यह कहानी एक दर्जी की है. वह दर्जी खूब शेखी बघारता था. साथ ही साथ वह काम भी बहुत करता था. जिस प्रकार आज लोगों को world tour पर जाने की इच्छा रहती है. कुछ उसी तरह का विचार उसके भी मन में आया. वह भी world tour पर जाने की सोच रहा था. आज की तरह उन दिनों airlines और ticket booking portal नहीं होते थे. उसने तुरंत अपनी दूकान छोडी और पहाड़ों और घाटियों में निकल पड़ा. इधर-उधर चलते-चलते आगे बढ़ता रहा.
थोड़ी दूर चलने पर उसे एक ऊँचा पहाड़ दिखाई पड़ा. उसके पीछे एक ऊँची मीनार थी, जो घने जंगलों में बनी हुई थी. दर्जी चिल्लाया, “अरे, यह क्या हुआ?” वह उत्सुकता से उस जगह के पास पहुंचा. लेकिन जैसे ही वह उसके पास पहुंचा तो उसका मुंह खुला रह गया और आँखें फटी रह गईं – उस मीनार के तो पैर थे. वह मीनार एक क्षण में पहाड़ी पर उछली और अचानक दर्जी के सामने एक विशाल राक्षस खड़ा हो गया.
राक्षस ने गड़गड़ाती आवाज में पूछा, ”तुम यहाँ क्या कर रहे हो मच्छर?” दर्जी ने धीरे से कहा, “मैं इस जंगल में अपनी जीविका कमाने आया हूँ.”
राक्षस ने गुस्से से कहा, ”ठीक है, तुम मेरी नौकरी शुरू कर दो.” दर्जी ने विन्रमता से कहा, “यदि ऐसा है तो ठीक है, लेकिन मुझे तनख्वाह क्या मिलेगी?” राक्षस बोला, “तनख्वाह?” फिर उसकी आवाज गूंजी – “सुनो – हर साल में तीन सौ पैंसठ दिन और किसी साल में एक दिन ज्यादा भी ठीक?”
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दर्जी बोला, “ठीक.” लेकिन उसने सोचा, ”हरेक को अपनी चादर देखकर ही पैर फैलाना चाहिये. मुझे जल्दी से यहाँ से स्वतंत्र होना चाहिये.”
राक्षस चिल्लाया, ”जल्दी जाओ बेवकूफ और जाकर मेरे लिए एक गिलास पानी लाओ.”
दर्जी ने कहा- ”पूरा कुआँ क्यों नहीं और झरना भी?” कहकर उसने पूरा कुआँ उठाने का अभिनय किया.
राक्षस चिल्लाया, ”क्या ! कुआँ और झरना भी?” राक्षस थोडा डरपोक और कमजोर था. वह डरने लगा और उसने सोचा, ”यह आदमी सेव भूनने के अलावा भी बहुत कुछ कर सकता है. यह बहुत बहादुर है. मुझे ध्यान रखना चाहिए नहीं तो यह तो मेरा भी मालिक बन जायेगा.”
इसलिए जब दर्जी पानी लेकर लौटा तो राक्षस ने उसे जंगल से कई गट्ठर लकड़ी लाने के लिए भेज दिया. दर्जी ने पूछा, “पूरा जंगल एक बार में क्यों नहीं – हर पेड़-बड़ा-छोटा, अच्छा-खराब ?” और चला गया.
डरा हुआ राक्षस धीरे से बडबडाया, “क्या पूरा जंगल, कुआँ भी, झरना भी.” वह और भी डर गया था. वह सोचने लगा कि दर्जी उससे कहीं बलवान है और उसका नौकर बनने लायक नहीं है. दर्जी लकड़ी के गट्ठर लेकर लौटा तो राक्षस ने उसे दोपहर के भोजन के लिए दो-तीन जंगली सूअर मारने के लिए कहा.
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शेखी बघारनेवाला दर्जी बोला, ”एक बार में हजार क्यों न मारूं. और बाकी सब उसके बाद?” डरपोक राक्षस हडबडाया, ”क्या, क्या ओह ! आज के लिए इतना काफी है, तुम अब सो जाओ.”
बेचारा राक्षस अब दर्जी से बेहद डर गया था. वह रात में अपनी आँखें भी नहीं बंद कर पाता था और पूरे समय इस नौकर से मुक्ति पाने का उपाय सोचता रहा था. उसे लगता था कि वह कोई जादूगर है, जो उसकी जान के पीछे पड़ा है. समय के साथ समझ भी आती है. अगली सुबह राक्षस और दर्जी एक साथ एक मैदान में गये जहाँ बहुत से बेंत के पेड़ उगे थे. जब वे वहाँ पहुंचे तो राक्षस बोला, ”इनमें से एक पर बैठो. मैं देखना चाहता हूँ कि तुम इसे झुका सकते हो या नहीं ?”
अब दर्जी पेड़ पर चढ़ा और एक शाख पर बैठ गया. अपनी साँस रोककर उसने अपने आपको भारी बनाया और पेड़ नीचे झुकाया. जल्दी ही उसे फिर से साँस लेनी पड़ी. वह दुर्भाग्य से अपना फीता जेब में नहीं लाया था और शाख वापस ऊपर चली गयी. राक्षस बेहद खुश हुआ, क्योंकि उसने देखा कि उस शाख के साथ दर्जी हवा में खूब ऊपर उछला और गायब हो गया. वह अभी भी हवा में उड़ रहा है या जमीन पर पड़ा है, यह मैं आपको अच्छी तरह नहीं बता सकता. ज्यादा शेखी बघारने वाले का यही हाल होता है.
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