अचानक से पिताजी की तबीयत नासाज हो गयी. रात के एक बज रहे थे.
बगल वाले कमरे में सो रहे बेटे को इसकी भनक लग गयी. वह अपने बाबूजी के सामने खड़ा था.
बाबूजी ने उसकी तरफ देखते हुए कहा – इस तरह बेवकूफों की तरह क्या देख रहे हो नालायक, मुझे जल्दी से हस्पताल ले चलो.
मां रोये जा रही थी. बेटे ने सोचा – इतनी रात ड्राईवर को बुलाऊँ तो बहुत देर हो जायेगी.
उसने झट से बाबूजी को कंधे का सहारा देकर कार में ले जाकर बिठाया और जल्दी से हस्पताल की और चल पड़ा.
बाबूजी एक तरफ दर्द से कराह रहे थे तो दूसरी तरफ बेटे को डांटे जा रहे थे.
” कहीं ठोक मत दियो नालायक, गधा कहीं का, कोई काम ठीक से नहीं कर सकता.”
नालायक बेटा बोला – “आप ज्यादा बात मत कीजिये बाबूजी, हम जल्द ही हस्पताल पहुँचने वाले हैं.”
हस्पताल पहुंचकर उसने भागते हुए डॉक्टर को बुलाया और डॉक्टर के कमरे के बाहर बेसब्री से चहलकदमी करने लगा.
नालायक, गधा, बेबकूफ, आलसी, मंदबुद्धि पता नहीं और क्या-क्या, ऐसे शब्द वह बचपन से ही सुनते आया था.
कहीं न कहीं उसका खुद का मन भी मान चुका था कि वह सच में ही नालायक है तभी तो उसके जन्मदाता भी उसे
इसी नाम से बुलाते हैं.
स्कूल के टाइम से ही घर के सभी लोग उसे नालायक ही बुलाते थे. वह एग्जाम में भी बहुत बार फेल हुआ था.
यह नालायक तो चपरासी बनने के काबिल भी नहीं.
इस मंदबुद्धि की शादी भी नहीं होगी. आखिर इस नालायक के गले कौन अपनी बेटी बांधेगा.
यह नालायक तो गदहा का गदहा ही रह जाएगा.
नालायक को अपने यहाँ कोई चपरासी भी ना रखे।
कोई बेवकूफ ही इस नालायक को अपनी बेटी देगा।
शादी होने के बाद लोगों को कहते सुना गया कि उस बेचारी के भागे फूटे जो इस नालायक से शादी हो गयी.
बस एक माँ ही थी जो उस बेचारे को उसके नाम से बुलाती थे. अगर आज उसके बाबूजी को कुछ हो गया तो शायद माँ भी उसे भी इसी नाम से बुलायेगी.
मन में इस तरह के विचारों ने उसे झकझोर दिया और वह हस्पताल में बने मंदिर में प्रार्थना में लीन हो गया.
वह उसके दुआओं का असर था,या फिर मर्ज ही साधारण था कि डॉक्टर ने सुबह में उसे बाबूजी को घर ले जाने की इजाजत दे दी.
जैसे ही घर लौटा और बाबूजी को उनके कमरे में छोड़ वापस मुड़ा. बाबूजी की तेज आवाज आयी-
“मुझे छोड़ नालायक! तुझे क्या लगा बुड्ढा अब हस्पताल से लौटेगा नहीं.”
यह सुन वह कुछ देर ठिठका और फिर सिर झुकाए कमरे से बाहर आ गया.
लेकिन माँ से रहा नहीं गया, उन्होंने कहा – “इतना सब कुछ करता है आपके लिए फिर भी दिन भर आप उसे नालायक कहते रहते हैं. अवधेश और महेश दोनों अपनी अपनी बीवी के साथ सो रहे हैं… उनको तो यह भी नहीं पता कि रात को क्या हुआ था
यह तो भनक पाते ही आ गया और किसी को मदद के लिए बुलाया भी नहीं. भगवान न करे अगर आपको कुछ हो जाता तो?
वह भी आपका ही बेटा है
फिर भी पता नहीं क्यों आप उसको हरदम कोसते रहते हैं, डांटते और फटकारते रहते हैं.
न यह देखते हैं कौन बड़ा या छोटा उसके पास है, जो मुंह में आता है
उसे सुनाते रहते हैं.”
बाबूजी ने उनकी तरफ आश्चर्य भरी नज़रों से देखा.
माँ रोये जा रही थी और बोले जा रही थीं-
आप ही बताइए? क्या कमी है मेरे इस बेटे में? हाँ पढाई में थोडा कमजोर जरुर था. तो क्या? क्या सभी एक जैसे होशियार होते हैं क्या?
वह अपनी मेहनत के बल पर अपना परिवार, हम दोनों को, घर -मकान, खेती बारी, कर-कुटुंब सबको सही तरीके से संभाल रहा है कि नहीं.
जिन दो बेटों को आप बहुत लायक और बुद्धिमान मानते हैं वह अपनी बीवी बच्चों, सास- ससुर और दोस्तों पर ज्यादा ध्यान रखते हैं.
कभी आपकी हाल चाल भी पूछते हैं? और एक आप हैं कि जो कर रहा है उसको ही दिन भर नालायक बुलाते रहते हैं.
बाबूजी बोले – अरी पगली! तुम कभी भी मुझे समझ नहीं सकी!
तुमने केवल मेरी बातों पर ध्यान दिया है.
क्या तुम्हे नहीं लगता है कि एक श्रवण कुमार जैसे बेटा को दिनभर नालायक और गधा बुलाने का मुझे दुःख नहीं होता है. उसे गले न लगा पाने का कष्ट हमें नहीं होता है.
आस-पड़ोस के लोगों के बीच भी मैं अपने बेटा को उल्टा सुनाता रहता हूँ लेकिन मेरा बेटा है कि पलट के जबाब देना तो दूर सिर उठाकर मेरी तरफ देखता भी नहीं है. बाहर से जब भी घर आता है तो सबसे पहले मेरे कमरे में झांककर देख लेता है कि बाबूजी ठीक हैं न! क्या मुझे ऐसे बेटे को उल्टा बोलते पीड़ा नहीं होती. होती है भाग्यवान! मेरा दिल पत्थर का नहीं है! मैं भी इंसान ही हूँ.
मुझे तो डर इस बात का रहता है कि कहीं मेरा यह बेटा भी उन दोनों की तरह ही लायक न बन जाए.
इसलिये मैं उनके मन में कभी यह भाव पैदा नहीं होने दूंगा कि वह परिपक्व है और सबसे लायक है.
यह बात सुन माँ चकित रह गयी.
ये क्या कह रहे हैं?
हाँ भाग्यवान, यही सच है..
अब तुम इसे मेरा स्वार्थ कहो या कुछ भी! इतना कहते कहते बाबूजी ने अपनी पत्नी के आगे हाथ जोड़ दिए और माफी मांगने लगे.
उनकी पत्नी ने उनके हाथों को पकड़ा लिया और वो भी रोने लगी.
बोली – मैं आज तक आपको समझ नहीं पायी. मुझे मांफ कर दीजिये.
दूसरी ओर कमरे के बाहर खड़ा नालायक बेटा बाबूजी द्वारा कहे गए हर वाक्य को सुन रहा था और उसकी आखोँ से अश्रु धारा अनवरत बहती जा रही थी.
उसका जी कर रहा था कि दौड़कर बाबूजी के गले से लिपट जाऊं और रोऊँ लेकिन शायद बाबूजी झेंप जाते.
वह आंसू पोछते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगा.
तभी उसकी कानों से बाबूजी की आवाज टकराई-
अरे नालायक! मेरी दवाई कहाँ रख दी. गाडी में ही छोड़ दी क्या?
कितना भी समझा दो, इस कामचोर से एक काम ठीक से नहीं होता है.
नालायक बेटा हस्पताल वाले थैले से बाबूजी की दवा लेकर उनके कमरे की तरफ आंसू पोछते हुए दौड़ा.
इस लघुकथा के कथाकार श्री राजेश शॉ हैं. मुझे यह कहानी बहुत अच्छी लगी, इसलिए इसे मैं यहाँ शेयर कर रहा हूँ.
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Taknik Drashta says
अदभुत कथा, आपके ब्लॉग को बार बार पढ़ना अच्छा लगता है
Anand kumar says
इस लघुकथा के मूल लेखक राजेश शॉ हैं।
Pankaj Kumar says
जानकारी देने के लिए आपका धन्यवाद!