुग़ल दरबार की नौकरी से ही संतुष्ट था.
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इधर अहमदनगर में त्राहि त्राहि मची थी. सुल्तान बहादुरशाह की मृत्यु हो चुकी थी. अब उनका राज्य अहमदनगर कई टुकड़ों और गुटों में विभक्त हो चुका था. जाधवराव लोभी था. उसने शाहजहाँ को संकेत किया कि अहमदनगर पर कब्ज़ा करने का यही मौका है.
शाहजी की सोई आत्मा जागी और देश प्रेम उमड़ आया. वह शाहजहाँ की नौकरी छोड़ अहमदनगर आ गया और अपनी लगन और मेहनत के बल पर विधवा रानी का विश्वासी बन गया. रानी ने उनको अपना मंत्री नियुक्त किया.
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जाधवराव ने अपने दामाद को तरक्की करता देख जाल भुन गया. उसने शाहजहाँ को सन्देश भेजा कि वे शीघ्र ही अहमदनगर पर कब्ज़ा कर ले. शाहजहाँ ने मीर जुमला को अहमदनगर पर कब्ज़ा करने भेजा. शाहजी ने जोरदार मुकाबला ल\किया लेकिन वह पराजित हो गए. वे भागकर मांडलीगढ़ के किला में शरण लिया और सेना एकत्रित करने लगे. यह सुचना ने भी जाधव राव ने मीर जुमला तक पहुंचा दी. फिर बहुत भारी युद्ध हुआ. इस युद्ध से पहले जीजाबाई ने अपने पति से कहा – ‘आप कभी यह मत सोचें कि आप मेरे पिता से युद्ध कर रहे हैं, इसलिए आपको झुकना होगा. इस अमे वे हमारे घोर शत्रु हैं. शत्रु से युद्ध करना क्षत्रिय का पहला कर्त्तव्य होता है. याद रखिये आप मेरे पिटे से यदि हार गए तो मैं कही मुँह दिखाने लायक नहीं रहूंगी. मुझे सती होना मंजूर है लेकिन एक कायर की पत्नी नहीं कहलाना चाहती.”
शाहजी पर अपनी पत्नी के वचनों का गहरा असर पड़ा और वे वीरता पूर्वक युद्ध करते रहे.
एक दिन उनको पता चला कि इन सबके पीछे उनके ससुर जाधव राव की ईर्ष्या छिपी है. वे नहीं चाहते थे कि शाहजी उनसे ऊँचे पद पर पहुंचे.
यह जानकर शाहजी ने अपना पद छोड़ दिया ताकि अहमदनगर को इस आफत से बचाया जा सके.
वे अपनी गर्भवती पत्नी जीजाबाई को लेकर बिजपुए के लिए रवाना हुए.
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जाधवराव ने सेना सहित दामाद का पीछा किया. शाहजी उनसे बहुत आगे थे किन्तु रास्ते में ही जीजाबाई को पीड़ा होने लगी. उन्होंने कातर स्वर में अपने से प्रार्थना की – ‘स्वामी! आप मुझे छोड़कर आगे बढ़ जाएँ. मेरा कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता.’ शाहजी न जाने क्या सोचा कि उन्होंने अपनी गर्भवती पत्नी को अकेला छोड़ चले गए. यदि वे चाहते तो वहीँ रुककर जाधव राव से मुकाबला कर सकते थे.
जब वहां जाधव राव आया तो जीजाबाई ने कहा – ‘ मेरे पति तो आपको मिलेंगे नहीं आप मुझे कैद कर सकते हैं.’
जाधवराव जैसा क्रूर पिता ने जीजाबाई को शिवनेरी के किला में कैद कर लिया.
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जब यह बात जीजाबाई की माँ को मालूम हुई तो उसने अपने पति जाधव राव को बहुत भला बुरा कहा. जाधव राव को भी अपने कुकृत्य का अहसास हुआ. जीजाबाई की माँ भी शिवनेरी के किला में ही उनके साथ रहने आ गयी. जीजाबाई का किला में अपना अधिकांश समय ग्रंथों के पठन पाठन और पूजा पाठ में बीतने लगा.
कहते हैं कि गर्भावस्था में माता के जैसे विचार होते हैं वैसे ही विचार बच्चों में विकसित होती हैं. अभिमन्यु ने भी माता के गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदन की कला सीखी थी.
असंख्य प्रार्थनाओं और सदइच्छाओं के उपरांत माँ जीजाबाई ने ऐसे वीर पुत्र को जन्म दिया जिसने राष्ट्र में हिन्दू राज्य की स्थापना की.
इधर शाहजी ने दूसरी शादी कर ली थी. चाहे वजह जो भी हो उनका पुनर्मिलन सुखकर नहीं था.
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जीजाबाई ने अपने पति की उपेक्षा सहकर भी अपने पुत्र के लालन पालन पर पूरा ध्यान दिया. वह पुत्र के साथ पुणे वाली जागीर में रहने लगी.दादा कोंडेराव को उनकी शिक्षा के लिये नियुक्त किया गया.
स्वयं जीजाबाई अपने पुत्र शिवाजी को महाभारत, रामायण आदि ग्रंधों की प्रेरक गाथाएं सुनाती थी ताकि बालक में वीरोचित संस्कार की गहरी पैठ हो जाए.
दादा कोंडे राव ने भी अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाया. जब शिवाजी व्यस्क हुए तो माँ ने कहा – ‘पुत्र! यूँ देश से यवनों को निकालो और स्वधर्म और स्वराज्य की स्थापना करो.’
कालान्तर में शिवाजी ने अपनी माता की प्रेरणा से मराठा साम्राज्य की स्थापना की.
धन्य है वह माता जीजाबाई जिसने वीर शिवाजी जैसे पुत्र को जन्म दिया.
Maniparna Sengupta Majumder says
Without Jijabai’s inspiration, Shibaji would not have been a legend, a hero… 🙂
Pankaj Kumar says
Its true! Mother is the first and the best inspiration for every child. Thanks a lot for nice comment
रानी लक्ष्मीबाई says
छत्रपति शिवाजी महाराज में स्वदेश प्रेम के संस्कारों को जगानेवाली माँ जीजाबाई को सर्वप्रथम शत शत नमन करते हैं..
आपने बहुत ही सरल ढंग से प्रस्तुत किया हैं हम सभी पाठको के लिए जीजाबाई जी के जीवन से जुडी जानकारियों को.
सच में यह हिंदी ब्लॉग हम सब को हमेशा प्रेरक और ज्ञान वर्धक विषयों की जानकारी देता हैं. आशा करते हैं हम सभी पाठक एसे ही सदैव ज्ञान वर्धक विषयों की जानकारिय हमें देते रहेंगे …
आप का ह्रदय से धन्यवाद मित्रवर.
Pankaj Kumar says
ब्लॉग पर पधारकर इतना उत्साहवर्धक कमेंट करने के लिए आपका ह्रदय से आभार!
मनोज शर्मा says
धन्यवाद पंकज जी आप का
आप ने अपना कीमती समय निकाल कर हमारी छोटी सी प्रतिक्रिया का जवाब दिया इतने प्यार से.
अब तो हम भी आप के पाठक बन गए हैं.
हमेशा युही आते रहेंगे और कुछ ना कुछ आपसे सिखते रहेंगे हिंदी ब्लॉग के विषय में आप के द्वारा की गयी पोस्टो को ध्यान पूर्वक पढ़ के. अच्छा लगा आप का ब्लॉग और आप का सरल स्वभाव एक बार पुनः आप का सह्रदय से धन्यवाद.