प्रस्तुत पोस्ट ‘Strike Essay in Hindi हड़ताल’ में हड़ताल के विभिन्न स्वरुप और गुण-दोष के बारे में विचार करेंगे. जैसे ही हमारे मन में हड़ताल शब्द आता है तो झंडा, नारे, लोगों का जुलूस हमारे मानस पटल पर आने लगता है. वस्तुतः ‘हड़ताल’ हिंसा विहीन क्रांति है. यह विरोध प्रकट करने का एक अहिंसात्मक माध्यम है. इसमें शालीनता को प्रमुख स्थान दिया जाना चाहिए.
हड़ताल एक ऐसी व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य सरकार, सत्ता, व्यवस्था आदि की अनियमितता, अर्थव्यवस्था, अभद्रता आदि से उत्पन्न असंतोष का वैचारिक विरोध करना है. आये दिन अखबारों और टेलीविजन पर हड़ताल की खबरें मिलती रहती हैं. कभी मजदूरों की हड़ताल तो कभी कर्मचारियों की, कभी पदाधिकारियों की और कभी शिक्षकों, छात्रों, व्यापारियों या बस मालिकों की हड़ताल. इस प्रकार समाज का कोई न कोई वर्ग अपना असंतोष प्रकट करने के लिए हड़ताल करता रहता है. यदि देखा जाय तो आज देश का हर संगठित या असंगठित वर्ग, समुदाय चाहे वह बैंक हो या मजदूर संघ, ऑटो चालक हो या कोई बड़ी जाति, अपनी मांग मनवाने के लिए हड़ताल को चुनते है. यदि देखा जाय तो आज हड़ताल से शिक्षालय, चिकित्सालय, सचिवालय और यहां तक कि शौचालय तक प्रभावित हैं.
क्या श्रमिकों का शोषण भी हड़ताल की एक वजह है?
ऐसे कहा गया है कि उत्पादन के लिए श्रम एवं पूंजी – दोनों आवश्यक हैं. जब पूँजी के साथ श्रम का असहयोग हो जाता है, तो उत्पन्न स्थिति को ही ‘हड़ताल’ कहते हैं. इसका कारण मालिकों द्वारा मजदूरों का शोषण है. फैक्ट्री और उद्योग चलानेवाले लोग मजदूरों की मेहनत की बदौलत ऐशो-आराम की जिन्दगी जीते है और मजदूर काम करके पसीना बहाने के बाद भी अपना पेट नहीं भर पाता, यही हड़ताल की एक बड़ी वजह बन जाती है.
दूसरी तरफ मालिक या सरकार या व्यवस्था का आदमी जब अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ दोहरी नीति अपनाता है या दुर्व्यवहार करता है अथवा कानून को ताक पर रखकर अपने मन का कानून चलाता है, तो मजदूर गांधीवादी अस्त्रों का प्रयोग करते हुए हड़ताल कर देता है. हड़ताल हमेशा सशर्त होती है. शर्त पूरी होने पर हड़ताल वापस ले ली जाती है. कभी -कभी हड़ताल उग्र भी हो जाती है जो कि गलत है.
हड़ताल के कारण
आपने कभी यह विचार किया है कि आखिर लोग या कोई संगठन हड़ताल क्यों करता है? सामान्यत: असंतोष या दोहन हड़ताल के पीछे का मुख्य कारण होता है. मजदूर मजदूरी या वेतन में कमी होने से फैक्ट्रियोँ में ताला लगाकर हड़ताल पर चले जाते हैं. विद्यार्थी कभी कठिन प्रश्न पत्र के कारण, तो कभी ईमानदार प्राचार्य को हटाने के कारण हड़ताल पर बैठ जाते हैं. बस, टैंपो, रिक्शा, ट्रक आदि वाहन के मालिक भी पुलिस दमन या टैक्स वसूली में कठोरता आदि के कारण हड़ताल कर देते हैं.
मजदूर भी रोपाई, बोआई एवं कटाई के मौके पर हड़ताल पर चले जाते हैं. शहरों में नगरपालिका हड़ताल करती रहती है. विरोधी दल सरकार के विरूद्ध जनमत उभारने के लिए नागरिकों से हड़ताल का आह्वान करते हैं. हड़ताल से संबंधित प्रतिष्ठानों एवं कार्यालयों में बंद हो जाते हैं. सभी हड़ताली व्यवस्था या मालिक के विरूद्ध नारे लगाते हुए सडकों पर उतर आते हैं. प्राय: उनका नारा होता है, “हमारी मांगे पूरी हो, चाहे जो मजबूरी हो.” बैंक कर्मियों का एक दिन का हड़ताल करोड़ों लोगों के लिए कठिनाई का कारण बन जाता है. डॉक्टर का हड़ताल कई लोगों की जानें ले लेता है.
अनियंत्रित हड़ताल और जान माल का नुकसान
आपने देखा होगा कि हड़ताल के दौरान सरकारी संपत्तियों की तोड़-फोड़ भी की जाती है. वाहनों की हड़ताल से नागरिकों के आवश्यक कार्य रूक जाते हैं. नगरपालिका की हड़ताल से शहर में सर्वत्र गन्दगी ही गन्दगी दिखाई पडती है. महामारी फैलने की संभावना बढ़ जाती है. नगर नरक में परिवर्तित हो जाता है. अस्पताल में हड़ताल से बड़ा कारुणिक दृश्य उत्पन्न होता है – कहीं बेबस रोगी का क्रंदन, तो कहीं मृत रोगी के अभिभावकों का रूदन. फिर भी हड़तालियों का हृदय नहीं पिघलता. फलत: हड़ताल जनता के लिए अभिशाप बन जाती है.
हड़ताल और समझौता
हड़ताल की सफलता हड़तालियों की एकता पर निर्भर करती है. हड़तालियों में अकसर फूट पैदा करने की भरपूर कोशिश व्यवस्था द्वारा की जाती है. प्राय: फूट डालने में व्यवस्थापक सफल हो जाते हैं. ऐसी दशा में हड़ताल जहाँ रहती है, वहीं समाप्त हो जाती है. व्यवस्था साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाकर हड़ताल तुडवाने की चेष्टा में लगी रहती है. हड़ताल तोड़ने के लिए हड़तालियों और व्यवस्था के बीच समझैता-वार्ता चलती है. इनमें हड़ताली नेताओं की पौ-बारह होती है. ऐसे में वे व्यवस्था और हड़ताली दोनों को लूटते हैं. एक ओर वे हड़तालियों के चंदे से एकत्र धन को भोगते हैं, तो दूसरी ओर व्यवस्था से सांठ-गांठ कर बिना कुछ लिए हड़ताल तुड़वाकर सत्ता का लाभ उठाते हैं.
ब्रिटिश शासन काल में सत्ता के अत्याचारों के विरूद्ध हम हड़ताल का सहारा लेते थे, लेकिन आज बात-बात में हड़ताल की जा रही है. हड़ताल उचित मांगों को पूरी करवाने का अंतिम अहिंसात्मक अस्त्र है. जब समझौते के सभी दरवाजे बंद हो जाते हैं, तभी हड़ताल की स्थिति उत्पन्न होती है. हड़ताल में जोर-जबरदस्ती, तोड़-फोड़ आदि सर्वथा वर्जित होनी चाहिए. अस्पताल, दवा की दुकान, पेयजल, विद्दुत, डाक-तार आदि को यथासंभव हड़ताल से दूर रखना चाहिए. मालिक अथवा व्यवस्था से जुड़े लोगों का यह कर्तव्य है कि वे यथासंभव हड़ताल की नौबत न आने दें.
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kalaa shree says
bahut khub