कहा गया है कि जीवन में न्याय पथ श्रेष्ठ है. कई बार यह दुर्गम, कठिन व अव्यवहारिक लगता है. लेकिन यदि इंसान न्याय के मार्ग पर चलने की मन में ठान लेता है, उसे कुछ भी कठिन नहीं लगता. यह भी कहा गया है कि बोलने सुनने में तो यह शब्द अच्छा लगता है पर वास्तविक जीवन में यह कई बार हमारी कठिन परीक्षा लेता है, यहाँ तक कि धर्मसंकट तक की स्थिति में भी डाल देता है. इससे उबरने के लिए दृढ इच्छाशक्ति अत्यंत आवश्यक है. प्रस्तुत पोस्ट Mujhe Nyaya Mil Gaya Hindi Story में हम एक हिंदी कहानी आप सुधी जनों के लिए लेकर आये हैं.
लोभ और मोह से परे यह एक ऐसी अवस्था है जो आपके आत्मिक बल में वृद्धि के साथ ही समाज में आपकी प्रतिष्ठा को स्थापित करती है. आपको याद होगा पुराने समय में कोई कचहरी के प्रपंचों से दूर, वकीलों के चंगुल से परे लोग गांव की चौपालों पर अनुभवी व न्यायप्रिय लोगों के माध्यम से अपनी समस्याएँ कम समय में आसानी से सुलझा लिया करते थे. पंच परमेश्वर की लोकोक्ति उसी काल की देन है.
जैसे जैसे भौतिक रूप से आदमी आगे बढ़ा उसके व्यक्तित्व में दाव पेंच व क्लिष्टता भी बढती चली गई.येन केन प्रकारेण वह दूसरों के जायज हकों पर नाजायज कब्जा करने लगा. न्याय, विवेक, मूल्य जैसे शब्द शब्दकोष तक सिमटने लगे और आदमी समस्त सुख-सुविधाओं के बीच भी दुखी रहने लगा.
ऊपरी सुख अंदर दुःख भरता गया. केवल अंदर से प्रसन्नचित्त व सुखी व्यक्ति ही कांटो के बीच भी जीवन का आनन्द प्राप्त कर सकता है, जबकि अंतस से दुखी के लिये मखमल की सेज भी कांटो का बिस्तर है.
Mujhe Nyaya Mil Gaya Hindi Story मुझे न्याय मिल गया
बादशाह जहांगीर बेहद न्यायप्रिय थे. उनके महल में मुख्य द्वार पर एक बड़ा सा घंटा लगा था ताकि अन्याय का शिकार कोई भी व्यक्ति अपनी फरियाद सीधे बादशाह तक पहुँचा सके.
एक बार नूरजहां शिकार पर गई तथा सरोवर के समीप जंगली जानवर की आस में घात लगाकर बैठी. अचानक उन्हें तालाब में पानी पीने की आवाज का आभास हुआ. आवाज सुनते ही उनके धनुष से तीर निकला. तीर के निशाने पर लगते ही एक जोर की चीख सुनाई दी. नूरजहां ने जानवर के धोखे में एक किसान पर तीर चला दिया था जो वहां पर पानी भरने आया था. किसान की तत्काल मौत हो गई. रानी तुरंत महल में लौट गई.
अगली सुबह किसान की पत्नी ने आकर जहांगीर का घंटा बजाया. बादशाह के बाहर निकलने पर सारा किस्सा बयान करते हुए न्याय की गुहार लगाई. जहांगीर ने एक क्षण सोचा और उसे अगले दिन दरबार में आने के लिये कहा.
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अगले दिन नियत समय पर किसान की पत्नी दरबार में पहुंची. बादशाह ने उसे पूरा वाकया दरबारियों को सुनाने के लिए कहा. बात खत्म होते ही बादशाह ने नूरजहां को दरबार में तलब करने का हुक्म दिया.
आदेश सुनते ही सारे दरबारी खड़े हो गए. एक अदना सी औरत के कहने पर हिन्दुस्तान की मलिका को दरबार में बुलाना उन्हें नागवार गुजरा. पशोपेश में पड़े बादशाह के सामने गहरा धर्म संकट खड़ा हो गया. बुलाने पर विद्रोह की आशंका और न बुलाने पर उनकी न्यायप्रियता पर प्रश्नचिन्ह.
बादशाह ने एक पल में फैसला कर लिया. वे धीरे से अपनी जगह से उठे. धीमे कदमों से किसान की पत्नी के पास पहुँचे. म्यान से अपनी तलवार निकालकर उसके हाथों में देते हुए बोले – इंसाफ तो होना ही चाहिए. चूंकि नूरजहां ने तुम्हें बेवा किया, इसलिए मेरी तलवार हाजिर है, तुम मेरा सर कलम कर मलिका को बेवा कर दो.
सब इस फैसले पर चकित रह गए. किसान की पत्नी ने जहांगीर को प्रणाम किया और कहा – मुझे न्याय मिल गया. आपके सर की अब कोई जरूरत नहीं. और यह कहकर वह दरबार से चली गई. सब उपस्थित जन जहांगीर के इस न्याय पर वाह-वाह कर उठे. ऐसे थे जहांगीर और ऐसी थी उनकी इंसाफ परस्ती.
चलें न्याय के पथ पर
न्याय तो एक पुण्य पथ है. ज्ञात ही है कि एक नादान गडरिया टीले पर बैठकर लोगों की समस्याएं सुनकर न्याय कर दिया करता था, लेकिन टीले से हटते ही उसकी बुद्धि का यह पक्ष समाप्त हो जाता था. खोदे जाने पर उसी जगह विक्रमादित्य का वही आसन निकला, जिस पर बैठकर वे न्याय किया करते थे. बत्तीस पुतलियों वाले इस सिंहासन की कहानी सिंहासन बत्तीसी में आज भी संग्रहित है.
अतएव आत्मा के आनन्द के लिये न्यायप्रिय बनने की कोशिश कीजिए. न अन्याय करें और न खुद पर अन्याय सहन करें. कठिन परीक्षा, ऊहापोह या धर्मसंकट की घड़ी में शांत चित्त रहते हुए केवल अपनी आत्मा से पूछें. जमीर की राह में चला व्यक्ति आरंभ में थोडा दुखी तथा हताश हो सकता है, लेकिन एक बार न्याय व सत्य के मार्ग पर चलना सीख गया तो उसका सोच आकाश सा विस्तृत हो जाएगा एवं आदमी शुद्ध अंत:करण के साथ सुखी, सफल व क्षमतावान बन सकेगा.
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Bahut achhi story hai