प्रस्तुत पोस्ट RamKrishna Paramhansa Hindi Story में हम माँ काली के परम भक्त रामकृष्ण परमहंस की दो छोटी –छोटी कहानियाँ जल और बर्फ एवं ईश्वर को कैसे पुकारें शेयर करने जा रहे हैं। आशा है आपको पसंद आएंगी।

RamKrishna Paramhansa Hindi Story – जल और बर्फ
उपेंद्र नाथ विज्ञान के जानकार थे। जब उन्होंने पहली बार रामकृष्ण परम से भेंट की तो उनके मन में कई शंकाएँ उठ रही थीं। स्वामी जी के एक शिष्य ने उपेंद्र नाथ से पूछा, “आप पहली बार स्वामी जी में मिल रहे हैं, अत: उनसे क्या पूछेंगे?”
उन्होंने कहा, “मैं उनसे अपने तीन प्रश्नों के उत्तर पूछूंगा।”
जब उपेंद्र स्वामी जी के सम्मुख पहुंचे तो उन्होंने बड़े साहस के साथ पूछा, “महाराज, ईश्वर साकार है या निराकार?”
स्वामी जी प्रश्नों के उत्तर पूछने वाले की रुचि और योग्यता के अनुसार ही दिया करते थे। वे बोले, “ईश्वर साकार और निराकार दोनों है।”
उपेंद्र ने आश्चर्य से पूछा, “दो विपरीत भाव एक कैसे हो सकते हैं? एक साथ साकार और निराकार दोनों कैसे हो सकता है?” स्वामी जी ने कहा, “जैसे जल और बर्फ।”
“जल का अपना कोई आकार नहीं होता, किंतु वह जिस पात्र में डालकर जमा दिया जाए वही आकार ग्रहण कर लेता है।”
उपेंद्र उत्तर सुनकर आनंदित हो गए। उन्हें विज्ञान की जानकारी थी, अत: और विस्तार से उत्तर देने की आवश्यकता ही न पडी। इसके बाद उन्होंने कोई और प्रश्न नहीं पूछा और स्वामी जी को प्रणाम करके विदा ले ली।
जब वे बाहर आ गए तो उसी भक्त ने पूछा, “आपने तो तीन प्रश्न पूछने की बात कही थी, परंतु एक ही प्रश्न पूछकर क्यों उठ गए?”
उन्होंने उत्तर दिया, “क्योंकि उस एक उत्तर में ही मेरे बाकी के दोनों प्रश्नों का भी उत्तर छुपा हुआ था।”
इस प्रसंग से यह प्रेरणा मिलती है कि ईश्वर वह परम शक्ति। है, जो आकार और निराकार से परे है।
RamKrishna Paramhansa Hindi Story – ईश्वर को कैसे पुकारें?
एक बार संध्या के समय कुछ भक्त रामकृष्ण परमहंस के समीप बैठे हुए थे। एक भक्त ने उनसे पूछा, “प्रभु, ईश्वर को कैसे पुकारना चाहिए?”
रामकृष्ण परमहंस ने मुसकुराते हुए उसे देखा और कहा, “ईश्वर को निष्काम होकर पुकारना चाहिए। लेकिन कभी-कभी सकाम भक्ति से प्रारंभ होकर भी निष्काम भक्ति तक पहुंचा जा सकता है।”
उसके लिए उन्होंने भक्त ध्रुव का उदाहरण दिया, जिसने राज्य पाने के लिए तपस्या शुरू की थी, लेकिन आखिर में ईश्वर को ही प्राप्त कर लिया था।
एक भक्त ने शंका व्यक्त की, “प्रभु, निष्काम भक्ति तो आसान नहीं है।” उस पर उन्होंने सभी भक्तों को समझाते हुए कहा, “हाँ, निष्काम भक्ति आसान नहीं है किंतु सकाम भक्ति करते-करते भी निष्काम भक्ति के स्तर पर पहुंचा जा सकता है। किसी दु:खी या विपत्ति ग्रस्त को देखकर उसको यथासंभव सहायता करनी चाहिए, लेकिन मन के भीतर यह भाव रखना चाहिए कि मैं क्या कर सकता हूँ। मैं तो माध्यम मात्र हूँ, असली कर्ता तो ईश्वर है।”
सभी भक्त बड़े ध्यान से उनकी बात सुन रहे थे। तभी उन्होंने एक भक्त से पूछा, मान लो, यदि तुम्हारी ईश्वर से भेंट हो जाए तो क्या तुम उनसे यह प्रार्थना करोगे कि मैं कुएं-तालाब खुदवाऊँगा, घर, दवाखाना या स्कूल बनवाऊंगा। उस भक्त ने अज्ञानता से सिर हिला दिया।
रामकृष्ण परमहंस ने आगे कहा कि “सच तो यह है कि ईश्वर के सामने आते ही तुम्हारी सभी विषय-वासनाएँ और कामनाएँ लुप्त हो जाएंगी। कोई काम और नहीं रहेगा। तुम परमानंद हो जाओगे। इसीलिए ईश्वर को निष्काम होकर पुकारना चाहिए।”
इस प्रसंग से यह प्रेरणा मिलती है कि भक्त को चाहिए कि वह जैसे चाहे वैसे ईश्वर को पुकारे। ईश्वर स्वयं उसके भीतर की कामनाओं को समाप्त करके उसके मन में अपने प्रति अनुराग को जगा देते हैं।
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