प्रस्तुत पोस्ट Alexander the Great Story in Hindi में हम सिकंदर के बारे में चार छोटी-छोटी कहानियां पढेंगे जिससे सिकंदर के व्यक्तित्व के बारे में हमें पता चलता है.
Alexander the Great Story in Hindi (Story 1)
अपने विश्वविजय के स्वप्न पर निकला सिकंदर यूनान से भारत तक आ पहुंचा. रास्ते में एक जंगल पड़ता था. जंगल को पार करते समय उसने एक साधु को शिला पर आसन जमाये देखा. सिकंदर को देखकर वह साधु ज्यों का त्यों अपना आसन जमाये रहा और सिकंदर को एक सामान्य इंसान की तरह देखता रहा. सिकंदर को यह अच्छा नहीं लगा और उसने क्रोधित होकर कहा – “ आपको मालूम है कि आपके सामने विश्वविजेता खड़ा है.”
साधु ने निश्चिन्त भाव से कहा – “तुम खून खराबा और ये कत्लेआम क्यों करते हो?”
“इससे एक दिन मैं पूरी दुनिया को जीत लूँगा और उस पर राज करूँगा.”
“फिर”
“इसके बाद मेरे पास महल, गहने, हीरे- जवाहरात, नौकर चाकर और विशाल साम्राज्य होगा.”
“तो”
“तो मैं बहुत आराम से रहूँगा” – सिकंदर ने सीना फूलाते हुए कहा.
“ तुम इतना मार काट और हत्या करने के बाद आराम से रहोगे और मैं तो बिना यह सब किये ही आराम से रह रहा हूँ.”
साधु ने बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से सिकंदर को जबाब दिया और अपनी आँखें बंद कर ध्यान मग्न हो गया.
आज सिकंदर को पहली बार अहसास हुआ कि वह एक मूर्खतापूर्ण अभियान पर निकला है.
Alexander the Great Story in Hindi (Story 2)
विश्वविजय पर निकला सिकन्दर मार-काट करता ऐसे नगर में पहुँचा जहाँ सूखे ने, फिर बाढ़ ने सब कुछ तबाह कर दिया था. लोग दाने -दाने को मोहताज थे.
दोपहर को भोजन के समय पराजित नगर के प्रमुख ने थाली में शहर की औरतों से इकट्ठे किए गहने पेश किए. सिकन्दर चिल्लाया, ‘सोने से कहीं भूख मिटती है? मुझे रोटी चाहिए, रोटी !’
नगर-प्रमुख ने विनीत भाव से कहा, “सम्राट यहाँ का अन्न-अनाज तो सब तबाह हो चुका है. हम लोग तो किसी तरह घास-फूस-पेड़-पत्ते खाकर जी रहे हैं. आपको वैसा भोजन कैसे पेश करें ? जो है आपको दे रहे हैं.”
रोटी के महत्व को जानकर सिकन्दर ने यूनान लौट जाने का मन बना लिया.
Alexander the Great Story in Hindi (Story 3 )
सिकन्दर महान अपनी माता का आज्ञाकारी बेटा था. उसकी माता उससे जो कुछ भी करने को कहती थी उसे सिकन्दर तुरंत कर देता था. सिकन्दर की खुद की प्रकृति बड़ी क्रूर थी. गाँवों को उजाड़ने, नष्ट करने, आग लगवाने में उसे जरा भी डर नहीं लगता था, लेकिन वह अपनी माता से डरता था.
एक बार सिकन्दर के राजप्रतिनिधि ने उसकी माता की सिकन्दर के पास एक शिकायत भेजी जिसे पढकर सिकन्दर आग-बबूला हो उठा. उसने राजप्रतिनिधि को लिख कर भेजा – ‘मेरी माँ मेरे लिए सबसे बड़ी है. उसकी आँख के एक-एक आँसू पर मैं आपके लिखे हजारों पन्नों और अपना तख्त कुर्बान कर सकता हूँ, लेकिन ममतामयी माँ के चेहरे को उदास और आँसू-भरा नहीं देख सकता हूँ.’
Alexander the Great Story in Hindi (Story 4 )
राजा या रंक
अपने भारत अभियान के दौरान एक बार सिकंदर भारतीय साधुओं के डेरे पर पहुंचा.
“तुम कौन हो?” – एक वृद्ध महात्मा ने पूछा.
“ मैं विश्वविजेता सिकंदर महान हूँ.” – सिकंदर ने अपना परिचय दिया.
“ हमारे पास किसलिए आये हो?” – महात्मा ने फिर से सवाल किया.
“ मैं आपलोगों को कुछ देना चाहता हूँ.” – सिकंदर ने कहा.
“ जो स्वयं नहीं भरा, वह हमें क्या दे सकता है!” –महात्मा स्नेह पूर्वक बोले. सिकंदर को यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ.
उसने पूछा – “मैं आपका मतलब नहीं समझा महात्मन! मैं विश्व विजेता हूँ. मुझे किसी चीज की कमी नहीं है.”
महात्मा ने मुस्कुराते हुए कहा –“बेटे, यदि तुम अपनी संपत्ति से संतुष्ट होते तो विश्व विजय को क्यों निकलते? इतनी लूटमार वही करता है जो जीवन में कुछ कमी महसूस करता है. जाओ, तुम्हारे वस्त्रों की हमें जरुरत नहीं है. तुम सोचो कि सचमुच में तुम राजा हो या रंक.
यह सुनकर सिकंदर को बहुत ग्लानि हुई और वह उदास होकर अपने शिविर में लौट आया.
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